रेपो दर में वृद्धि को रोकना, भारतीय रिजर्व बैंक का साहसिक निर्णय

दरअसल, मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए विकसित देशों द्वारा ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करते जाना, अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को विपरीत रूप से प्रभावित करता नजर आ रहा है, जबकि इससे मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण होता दिखाई नहीं दे रहा है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में अब पुराने सिद्धांत बोथरे साबित हो रहे हैं। और फिर, केवल मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करते जाना ताकि बाजार में वस्तुओं की मांग कम हो, एक नकारात्मक निर्णय है। इससे देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत

The Narrative World    07-Apr-2023   
Total Views |

Representative Image

पिछले एक वर्ष से भी अधिक समय से पूरे विश्व में लगभग सभी देश लगातार बढ़ती मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में वृद्धि करते जा रहे हैं।


अभी हाल ही में अमेरिका ने यूएस फेड दर में 25 आधार अंकों की एवं ब्रिटेन ने केंद्रीय ब्याज दर में 50 आधार अंको की वृद्धि की है। यही स्थिति लगभग सभी विकसित देशों की है।


इन देशों में हालांकि ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करने से मुद्रा स्फीति पूर्णतः नियंत्रण में आती दिखाई नहीं दे रही है, हां कुछ देशों में मुद्रा स्फीति में कुछ कमी जरूर आई है। सामान्यतः विश्व के कई देश, विशेष रूप से विकसित देश, यदि ब्याज दरों में वृद्धि करते हैं तो अन्य देशों को अपनी मुद्रा के बाजार मूल्य को बचाने के उद्देश्य से ब्याज दरों में वृद्धि करना एक मजबूरी बन जाता है।


परंतु, दिनांक 06 अप्रेल 2023 को सम्पन्न हुई भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में रेपो दर में वृद्धि नहीं करने का निर्णय लिया गया है, वैश्विक स्तर पर चल रही आर्थिक परिस्थितियों के बीच यह एक साहसिक निर्णय कहा जा सकता है।


बल्कि आगे आने वाले समय में अब अन्य देश भी (विकसित देशों सहित) भारतीय रिजर्व बैंक के इस निर्णय का अनुसरण कर सकते हैं, ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है। एक तरह से भारत ने इस संदर्भ में अन्य देशों को राह ही दिखाई है।


दरअसल, मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए विकसित देशों द्वारा ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करते जाना, अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को विपरीत रूप से प्रभावित करता नजर आ रहा है, जबकि इससे मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण होता दिखाई नहीं दे रहा है।


पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में अब पुराने सिद्धांत बोथरे साबित हो रहे हैं। और फिर, केवल मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करते जाना ताकि बाजार में वस्तुओं की मांग कम हो, एक नकारात्मक निर्णय है। इससे देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।


उत्पादों की मांग कम होने से, कम्पनियों का उत्पादन कम होता है, देश में मंदी फैलने की सम्भावना बढ़ने लगती है, इससे बेरोजगारी बढ़ने का खतरा पैदा होने लगता है, सामान्य नागरिकों की ईएमआई में वृद्धि होने लगती है, आदि।


अमेरिका में कई कम्पनियों ने इस माहौल में अपनी लाभप्रदता बनाए रखने के लिए 2 लाख से अधिक कर्मचारियों की छंटनी करने की घोषणा की है। किसी नागरिक को बेरोजगार कर देना एक अमानवीय कृत्य ही कहा जाएगा। और फिर, अमेरिका में ही इसी माहौल के बीच दो बड़े बैंक फैल हो गए हैं।


यदि इस प्रकार की परिस्थितियां अन्य देशों में भी फैलती हैं तो पूरे विश्व में ही मंदी की स्थिति छा सकती है। मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए मांग में कमी लाकर उत्पादन कम करने जैसे निर्णयों के स्थान पर आपूर्ति को बढ़ाए जाने जैसे सकारात्मक प्रयास किए जाने चाहिए। इससे उत्पादन बढ़ेगा, विकास की गति तेज होगी एवं रोजगार के और अधिक नए अवसर निर्मित होंगे।


अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों में निर्मित हो रही मंदी की आशंकाओं के बीच भारत में स्थिति बहुत नियंत्रण में दिखाई दे रही है। केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाए रखने के उद्देश्य से सही समय पर सही निर्णय लिए हैं।


हालांकि भारत में भी रेपो दर में मई 2022 के बाद से 250 आधार अंको की वृद्धि की गई है। परंतु, भारत में उत्पादों, विशेष रूप से खाद्य पदार्थों, की आपूर्ति को बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया गया है। भारत में मुद्रा स्फीति को आंकने के लिए उपयोग किए जाने वाले उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की टोकरी में खाद्य पदार्थों की उपस्थिति 40 प्रतिशत से अधिक है।


खाद्य पदार्थों की मांग को ब्याज दरें बढ़ाकर नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। हां, खाद्य पदार्थों की आपूर्ति बढ़ाकर इनकी कीमतों पर नियंत्रण जरूर रखा जा सकता है। इसी प्रकार की नीतियों का पालन भारत सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक ने किया है।


केंद्र सरकार द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक को यह निर्देश दिए गए हैं कि भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर 4 प्रतिशत रहनी चाहिए। हां, विशेष परिस्थितियों में यह, इस दर से 2 प्रतिशत अधिक अथवा कम हो सकती है।


इस प्रकार, भारत में मंहगाई की दर 2 से 6 प्रतिशत के बीच रह सकती है। कोरोना महामारी में बाद एवं रूस यूक्रेन युद्ध के चलते भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर 7 प्रतिशत से अधिक हो गई थी।


अतः भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो दर में पिछले एक वर्ष के दौरान 250 आधार अंको की वृद्धि करते हुए इसे 6.50 प्रतिशत पर पहुंचा दिया है, इसी प्रकार अन्य कई निर्णय भी केंद्र सरकार द्वारा लिए गए हैं। इन निर्णयों के कारण भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर अब घटती भी जा रही है।


भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर घटकर 5.2 प्रतिशत हो जाएगी। जबकि थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर फरवरी 2023 माह में घटकर 3.85 प्रतिशत तक नीचे आ चुकी है।


दूसरे, भारत में ब्याज दरों को बढ़ने से रोकना इसलिए भी जरूरी है कि पिछले कुछ समय से आर्थिक गतिविधियों में आ रही तेजी के चलते बैंकों से ऋण सुविधाओं का उपयोग बहुत बढ़ रहा है।


वित्तीय वर्ष 2022-23 में बैकों के ऋण 15.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 17.8 लाख करोड़ रुपए से बढ़ें है जबकि वित्तीय 2021-22 में बैकों के ऋणों में 9.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी।


ब्याज दरों में वृद्धि होने से ऋण की लागत भी बढ़ती है जो अंततः उत्पादन की लागत को भी विपरीत रूप से प्रभावित करती है। अतः आर्थिक गतिविधियों में और अधिक तेजी लाने के लिए ब्याज की लागत को कम बनाए रखना आवश्यक है।


तीसरे, भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय बाजार में अब मजबूत हो रहा है। चूंकि विकसित देशों द्वारा, विशेष रूप से अमेरिका द्वारा ब्याज दरों में की जा रही वृद्धि के चलते कुछ समय पूर्व तक भारतीय रुपए पर, अमेरिकी डॉलर की तुलना में, दबाव दिखाई दे रहा था।


अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए का मूल्य अंतरराष्ट्रीय बाजार में 83 रुपए प्रति डॉलर को भी पार कर गया था परंतु दिनांक 6 अप्रेल 2023 को यह सुधरकर 81.90 रुपए प्रति डॉलर हो गया है। डॉलर सूचकांक भी धीमे धीमे निचले स्तर पर आ रहा है, यह कुछ समय पूर्व तक 122 के स्तर पर पहुंच गया था, जो दिनांक 6 अप्रेल 2023 को 101.89 के अपने निचले स्तर पर आ गया है।


साथ ही, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में भी पिछले लगातार दो सप्ताह से बहुत अच्छी वृद्धि दर्ज हुई है और यह 10 मार्च 2023 के स्तर 56,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर दिनांक 24 मार्च 2023 को 57,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है।


इस प्रकार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की स्थिति लगातार मजबूत हो रही है। अतः अब भारत को अमेरिकी ब्याज दरों का अनुसरण करने की आवश्यकता नहीं है। परंतु, अंतरराष्ट्रीय बाजार पर इस संदर्भ में नजर जरूर बनाए रखने की आवश्यकता बनी रहेगी।


भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 7 प्रतिशत की वृद्धि होने का संकेत दिया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों में सकल घरेलू उत्पाद में हो रही कमी के चलते भारत से निर्यात प्रभावित हो सकते हैं अतः भारत के विदेशी व्यापार पर वित्तीय वर्ष 2023-24 में कुछ विपरीत असर दिखाई दे सकता है।


साथ ही, मौसम वैज्ञानिकों द्वारा किए गए आंकलन के अनुसार भारत में इस वर्ष सामान्य से कम वर्ष हो सकती है, जिसका विपरीत प्रभाव विशेष रूप से भारत के कृषि क्षेत्र पर पड़ सकता है। अतः वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 6.50 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है।


केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2023-24 में अपने पूंजीगत व्यय में अतुलनीय वृद्धि का प्रावधान किया गया है। सरकार के पूंजीगत व्यय में वृद्धि के साथ साथ अब निजी क्षेत्र द्वारा भी अपने पूंजीगत व्यय में वृद्धि की स्पष्ट सम्भावना दिखाई दे रही हैं क्योंकि विनिर्माण के क्षेत्र में उत्पादन क्षमता का उपयोग 75 प्रतिशत को पार कर गया है।


सामान्यतः जब विनिर्माण इकाईयों की उत्पादन क्षमता का उपयोग इस स्तर पर पहुंचता है तो उत्पादन क्षमता के विस्तार पर विचार किया जाने लगता है। इसी कारण से बैंकों के ऋण वितरण में भी अपार सुधार दिखाई दे रहा है। इससे यह आशा की जानी चाहिए कि वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर और अधिक रह सकती है।

प्रहलाद सबनानी

सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक, एसबीआई