पढ़िए और पढ़ाइए, ताकि कोई केरला स्टोरी जैसी कहानी न दुहराई जा सके

तब याहू चैट का जमाना था और लोग दूसरे देशों के रूम में जाकर अनजान लोगों से बात करते थे। जाहिर सी बात है कि लड़के लड़कियों से, और लड़कियां लड़कों से। किसी भी अनजान से पहला चैट होता था Hi, फिर एंटर मार कर ASL (ऐज, सेक्स और लोकेशन). कोई पाकिस्तानी या बांग्लादेशी मिल जाये, या किसी भी देश की हिंदी समझने वाली यूजर, तो बल्ले-बल्ले। लिखते हिंदी थे, पर रोमन में।

The Narrative World    16-May-2023   
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मैं जब ग्रेजुएशन कर रहा था
, तब हमारी कॉलेज बिल्डिंग के फर्स्ट फ्लोर पर एक साइबर कैफे हुआ करता था।


आज हाथ में मोबाइल और सस्ता इंटरनेट है, हम दिन भर नेट करते रहते हैं। पर उस समय यह इंटरनेट भी एक लक्ज़री हुआ करता था। साइबर कैफे वाले 20 से 25 रुपये में एक घण्टे तक इंटरनेट के उपयोग की सुविधा देते थे।


पर एक तो हमारा 'मिलनसार' स्वभाव, दूसरे हम ठहरे सीनियर स्टूडेंट, तीसरा साइबर कैफे वाले से ठीक ठाक दोस्ती, तो हम 10 रुपये (या बिलकुल फ्री) में पूरे दिन कम्प्यूटर पर बैठे रहते थे।


तब याहू चैट का जमाना था और लोग दूसरे देशों के रूम में जाकर अनजान लोगों से बात करते थे। जाहिर सी बात है कि लड़के लड़कियों से, और लड़कियां लड़कों से। किसी भी अनजान से पहला चैट होता था Hi, फिर एंटर मार कर ASL (ऐज, सेक्स और लोकेशन)


कोई पाकिस्तानी या बांग्लादेशी मिल जाये, या किसी भी देश की हिंदी समझने वाली यूजर, तो बल्ले-बल्ले। लिखते हिंदी थे, पर रोमन में।


ऐसे ही टाइम पास कर रहा था कि एक मैसेज आया। बन्दा पाकिस्तानी था। इधर-उधर की बात के बाद अपने असली मुद्दे पर आया और अपने मजहब की बड़ाई करने लगा। मैं रूम छोड़ने ही वाला था कि इंटरेस्टिंग टॉपिक आता देख रुक गया।


पहले बता दूं कि तब मैं घनघोर नास्तिक था। ईश्वर पर कोई भरोसा नहीं। बन्दा बोलता है कि आपको मजहब की दावत दे रहा हूँ। मैं बोला, पे-पाल (इंटरनेशनल करेंसी एक्सचेंज सुविधा) कर दीजिए।


बोलता है कि आप समझे नहीं। आपको मजहब में शामिल होने का इनविटेशन दे रहा हूँ। हम बोले कि क्या खास है आपके मजहब में? अब वो शुरू हो गया, 'ऊपरवाला एक है। उसके अलावा कोई नहीं। उसका एक दूत है। उसपर जिसका यकीन है, वह मजहबी है। यहां इंसान का ईमान पाक होता है। वह मरने के बाद जन्नत जाता है।'


मैं बोला, "ऊपरवाला मतलब क्या? भगवान? हाँ, हिंदुओं में भी वह तो एक ही है। फिर आप अलग क्या बता रहे हो?"


"एक कैसे? हिंदुओं में तो करोड़ों खुदा हैं। तीन तो हैं ही, उसके अलावा भी राम, किसन जैसे कितने हैं, जो इंसानों की तरह पैदा हुए और मर गए। औरतें भी खुदा हैं। अब इतने खुदा कैसे हो सकते हैं?"


"क्यों नहीं हो सकते? भगवान तो खैर एक ही है। पर आप यह तो मानते हो कि वह सबसे अधिक ताकतवर है, करामाती है। जो चाहे, वह कर सकता है। तो क्या वह ढेरों रूप नहीं ले सकता? औरत नहीं बन सकता? जो भगवान इतनी भी करामात नहीं रखता, वह भगवान हो भी कैसे सकता है?"


"आप समझे नहीं..."


"तो आप समझाओ न! अच्छा, यह क्या जिद कि उसका अंतिम दूत आ गया। अब कोई नहीं आएगा? दुनिया खत्म हो गई क्या जो अब इंसानों को देवदूतों की जरूरत नहीं पड़ेगी? या ऊपरवाला इतना कंजूस है, या निर्दयी है कि इंसानों को उनके हाल पर छोड़ दिया कि मरो बेहूदों। अब मैं कुछ नहीं करने वाला। यह वाला लास्ट दूत भेज रहा हूँ। या वह इतना कमजोर हो गया, और इंसानों के पापों को देख उकता गया और गुस्सा हो गया कि बस बहुत हुआ। अब किसी को नहीं भेजूंगा? फिर तो हिन्दू ही सही हैं कि उनका भगवान थकता नहीं है, नाराज नहीं होता, ऊब नहीं जाता और समय-समय पर महापुरुष भेजता रहता है। प्रैक्टिकल सोच है भगवान की, कि समय के साथ इंसान बदलेगा, और बदलती जरूरतों और सोच के हिसाब से नए महापुरुषों की जरूरत पड़ेगी। तो अंतिम दूत जैसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं इधर।"


"पर जन्नत तो तभी मिलेगी, जब एक ऊपरवाले और एक दूत पर भरोसा हो।"


"कौन कहता है? मेरे सामने ले आओ उसे।"


"वे तो इस दुनिया से रुखसत हो गए, ऊपरवाला उनकी आत्मा को शांति दे।"


"चले गए? और अपने ही मुंह से कह गए कि मुझे अंतिम मानोगे तभी जन्नत मिलेगी? गजब का सुपिरियोरिटी कॉम्प्लेक्स है भाई। और यह क्या बात कि जब भी उनका नाम लो, साथ में उनकी आत्मा की शांति की दुआ पढ़ो? अमा, जब वो इतना पवित्र है तो बार-बार ऊपरवाले से यह गुहार क्यों कि उसकी आत्मा को शांति दे? और स्वर्ग की बात तो हर मजहब में है। हिंदुओं में भी है। और यहां उसके लिए किसी पर भरोसा करना या न करना जरूरी नहीं। बस अच्छे काम करो, और स्वर्ग का टिकट पक्का।"


"जो उसपर यकीन नहीं करेगा, वह दोजख की आग में जलेगा।"


"जल लेंगे भाई। पर यह तो बताओ कि तुम्हारे जन्नत में ऐसा क्या खास है जो बाकियों के यहां नहीं है?"


"हूरें हैं, शराब की नदियां हैं, बढ़िया खाना है।"


"वो तो यहीं इसी दुनिया में आसानी से मिल जाएगी। हूरें भी, और शराब भी, और वो भी जेब की हैसियत के अनुसार। जो यहां पहले से है, वह उधर भी मिले तो फर्क क्या पड़ा? कुछ अलग हो तो बताओ?"


"अरे, हमारे यहाँ सब बराबर होते हैं। सारी दुनिया हमारी है। अलगाव का कॉन्सेप्ट नहीं।"


"चल झूठे। 70-72 गुट तो हैं तुम्हारे यहाँ। और इंसानों में भेद तो होंगे ही। नहीं होना चाहिए, पर होता ही है। और वसुधैव कुटुंबकम का कॉन्सेप्ट तो सदियों से है हमारे यहां।"


"आप तो कह रहे थे कि आप नास्तिक हैं?"


"हूँ न। पर हिन्दू भी तो हूँ। हिंदुओं में नास्तिक भी होते हैं। और जब किसी मजहब पर ऐतबार करना ही होगा तो शिव, राम, कृष्ण जैसे लोगों पर ऐतबार करूँगा। ऐसे बंदे पर क्यों भरोसा करूँ जो नास्तिकों को और बाकी सबको टपकाने की बात करता है।"


बन्दा बिना कोई रिप्लाई दिए चला गया।


मेरी उम्र यही कोई 17-18 होगी। मुझे यह सब कैसे पता था? क्योंकि मेरे पिता को पढ़ने का शौक था। ओशो, कबीर का पूरा सहित्य, कल्याण के तमाम अंक और लगभग सभी मजहबों की तमाम किताबें मेरे घर पर उपलब्ध थी।


पढ़िए, पढ़ाइये, ताकि कोई केरला स्टोरी जैसी कहानी न दुहराई जा सके।