जनजातीय समाज में नवरात्रि का उत्सव और देवी उपासना

भारतीय सनातन संस्कृति में आराधना का विशेष महत्व है यही कारण है कि नवरात्र में सनातन समाज की विभिन्न शाखाएं अलग-अलग ढंग से आदिशक्ति की पूजा कर उनसे सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।

The Narrative World    11-Oct-2024   
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नवरात्र पर्व के समय पूरे देश में जहां आदि शक्ति की उपासना हर्षोल्लास के साथ होती है
, वहीं जनजातीय क्षेत्रों में भी वनवासी समाज पूरी श्रद्धा और निष्ठा से मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की उपासना करता है।


भारतीय सनातन संस्कृति में आराधना का विशेष महत्व है यही कारण है कि नवरात्र में सनातन समाज की विभिन्न शाखाएं अलग-अलग ढंग से आदिशक्ति की पूजा कर उनसे सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।


झारखंड के जनजाति समाज के लोग मां आदिशक्ति की आराधना कुछ अनूठे ढंग से करते हैं। जनजाति समाज में देवी उपासना दसांय नृत्य के माध्यम से की जाती है। स्थानीय जनजाति ग्रामीणों कहते हैं कि स्थानीय जनजातीय समाज की परंपरा में नवरात्र के महाषष्ठी के दिन से देवी की पूजा शुरू होती है।

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जनजाति समाज की रीतियों के अनुसार जल भरण के दिन जनजाति समाज के लोग स्नान करके गांव के जाहेरथान में पहुंचते हैं। इस दौरान पूरे विधि विधान के साथ आदि शक्ति की उपासना की जाती है।


ग्रामीणों के द्वारा वाद्य यंत्र की पूजा के बाद उक्त स्थान पर दसांय नृत्य शुरू होता है। इस स्थान से निकलने के बाद विजयादशमी के पूर्व तक जनजाति समाज के लोग घर-घर जाकर धूप जलाते हैं।


स्थानीय जनजातियों का कहना है कि वनवासी परंपरा एवं रिती-रिवाज के अनुसार समाज में सभी पर्व मनाए जाते हैं और यह सभी पर्व जनजातीय नृत्य एवं संगीत के बिना अधूरा है।


“ग्रामीणों का कहना है कि बच्चों और आने वाली पीढ़ी को अपनी संस्कृति की जानकारी रहे इसलिए सभी पर्व एवं त्योहार को हम अपने बच्चों के साथ मिलकर मनाते हैं और इस माध्यम से हम लोग अपनी सभ्यता एवं संस्कृति की जानकारी आने वाली पीढ़ी को देते हैं। वनवासी-जनजाति समाज को सनातन संस्कृति का वाहक माना जाता है। जनजाति समाज में देवी देवताओं की पूजा, आराधना, उपासना और पर्वों को उल्लास से मनाने का प्रचलन हजारों वर्षों से निरंतर चला रहा है।”


झारखंड के अलावा मध्य प्रदेश के कट्ठीवाड़ा क्षेत्र के अंतर्गत डूंगरी माता का मंदिर भी स्थानीय जनजातीय-वनवासी अंचल की आस्था का केंद्र बिंदु है। पूरे प्रदेश से जनजाति समाज समेत सर्व समाज के लोग यहां अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और आदि शक्ति की प्रतिमूर्ति माता डूंगरी उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करती है।


जनजाति अंचल स्थित यह मंदिर हरी-भरी पहाड़ी पर चट्टानों के मध्य एक प्राकृतिक गुफा में बना हुआ है जिसे सैकड़ों वर्ष प्राचीन माना जाता है। नवरात्र के पर्व पर पूरे 9 दिन तक मंदिर परिसर में धार्मिक गतिविधियां आयोजित की जाती है जिसमें स्थानीय जनजातीय समाज बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता है।

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स्थानीय नागरिकों के अनुसार डूंगरी माता में जनजाति समाज की अनन्य आस्था है और स्थानीय जनजातियों का विश्वास है कि माता डूंगरी उनकी संरक्षिका है। महानवमी के अवसर पर जनजाति समाज के द्वारा मंदिर परिसर में प्रतिवर्ष कन्या भोज का भी आयोजन किया जाता है जो इस वर्ष भी किया जा रहा है।


वहीं बस्तर की अधिष्ठात्री देवी माँ दंतेश्वरी की उपासना जनजाति समाज के साथ-साथ सर्व समाज के द्वारा मिल जुलकर की जाती है। बस्तर में दशहरा का भी विशेष महत्व है। यहाँ दशहरा के अवसर पर माँ आदिशक्ति की उपासना कर रथयात्रा नुमा उनकी यात्रा निकाली जाती है, जो विश्व प्रसिद्ध है, जिसमें वनवासी समाज बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है।