जब भी कभी सुनता हूँ कि कोई नेता या कोई आम व्यक्ति हिन्दू से बौद्ध बन जाना चाहता है तो सोचता हूँ कि क्या उसे वाकई बुद्धत्व में हिंदुत्व से कुछ अलग मिल जाएगा। क्या उसे हिन्दू धर्म के बारे में कुछ पता है, या कि बुद्ध धर्म के बारे में?
यह भी बड़े आश्चर्य की बात है कि जितने भी हिन्दू धर्म के अतिरिक्त धर्म हुए हैं वे सभी कई शाखाओं में बंटे और स्वयं को एकमात्र सच्चा अनुयायी बताया। चाहे वो जनसंख्या के हिसाब से नंबर एक क्रिश्चियानिटी हो या नंबर दो इस्लाम। जनसंख्या के हिसाब से चौथे नंबर पर आने वाले बुद्ध धर्म में भी कुछ ऐसा ही है।
बुद्ध जब जीवित थे उसी समय उनके अनुयायियों में मतभेद पैदा हो गए थे, परन्तु बुद्ध का व्यक्तित्व कुछ ऐसा था कि उनके रहते इन प्रवृत्तियों को अधिक बल नहीं मिला।
पर उनके देहावसान के पश्चात आपसी मतभेद बढ़ गए। बुद्ध के देहांत के पश्चात पहली वर्षा ऋतु में पहली परिषद का आयोजन किया गया जिसका उद्देश्य बुद्ध की शिक्षाओं को एक जगह संकलित करना था। दूसरी परिषद इसके करीब 100 सालों बाद 383 ईसा पूर्व के लगभग हुई थी। तब तक कई विचार पैदा हो चुके थे, सुधार की आवश्यकता महसूस की जाने लगी थी।
वाद विवाद के पश्चात परिवर्तन के विरोधी गुट की जीत हुई जिन्हें स्थविर या थेरवादी कहा गया। प्रगतिशील दल यद्धपि हार गया था पर संख्याबल में यह अधिक था, इन्हें महासंघिक या सर्वस्तिवादी कहा गया। 102 ई. में आयोजित चौथी परिषद में बुद्ध धर्म का दो भागों में स्पष्ट विभाजन हुआ, हीनयान तथा महायान।
1) हीनयान: यथार्थवादी (पुरानी शाखा, भाषा पाली), लंका, म्यामार
a) वैभाषिक: अन्य सम्प्रदायों की भाषा को असंगत भाषा मानते हैं।
b) सौत्रान्तिक: केवल सुत्तपिटक को मानते हैं, अन्य दो पिटकों को नहीं।
2) महायान: आदर्शवादी (भाषा अधिकांश संस्कृत) नेपाल, चीन, कोरिया, जापान
a) योगाचार: मानता है कि परम सत्य (बुद्धत्व) केवल योगक्रिया द्वारा ही पाया जा सकता है, अन्य कोई उपाय नहीं।
b) माध्यमिक: तपस्वी जीवन और भौतिक इन्द्रीयभोग दोनों अतिवादिताओं का विरोध
हीनयान सम्प्रदाय वह है जो पुरातन को मानता है, जिसका कहना है कि सभी पदार्थ क्षणिक हैं। स्थाई कुछ नहीं, न देश न निर्वाण। ये केवल निषेधात्मक संज्ञायें मात्र हैं। हीनयान संसार को पूर्णतः त्याग देने की बात करता है। कोई मित्र नहीं, कोई सम्बन्ध नहीं, क्योंकि मित्रता और सम्बन्ध से उत्कंठा पैदा होती है और गृहस्थ जीवन ध्यान भटकाता है।
इसके अनुसार व्यक्ति अगर मार्ग से गुजरे तो आंख पर पट्टी बांध लें कि कहीं कोई सौंदर्य न दिख पड़े। विवाह तो खैर करना ही नहीं चाहिए। चूंकि जीवन में असंतोष है, दुख है इसलिए बस किसी कमरे में तपस्या करते रहो ताकि निर्वाण प्राप्त हो सके। देखा जाए तो इसका प्रयोजन संसार के प्रति घृणा पैदा करना है।
हीनयान ने आगे चलकर हिंदुओं के अवतारवाद को अपना लिया। विभिन्न देवी देवताओं की कल्पना की गई। बुद्ध को इन सबसे ऊपर ईश्वर का स्थान दिया गया। जबकि प्राचीन मत के अनुसार बुद्ध कोई देव या अलौकिक व्यक्ति नहीं थे, वे मात्र सत्यमार्ग के प्रचारक थे। सनातन थेरवाद की यह मान्यता थी कि बुद्ध भी एक व्यक्ति ही थे, बस अंतर इतना था कि उनमें अधिक प्रतिभा थी और उन्होंने अपने अनुसंधान को संसार के सामने रख दिया।
महायान सम्प्रदाय का कहना है कि संसार से कटकर विहारों में जा बैठना, सभी व्यवहारों और सुखों का दमन मनुष्य प्रकृति के अनुकूल नहीं है। बुद्ध ने कभी भी तप करने का प्रचार नहीं किया। निर्वाण प्राप्त करने के बाद भी व्यक्ति संसार से कट नहीं जाता अपितु उसे प्रकाशित करता है जिससे वह भी अपना लक्ष्य पा सके। यह रक्षक, मार्गदर्शक, जीवन-सेतु, दीपक, सेवक बनने की बात करता है।
मूल अंतर यह है कि हीनयान अधिकतम त्याग की बात करता है और महायान न्यूनतम त्याग की। महायान वालों ने अपना नामकरण महायान (बड़ी नौका) हीनयान (छोटी नौका) के विरोध में किया था जो कहीं न कहीं सही भी है। महायान जहां सबके लिए प्रेम और ज्ञान के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करने की योजना देता है, वहीं हीनयान मात्र कुछ विशिष्ट लोगों के लिए है जिन्हें किसी बाह्य सहायता की आवश्यकता नहीं होती, जो तुरन्त संसार का त्याग कर तप करने बैठ जाएं। हीनयान शुष्क ज्ञान की बात करता है और महायान प्रेम पर अधिक जोर देता है।
हीनयान अपनी कठोरता और शुष्कता से अधिक सफल नहीं रहा। पर (कम से कम भारत के संदर्भ में) महायान भी असफल ही कहा जायेगा। महायान मज्झिमनिकाय की इस युक्ति को मानता है कि "ऐसे व्यक्तियों को भी जो धर्म में दीक्षित नहीं हुए हैं, स्वर्ग मिल सकता है यदि उनमें मेरे प्रति प्रेम व श्रद्धा है।" (यह गीता का भक्तिपरक सिद्धान्त है।)
दरअसल महायान ने सफल होने के लिए, अधिक लोगों तक अपनी पहुंच बनाने के लिए बड़ी खुशी से जनता के विश्वासों को आत्मसात कर लिया। भारत में भारत के, चीन में चीन के, जापान, कोरिया में वहां के। महायान में एकता नहीं है क्योंकि यह अत्यंत सहिष्णु है। "यह कहता है कि यदि तुम्हारा आचरण पवित्र है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम किस देवता की पूजा करते हो।"
बिल्कुल यही बात तो हिंदुत्व भी कहता है। आचरण पवित्र हो तो आप किसी भी देवता को पूजिये। जब यही शिक्षा हिन्दू ब्राह्मण देता है और यही बौद्ध भिक्षु भी तो अंतर क्या रहा। हीनयान ने तो ब्रह्मा, विष्णु और नारायण के नाम तक नहीं बदले और महायान ने कभी भी हिन्दू सिद्धांतो तथा क्रिया-कलापों का सीधा विरोध नहीं किया। बल्कि पौराणिक कथाओं में वृद्धि कर अनेक देवताओं और शक्तियों का वर्णन किया।
ब्राह्मणों ने बुद्ध को विष्णु का अवतार माना और बौद्धों ने विष्णु को बोधिसत्व पद्मपाणि। ब्राह्मण और श्रमण भाई-बन्धु जैसे हो गए। महायान वैष्णव धर्म का भाग हो गया और तप की प्रचुरता के कारण हीनयान शैवमत का एक सम्प्रदाय।
वही अच्छाइयां और वही बुराइयां जो हिन्दू धर्म में है वही सब बौद्ध धर्म में। सब मिलकर एक बन गए।
यह कहना कि भारत से बौद्धधर्म को ब्राह्मणों ने बलपूर्वक विलुप्त कर दिया, बस कोरी गप्प है, इसका एक भी ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिला आजतक।