ईसाई आतंक के विरुद्ध बस्तर के बाद अब सरगुजा के जनजातियों में भी आक्रोश, कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन

इस हिंसा के दौरान कई ग्रामीणों को अपनी जान बचाने के लिए घटनास्थल से भागना पड़ा था, जिसके बाद चोटिलों का उपचार अस्पताल में कराया गया

The Narrative World    10-Jan-2023
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sarguja janjaati gaurav samaj

 
बस्तर के नारायणपुर में ईसाइयों के द्वारा जनजातीय समाज पर किए गए जानलेवा हमले का आक्रोश अब छत्तीसगढ़ के उत्तरी हिस्से में भी फैल गया है। जनजाति बाहुल्य जिला सरगुजा में इस घटना को लेकर वनवासी समाज के भीतर अत्यंत आक्रोश देखा जा रहा है।
 
इस मामले को लेकर सोमवार, 9 जनवरी को जनजाति गौरव समाज की सरगुजा इकाई ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर आरोपी ईसाइयों पर कार्रवाई और प्रदेश में धर्मान्तरण के कारण बढ़ती वैमनस्यता की बात कही है।
 
जनजातीय नागरिकों का कहना है कि नारायणपुर में हुई हिंसक घटना ईसाइयों के द्वारा की गई कोई पहली घटना नहीं है, इसके पहले भी ईसाइयों ने अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आने वाले लोगों पर प्राणघातक हमले किए हैं।
 
उनका कहना है कि देश के विभिन्न हिस्सों में यह देखा गया है कि ईसाइयों के बढ़ते प्रभाव के बाद क्षेत्र के जनजातियों के साथ
अत्याचार की घटनाएं होती हैं। कलेक्टर को सौंपे ज्ञापन में जनजाति समाज ने कहा है कि ईसाइयों के द्वारा किए जा रहे इस तरह की घटनाओं के चलते प्रदेश में सामाजिक विद्वेष की स्थितियां निर्मित हो रही है।
 
जनजाति गौरव समाज का कहना है कि छत्तीसगढ़ में जिस तरह से धर्म परिवर्तन घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है, उसने क्षेत्रीय अस्मिता को संकट में डाल दिया है। इसके परिणामस्वरूप अब छत्तीसगढ़ की संस्कृति भी खतरे में है।
 
ईसाइयों के बढ़ते अतिक्रमण के कारण आक्रोशित जनजातियों का कहना है कि ईसाइयों के बढ़ते प्रभाव वाले क्षेत्रों में अस्थिरता की स्थिति भी उत्पन्न हो रही है, जिसके उदारहण देश के अन्य क्षेत्रों में पहले देखें जा चुके हैं।
 
कुछ क्षेत्रों के बारे में बताते हुए समाज के लोगों का कहना है कि कुछेक हिस्सों में धर्मान्तरित समूहों की अप्रत्याशित वृद्धि के कारण क्षेत्रीय अशांति, अस्थिरता और कट्टरपंथ एवं अलगाव की स्थिति भी निर्मित हुई है।
 
जनजाति समाज मे ईसाई मिशनरियों पर आरोप लगाया है कि प्रदेश के अनेक हिस्सों में जिस प्रकार से सामाजिक तनाव की स्थिति बनी है, उसके पीछे प्रदेश में साम्प्रदायिक एवं कट्टरपंथी शक्तियों का विस्तार मुख्य कारण है।
 
जनजाति समाज ने आरोप लगाते हुए कहा है कि मिशनरी समूह के द्वारा योजनाबद्ध तरीके से किए जा रहे धर्मान्तरण के कार्य के पीछे हिंदु समाज को कमजोर करने का षड्यंत्र है। प्रदेश में बढ़ती सामाजिक वैमनस्यता और बढ़ते विद्वेष के लिए जनजाति समाज ने मिशनरियों की अनैतिक गतिविधियों को जिम्मेदार बताया है।
 
जनजातीय समाज के लोगों का कहना है कि प्रदेश में धर्मान्तरित ईसाइयों के बढ़ते प्रभाव के दुष्परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं। उनका कहना है कि नारायणपुर या बस्तर ही नहीं, बल्कि पूरा छत्तीसगढ़ सामाजिक तनाव की स्थिति से गुजर रहा है, जिसमें खासतौर पर जनजाति बाहुल्य क्षेत्र भी शामिल हैं।
 
समाज का कहना है कि बस्तर भले ही छत्तीसगढ़ के दक्षिण में है, लेकिन वहां जनजातियों के साथ हुई अभद्रता एवं जनजातियों के विरुद्ध चल रहे षड्यंत्र के कारण प्रदेश के उत्तरी हिस्से में भी आक्रोश बढ़ रहा है।
 
सरगुजा संभाग जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र है, ऐसे में इस पूरे क्षेत्र में जनजातियों के भीतर बस्तर में हुई घटना को लेकर नाराज़गी भी है, और पीड़ा भी है। जनजाति समाज का कहना है कि ईसाइयों के द्वारा की जा रही अनैतिक गतिविधियां इसी ओर संकेत कर रहीं हैं कि यदि समय रहते इसपर नियंत्रण नहीं पाया गया तो यह घटनाएं सिर्फ छत्तीसगढ़ को ही नहीं बल्कि पूरे देश को प्रभावित करेंगी।
 
उनका कहना है कि धर्मान्तरण से पूरे राष्ट्र को खतरा है। कलेक्टर को सौंपे गए ज्ञापन के दौरान सरगुजा जिले के विभिन्न जनजातीय नागरिकों के साथ बंशीधर उरांव, इंदर भगत, जगना राम प्रधान, उमेश किस्पोट्टा, हीरा सिंह टेकाम, गौरंगो सिंह समेत अन्य स्थानीय निवासी भी शामिल थे।
 
दक्षिण से उत्तर तक जन आक्रोश
 
छत्तीसगढ़ के दक्षिणी हिस्से बस्तर में हुई हिंसा की घटना का असर प्रदेश के उत्तरी हिस्से में दिख रहा है। आमतौर पर सर्दियों में बर्फ सा जम जाने वाला शहर अब ईसाइयों के कारण जनजातीय आक्रोश से उबल रहा है।
 
एक के बाद एक जनजातीय नागरिक सामने आकर अपनी बात रख रहे हैं, और ईसाइयों पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। बस्तर में हुई घटना की प्रतिक्रिया सरगुजा तक दिखाई दे रही है।
 
अक्रोशित जनजाति समाज ने शासन-प्रशासन से दोषियों पर कार्रवाई की मांग तो की ही है, साथ ही धर्मान्तरण पर अंकुश लगाने के लिए कठोरतम कानून बनाने की बात भी कही है। अब देखना यह है कि क्या सरकार जनजातियों के हितों की रक्षा के लिए कोई कदम उठाती है या चुप्पी साध कर ईसाइयों को फिर से खुली छूट देती है।
 
ईसाइयों ने किया था जनजातियों पर प्राणघातक हमला
 
बीते 31 दिसंबर एवं 1 जनवरी को जनजाति समाज के लोगों को गांव में घुसकर बाहर से आये धर्मान्तरित ईसाइयों ने जान से मारने का प्रयास किया था। 200 से अधिक ईसाइयों ने पादरी के नेतृत्व में जनजातीय ग्रामीणों पर यह हमला बोला था, जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामीण घायल हुए थे।
 
इस हिंसा के दौरान कई ग्रामीणों को अपनी जान बचाने के लिए घटनास्थल से भागना पड़ा था, जिसके बाद चोटिलों का उपचार अस्पताल में कराया गया। जनजातियों को बचाने और ईसाइयों के आतंक को रोकने पहुंची पुलिस बल पर भी ईसाइयों ने हमला किया जिसके बाद एडक़ा थाना प्रभारी को भी गंभीर चोट आई।
 
इस घटना के दौरान ईसाइयों ने धर्मान्तरण का विरोध करने वाले ग्रामीणों, जनजाति पुजारियों, गायतों और उनके परिवारों को मुख्य रूप से निशाना बनाया, जिसमें उन्हें गंभीर चोटें आई। इस हमले के दौरान ईसाइयों ने ग्रामीणों को जान से मारने की धमकी दी एवं आपत्तिजनक बयान भी किए।
 
पुलिस ने नहीं की कार्रवाई
 
ईसाइयों के आतंकी हमले का जब जनजातियों ने विरोध दर्ज कराया एवं पुलिस से शिकायत की, तब भी पुलिस ने इस मामले में कोई त्वरित कार्रवाई नहीं की। पुलिस को जनजातीय समाज के द्वारा लिखे गए शिकायत पत्र में जिन आरोपी ईसाइयों ले नाम थे, उनके ऊपर पुलिस ने एफआईआर भी दर्ज नहीं की और ना ही उनके खिलाफ कोई जांच शुरू की।
 
पुलिस के इस पक्षपात रवैये से परेशान और आक्रोशित जनजाति समाज ने 5 जनवरी को बस्तर बंद का आह्वान किया जिसे पूरे संभाग के लोगों का अभूतपूर्व समर्थन प्राप्त हुआ।