छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार आने के छः आठ महीने बाद ही घपले-घोटालों की बात यूं तो ढंके-छिपे बाहर आने लगी थी, खासकर नए निजाम में शराब का कारोबार जिस तरह देखते ही देखते फलने-फूलने लगा था, जिस तरह खुले आम शराब के अवैध धंधे शासकीय दुकानों में ही शुरू हो गए थे, उस पर थोड़ा बहुत मीडिया की भी नजर पडी थी.
एक दैनिक ने पहले पेज पर इससे संबंधित स्टोरी छापी भी लेकिन फिर बाद में सब कुछ मैंनेज कर लिया गया. जिस सरकार ने बकायदा गंगाजल हाथ में लेकर शराबबंदी आदि का वादा करके सत्ता हासिल की थी, उसने फिर शराब की नदियां बहा दी. कोरोना के समय में जहरीली शराब पीने से हुई मौतों को बहाना बना कर इसने शराब की सरकारी तौर पर होम डिलीवरी सेवा शुरू कर दी थी.
ऐसा सब कुछ इसलिए हो रहा था क्योंकि कांग्रेस सरकार ने शराब के कारोबार की एक समानंतर ऐसी व्यवस्था कर ली थी. ऐसी व्यवस्था जहां सरकारी दुकानों में ही दो तरह के काउंटर शुरू हो गए थे.
उन काउंटर में से एक में ऐसे शराब बिकते थे जिसका राजस्व (हालांकि अवैध कमीशन आदि इसमें भी सत्ता से जुड़े लोगों का होता ही था) सरकार को मिलती थी, लेकिन दुसरे वाले काउंटर पर डिस्टलरी से शराब सीधे दुकानों में पहुंचती थी और इससे प्राप्त सारी की सारी अवैध कमाई जैसा कि ईडी ने अपने प्रेस रिलीज आदि में बताया है – रायपुर के कांग्रेसी महापौर एजाज ढेबर के भाई अनवर ढेबर के पास जाती थी जिसे आगे वह अपने सबसे बड़े ‘पोलिटिकल मास्टर’ के पास अपना हिस्सा काट कर पहुंचा देता था.
घोटालों की यह रकम कितनी बड़ी थी, इसका पूरा आकलन खुद जांच एजेंसी अभी तक नहीं कर पायी है. उसने इस तमाम घोटाले का एक हिस्सा पकड़ पाने में फिलहाल सफलता हासिल की है, जो बकौल ईडी 2 हजार करोड़ रुपया होता है.
इसके अलावा कोयला ट्रांसपोर्ट घोटाला, सीमेंट, आयरन पैलेट्स आदि में अवैध वसूली का भी फिलहाल 5 सौ करोड़ के आसपास की रकम का ब्यौरा ईडी के हाथ लगा है, जिस मामले में सीएम भूपेश बघेल की सबसे करीबी अफसर, उनकी उपसचिव सौम्या चौरसिया, आईएएस अधिकारी समीर विश्नोई समेत अनेक लोग फिलहाल जेल में हैं.
किसी भी मामले में किसी भी अभियुक्त को जमानत नहीं मिलने के कारण यह तो कहा ही जा सकता है कि प्रथम दृष्टया सभी के खिलाफ पुख्ता साक्ष्य हैं.
इस घोटाले में मुखिया के निर्देश पर अनवर ढेबर द्वारा एक संगठित आपराधिक सिंडिकेट का निर्माण किया गया था, जिसके अंतर्गत भ्रष्टाचार का पूरा सिंडिकेट पार्ट A, पार्ट B एवं पार्ट C के अंतर्गत चलता था.
इन तीनों प्लान के बहाने वैध बिक्री में कमीशन आदि, दूसरा पूरी तरह अवैध बिक्री वाले पैसे का प्रबंधन और तीसरा एफएल-10 लाइसेंस के नाम पर विदेशी कम्पनियां, जो सीधे तौर पर रिश्वत नहीं दे सकती थीं, उनके लिये एक अलग रास्ता निकलना शामिल है. ये तमाम काम इतने शातिराना ढंग से होते थे कि इस पर अच्छा खासा वेब सीरिज बन सकता है.
ईडी के रिलीज में साफ कहा गया है कि अनवर इस घोटाले का सरगना अवश्य है, लेकिन वह रकम का अंतिम लाभार्थी नहीं है. अपना कमीशन काट कर ये लोग शेष रकम को 'पॉलिटिकल मास्टर' को भेज देता था. सीधी सी बात है कि छत्तीसगढ़ में 'पॉलिटिकल मास्टर' ही इस सिंडीकेट का सरगना है.
इंतजाम ऐसे पुख्ता थे कि ऐसे व्यवसाय का ‘तरीका’ समझने के लिए बाकायदा झारखंड सरकार ने 3 करोड़ फीस चुका कर छत्तीसगढ़ से इन लोगों को अपने यहां बुलाया था. जिस तरह से लगातार भूपेश बघेल भ्रष्टाचारियों को संरक्षण दे रहे हैं, दोषी अधिकारियों तक पर कोई कारवाई नहीं की है, जिस तरह वे तमाम घोटालों में लिप्त कांग्रेसियों को बचाते रहे हैं, उससे सीधा साबित होता है कि यह ‘पोलिटिकल मास्टर’ वास्तव में ‘मुखिया’ ही हो सकते हैं. इडी ने आरोपियों के वाट्सऐप चैट आदि अदालत में पेश किए हैं, उसमें साफ़ तौर पर मुख्यमंत्री कार्यालय का ज़िक्र अनेक बार आया है.
यह घोटाला वास्तव में इतना फुल प्रूफ था कि शायद ही कभी केन्द्रीय एजेंसियों तक साक्ष्य के साथ इसकी जानकारी पहुंच पाती. हालांकि प्रदेश की जनता सीधे तौर पर इस गोरखधंधे को समझ रही थी और विपक्ष के रूप में गाहे ब गाहे भाजपा भी इस मुद्दे को उठाती रहती थी. लेकिन ऐसे तमाम आवाज इसलिए भी नक्कारखाने में तूती हो जाया करते थे क्योंकि अंततः क़ानून को साक्ष्य चाहिए होता है.
साक्ष्य हासिल करने का ऐसा मौका भी अनायास ही केन्द्रीय एजेंसियों को हासिल हो गया. वस्तुतः फरवरी/मार्च 2020 के दरम्यान सरकार से जुड़े कुछ लोगों के यहां आयकर छापे पड़े जिसमें सौम्या चौरसिया, विवेक ढांड, अनिल टुटेजा समेत सरकारी अधिकारी, व्यवसायी और कांग्रेस के कुछ करीबी लोग शामिल थे. कहने को तो वह आयकर छापा था, लेकिन अनायास पड़े इस छापे में विभाग को ऐसे-ऐसे सबूत मिले जिससे वास्तव में एजेंसी भी सकते में आ गयी.
उसमें अनेक साक्ष्यों के अलावा सबसे संवेदनशील व्हाट्सऐप चैट्स मिले हैं जिसमें बाकायदा चावल घोटाला के एक पुराने मामले में आरोपी अधिकारियों द्वारा, जो इन दिनों मुख्यमंत्री बघेल के काफी करीबी हैं, को बचाने न्यायिक हस्ती, आरोपी, मुख्यमंत्री कार्यालय और सरकारी वकील आदि के बीच लगातर सौदों को अंजाम दिया जा रहा था.
आरोपियों को जमानत मिलने के बाद न्यायिक लोगों को उपकृत करने समेत ऐसे तमाम साक्ष्य ईडी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किये गए जिसका एक अंश ही पब्लिक डोमेन में है और वही इतना संवेदनशील है, जिससे ऐसा लगता है मानो सरकार नहीं कोई अंडरवर्ल्ड इसे संचालित कर रहा था. अलग-अलग दस्तावेजों के अनुसार बाकायदा कोयला पर प्रति टन 25 रूपये, तो आयरन पैलेट्स पर 100 रूपये, ऐसा वसूली संस्थागत रूप से सरकार द्वारा किया जाता था.
खनिज विभाग में चलते ऑनलाइन प्रणाली को किस तरह घोटालों के लिए दबाव देकर बदलवाया गया, इसका भी साक्ष्य विस्तार से उन सभी कंवरसेशन में मिले. उसी मामले में सीएम की उपसचिव सौम्या चौरसिया समेत अनेक अफसर अभी जेल में हैं और ईडी इस जद्दोजहद में है कि इसके असली सरगना जो छत्तीसगढ़ के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति हो सकते हैं, तक पहुंचा जा सके.
इसके अलावा आरोपियों को बचाने के लिए एसआईटी गठन किया गया, जिसमें खुद आरोपियों को मौक़ा दिया गया कि अपने खिलाफ साक्ष्य को कमजोर कर सके, एसआईटी के चीफ पर दबाव डाल कर किस तरह आरोपियों को बचाने की कोशिश प्रदेश की सर्वोच्च सत्ता द्वारा की गयी, ये सारे विस्तार से साक्ष्य समेत दर्ज हुए हैं.
दिलचस्प यह है कि जिन आरोपियों को बचाने में शासन ने पूरी ताकत लगा दी थी, उन्हीं के खिलाफ कारवाई की मांग, कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए भूपेश बघेल का मुख्य चुनावी मुद्दा भी था और इस मांग को लेकर बघेल ने दिल्ली तक पत्राचार समेत तमाम कोशिशें की थी.
आरोप यह भी हैं कि घोटाले की रक़म हवाला आदि के माध्यम से विदेश भेजी गई है. बड़ी संख्या में ऐसी कच्ची और देसी शराब प्रदेश भर के 800 दुकानों में खपाये गये हैं, जिसे वैध तरीक़े से भी बेचा नहीं जा सकता है. जैसा कि विपक्ष का आरोप है, इस मामले में एक भोले-भाले आदिवासी नेता कवासी लखमा को इसलिए आबकारी मंत्री बना कर रखा गया ताकि वे ख़ामोश रहें और ‘पॉलिटिकल मास्टर’ पूरी मलाई साफ करते रहें. भाजपा इसे समूचे आदिवासी समाज का अपमान भी प्रचारित कर रही है.
इसी तरह विपक्ष के आरोपों के अनुसार ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन में भी अध्यक्ष का पद इसलिए ही खाली रखा गया ताकि लूट की रकम में एक और हिस्सेदारी न आ जाए. मुख्यमंत्री निवास के कुछ चुनिंदे चहेतों ने सारे निगम आदि को इस मामले में बाईपास कर दिया था. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने मांग की कि छत्तीसगढ़ में हुए घोटाले से संबंधित ये सभी मामलों की फ़ास्ट ट्रैक में सुनवाई हो.
साथ ही भाजपा ने इस मामले में मुख्यमंत्री का इस्तीफा भी मांगा है, और अगर बघेल अपने पद से नहीं हटते हैं तो ये तमाम मामले प्रदेश से बाहर चलाये जायें, ऐसा विपक्ष की मांग है.
बहरहाल. इस मामले में एक सवाल ईडी द्वारा राजनीतिक आधार पर कारवाई करने का है, जैसा कि कांग्रेस और आरोपी पक्ष लगातार आरोप भी लगा रहे हैं. लेकिन जैसा कि एक प्रेस विज्ञप्ति में ईडी ने खुद स्पष्ट किया है कि उस पर लगे पक्षपात के तमाम आरोप आधारहीन हैं.
ईडी के पोर्टल पर दी गयी जानकारी के अनुसार एजेंसी द्वारा कुल दर्ज मामलों में केवल 2.98 प्रतिशत मामले ही राजनेताओं के खिलाफ हैं. ऐसे ही 5 प्रतिशत से भी कम जब्ती नेताओं की संपत्ति से हुई है. ईडी का सक्सेस रेट 96 प्रतिशत है.
क्योंकि छत्तीसगढ़ में यह चुनावी वर्ष है, तो इस मामले को भाजपा जाहिर है जोर-शोर से उठाना चाहती है. भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. के. के. शर्मा ने केंद्रीय कार्यालय में प्रेसवार्ता आयोजित कर इस घोटाले का सिलसिलेवार जिक्र करते हुए कहा कि कट, कमीशन और करप्शन के बिना कांग्रेस पार्टी रह ही नहीं सकती है.
शराबबंदी का वादा नहीं निभा पाने की सफाई देते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मीडिया से कहा कि क्योंकि जहरीली शराब से लोग मर रहे थे, इसलिए उन्होंने शराबबंदी नहीं की. लेकिन जिस दिन वे यह बयान दे रहे थे उसी दिन प्रदेश के जांजगीर में जहरीले शराब पीने से सेना के एक जवान और किसान समेत तीन लोगों की मौत हो गयी. इसी तरह बगल के अकलतरा में भी ऐसी ही मौतें उसी दिन हुई.
ऐसे में विपक्ष के इस आरोप में दम नजर आता है कि अगर केवल जहरीली शराब रोकने के लिए सीएम ने शराब बेचना जारी रखा, तो अब जबकि सरकार होम डिलीवरी कर रही है शराब की, तो अब ये नकली शराब कौन बेच रहा है?
दिलचस्प यह है कि इस घोटाले के सामने आने पर भाजपा ने महाधरना का आयोजन प्रदेश भर में किया था. बस्तर के नारायणपुर जिले में जहां महाधरना का आयोजन था, उसी के पास ही 50 लाख कीमत की अवैध शराब उसी समय पकड़ी गयी. बाद में भाजपा ने उस ट्रक के पास ही अपना महाधरना आयोजित किया.
आगे यह मामला चाहे जो भी मोड़ ले लेकिन चुनावी वर्ष में छत्तीसगढ़ में यह प्रदेश का सबसे बड़ा मुद्दा होगा, इसका अनुमान प्रेक्षक लगा ही रहे हैं. शराबबंदी का वादा कर सत्ता में आई कांग्रेस द्वारा शराब की होम डिलीवरी शुरू कर देना और फिर उसकी सरकार में इस तरह हजारों करोड़ का घोटाला होना, इस घोटाले में बड़ी-बड़ी हस्तियों का जेल में होना ही आज प्रदेश का सबसे बड़ा विषय है जिस पर प्रदेश के हर चौक-चौराहे पर चर्चा जारी है.
लेख
पंकज झा
वरिष्ठ पत्रकार