इसी के साथ भारत के वामपंथी वर्तमान समय की सबसे प्रमुख प्रवृत्ति बताते हुए राजीव मिश्रा जी ने पॉलीटिकल करेक्टनेस जुमले का असल उपयोग बताया है जब भी आप तर्कसंगत या तथ्य पूर्ण बात करते हैं तो इन वामियों द्वारा आपकी बातों को सिरे से नकार दिया जाता है यह कहकर कि आप पॉलिटिकली करेक्ट नहीं हैI
पॉलिटिकली करेक्ट होने के सिद्धांत इन्होंने ही निर्धारित किए हैं एवं अन्य लोगों को इन्हीं सिद्धांतों से चलने के लिए यह वामपंथियों की ही टोली बाध्य करती हैI राजीव मिश्रा जी अपनी पुस्तक में यह कहते हैं कि “नंगापन उच्चश्रृंखला नारीवाद के पीछे छुप गया, इस्लामिक आतंकवाद सेकुलरिज्म और सर्वधर्म के पीछे, चोरी और निकम्मा समानता की मांग के पीछे छुप गया, अनुशासनहीनता और आपराधिक मनोवृत्ति सामाजिक भेदभाव के विरोध के पीछे जाकर चुप गयाI इस प्रकार इन वामियों का पॉलीटिकल करेक्टनेस सभी प्रकार के अनैतिक और अनुचित बातों को एक मुकुट प्रदान करता हैI
राजीव मिश्रा जी भारत की नारियों का समस्त दृष्टिकोण पश्चिम सभ्यता की ओर मोड़ने वाली विचारधारा अर्थात फेमिनिज्म जिसे नारीवाद कहते हैं का भी अपनी पुस्तक में वर्णन करते हैं I वे बताते हैं कि फेमिनजम ने बहुत से अमेरिका के परिवारों को नष्ट करके रख दिया I दरअसल इस फेमिनिज्म की हवा अमेरिका से चली थी, अमेरिका के एक फेमिनिस्ट के बारे में लेखक बताते हैं, जो दरअसल स्त्रियों की कार्ल मार्क्स थी, जिसका नाम था केट मिलेटI दरअसल मिलेट को मानसिक स्वास्थ्य की गंभीर समस्या थी, वह जब एक मूवी बना रही थी 3 लाइफ तो उसकी शर्त थी कि इस फिल्म में कहीं कोई पुरुष नहीं होना चाहिए, पर्दे पर नहीं,कहानी में नहीं, यहाँ तक कि क्रू मं भी नहींI उसकी जिद थी कि सेट पर खाना लेकर आने वाले में भी कोई पुरुष नहीं होना चाहिए I
उस फिल्म में कैट के साथ काम करना उसकी बहन के लिए काफी पीड़ादायक अनुभव थाI उसकी बहन मैलोरी मिलेट अपने बहुचर्चित लेख में यह बतलाती है कि “जब केट अपनी एक पुस्तक लिख रही थी तो उसने मैलोरी को अपने साथ अपनी एक मित्र के फ्लैट पर एक मीटिंग में आमंत्रित किया थाI घर पर केट का कोंशिअस ग्रुप था जो बिल्कुल एक कम्युनिस्ट एक्सरसाइज था, माओवादी चीन की तर्ज परI मीटिंग की शुरुआत एक चर्च की कार्यविधि की तरह शुरू हुई I
“ केट ने अपने सभी सहेलियों से पूछा - हम लोग आज यहां किस लिए जुटे हैं, जवाब में सभी बोले, क्रांति करने के लिए, कैट ने फिर पूछा कैसी क्रांति, उत्तर आया सांस्कृतिक क्रांति,कैसे करेंगे यह सांस्कृतिक क्रांति, उत्तर आया अमेरिकी परिवार को नष्ट करके, परिवार को कैसे नष्ट करेंगे, उत्तर आया सत्ता को नष्ट करके, प्रश्न फिर पूछा गया पितृसत्ता को नष्ट करके, कैसे नष्ट करेंगे उत्तर आया उसकी शक्ति छीन कर, केट ने फिर पूछा कि उसकी शक्ति कैसे छीन लेंगे, उत्तर आया मोनोगामी को खत्म करके, केट ने अंतिम प्रश्न पूछा कि मोनोगामी को कैसे खत्म करेंगे, तो उसकी सहेलियों का उत्तर सुनकर मैलोरी केट की बहन पूरी तरह से हिल गई, उत्तर था स्वच्छंदता अश्लीलता वेश्यावृति और समलैंगिकता का प्रचार करके I”
तो इस प्रकार अमेरिका का फैमिनिजम सभी प्रकार की अनैतिकता को बढ़ावा देकर फेमिनिज्म का प्रचार करना चाह रहा था और आज भारत के तथाकथित नारीवादी भी इन्हीं नियमों पर अपने नारीवाद का प्रसार करने में लगे हैं एवं भारत की लड़कियों को अपनी चकाचौंध भरी दुनिया में शामिल करने हेतु इस प्रकार के बातों का मायाजाल फैला रहे हैंI राजीव जी इसी पुस्तक में आज की नारी वादियों से एक सटीक प्रश्न पूछते है जो कि नारी वादियों के लिए करारा तमाचा है कि यदि वह पुरुषों की बनाई हुई तथाकथित पितृसत्ता को समाप्त करना चाहते हैं उनके पास इस व्यवस्था को खत्म करने के पश्चात क्या कोई अल्टरनेटिव सुचारू रूप से चलने वाली व्यवस्था उपलब्ध है और इसकी क्या गारंटी है जिस सत्ता को समाप्त करने के बाद जो व्यवस्था अस्तित्व में आएगी वह दोष मुक्त होगी अथवा उसमें किसी भी प्रकार अत्याचार घटित नहीं होगा? दरअसल यह एक यूटोपिया है, और वामपंथी यूटोपिया बेचने में एक्सपर्ट हैI
भारत के वामपंथी पीड़िता के लिए मोमबत्ती लेकर खड़े तो हो जाते हैं, किंतु यही वामपंथी जुडिशल एक्टिविज्म के नाम पर अपराधियों को सजा दिलाने से बचाने की मांग करते हैं, यह किस प्रकार का नारीवाद हैI दरअसल उनके लिए प्रत्येक अपराध एक अवसर है, जिससे वे समाज में संघर्ष स्थापित कर सकें एवं समाज को तोड़ सकेंI
एक नया झुनझुना जो भारत में कम्युनिस्ट प्रवृत्ति के अंतर्गत आता है जिसका वर्णन राजीव जी अपनी पुस्तक में करते हैं वह है समलैंगिकता I समलैंगिकता किसी व्यक्ति विशेष का निजी विषय है, किंतु फिर भी संपूर्ण विषय को उत्पीड़न का रूप देना भी वामपंथियों की ही करामात हैI वामपंथी समलैंगिकता को कुछ इस प्रकार समाज में स्थापित करना चाहते हैं कि समलैंगिक लोगों के विरुद्ध भारत के संकुचित वृत्ति रखने वाले लोग अत्याचार ढा रहे हैं तो उन्हें भारत सरकार द्वारा सिक्योरिटी सिस्टम प्रदान किया जाए जिससे वही अंततः वामपंथियों की असली चाल मुफ्तखोरी सामने दिखाई पड़ती हैI
साथ ही साथ ही क्योंकि यह समाज समलैंगिक लोगों को स्वीकार्य नहीं कर पाता है, तो इस कारण समलैंगिक लोग अपनी चिंता को कम करने के लिए नशे का प्रयोग करें इस प्रकार का बढ़ावा भी इन कम्युनिस्टों द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में दिया जाता रहा है I खैर इतनी सारी प्रवृत्तियों को समझने के बाद भी आखिर यह समझ नहीं आता कि अंततः कोई बनता ही क्यों है वामपंथी? तो इस पर भी राजीव मिश्रा जी ने अपने विचार बहुत ही संक्षिप्त और सटीक रूप में रखे हैंI वे कहते हैं कि वामपंथी तीन प्रकार के लोग बनते हैं,पहले वह जो कम आई क्यू वाले होते हैं,जिनके पास स्वयं की विवेक बुद्धि नहीं होती और किसी के भी हल्का सा बहलाने और कुछ लाने पर वे उन्हें वामपंथ की सीढ़ियों पर चढ़ा दिया जाता हैI
दूसरे वे जो स्वयं एक असफल इंसान होते हैं, हीन भावना से ग्रस्त होते हैं किंतु जिन्हें फिर भी कुछ करके दिखाना है ऐसे लोगों को भी बहला-फुसलाकर वामपंथी अपनी फौज में रिक्रूट कर लेते हैं, शामिल कर लेते हैं और तीसरे वे होते हैं बदसूरत दुनिया से नकारे गए शारीरिक रूप से विकृत लोग अक्सर वामपंथियों की भीड़ में मरियल , पंचफूटी लड़कों और बदसूरत लड़कियों को हम पाते हैंI दुनिया और प्रकृति से नाराज लोग जो बदले में दुनिया को भी बदसूरत और विकृत बना देना चाहते हैंI और फिर अंत में आते हैं वामपंथी लीडर जिनका एकमात्र लक्ष्य भारत में स्थापित सभी सामाजिक नैतिकता पूर्णा मूल्यों और सनातन संस्कृति को नष्ट कर समाज में संघर्ष स्थापित कर विवादास्पद नए-नए विमर्श खड़े कर भारत के लोगों को सरकार के विरुद्ध बरगला कर स्वयं की सत्ता स्थापित करने की क्षुधा रखने वाले वामपंथीI
हालांकि राजीव जी अपने अंतिम चैप्टर में यह भी बताते हैं कि कुछ वामपंथियों को तथ्य – तर्क-सन्दर्भ – आंकड़े देकर वापस सुमार्ग पर लाया जा सकता है , कुछ लोगों में उनकी वैचारिक पृष्ठभूमि को देखते हुए उनसे संवाद साध कर धीरे-धीरे राष्ट्रीय चेतना जागृत की जा सकती है किंतु वे यह भी बड़ी स्पष्टता के साथ कहते हैं कि हर वामपंथी को बदला नहीं जा सकता क्योंकि डॉक्टर भी जानता है कि हर मरीज की जान नहीं बचाई जा सकती I
इस प्रकार ‘विषैला वामपंथ’ यह पुस्तक वामपंथियों की पोलम पट्टी खोलता हुआ वह महा ग्रंथ है जिसे पढ़कर एवं समझ कर हमारे आसपास खड़े हो रहे रोज के नए-नए निरर्थक विमर्श को हम एक चलचित्र के समान देखने में समर्थ हो जाते हैं, एवं सजग हो जाते हैं और सजग भाव ही तो आज के भारत के युवा की आवश्यकता है, जिससे वह राष्ट्र को सजग बनाकर राष्ट्र द्रोहियों द्वारा नित्य खड़े किए गए नव विवादों को पैरों से ठोकर मार कर, भावी पीढ़ी को लाल षड़यंत्र से बचाए व भारत को पुनः विश्व गुरु बना सकेंI