रिज़ीम चेंज का मोहरा (भाग - 2) : सोनम वांगचुक का भारत विरोधी शक्तियों से संबंध

सोनम वांगचुक के अधिकांश प्रोजेक्ट सीआईए और डीप स्टेट से जुड़ी संस्था फोर्ड फाउंडेशन, टाटा ट्रस्ट, डैन चर्च एड और करुणा ट्रस्ट द्वारा फंड किए जाते थे। सोनम वांगचुक की संस्था को होने वाले विदेशी फंडिंग को लेकर भी कुछ रिपोर्ट्स उनकी पत्नी के संबंधों के पहलू को भी देखने को मजबूर करती है।

The Narrative World    17-Oct-2024   
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रिज़ीम' का अर्थ होता है सत्ता और चेंज का अर्थ होता है परिवर्तन। हम इस आलेख शृंखला में रिज़ीम चेंज अर्थात सत्ता परिवर्तन के मोहरे की बात कर रहे हैं, जिनमें से एक है सोनम वांगचुक। 'रिज़ीम चेंज का मोहरा', इस शृंखला के पहले भाग में स्वघोषित पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के डीप स्टेट कनेक्शन की पड़ताल की गई थी।


आज इस दूसरे भाग में हम सोनम वांगचुक के डीप स्टेट से और गहरे संबंधों की पड़ताल करने जा रहे हैं। आखिर कैसे सोनम वांगचुक के डीप स्टेट से जुड़े संस्थाओं से संबंध हैं, और कैसे ये काम करते हैं।


दरअसल भारत में 'सत्ता परिवर्तन' कराने के लिए अमेरिकी संस्था सीआईए और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी, दोनों लगे हुए हैं। इसमें पश्चिम का पूरा वैश्विक इकोसिस्टम और चीनी कम्युनिस्ट इकोसिस्टम भी शमिल है। भारत के विरुद्ध सत्ता परिवर्तन हेतु डीप स्टेट के इस खेल में सबसे बड़ा रोल अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट अर्थात विदेश विभाग का है।


यह वही विभाग है जिसने हाल ही में बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन कराया है, और अपने एक कठपुतली मोहम्मद यूनुस को बांग्लादेश का प्रमुख बनाकर बैठाया है। इस मोहम्मद यूनुस का अमेरिका और डीप स्टेट से जुड़े लोगों से सीधा संबंध है। इसी तरह सोनम वांगचुक भी डीप स्टेट और अमेरिकी संस्थाओं से सीधे संबंध रखते हैं।


मीडिया में फैलाए प्रोपेगेंडा के अनुसार सोनम वांगचुक एक इंजीनियर, इनोवेटर और शिक्षाविद हैं, और साथ ही क्लाइमेट को लेकर एक जागरूक एक्टिविस्ट हैं। गौरतलब है कि सोनम वांगचुक एक ऐसे परिवार से आते हैं जो लद्दाख का समृद्ध एवं प्रभावशाली परिवार रहा है। सोनम के पिता सोनम वांग्याल कांग्रेस के बड़े नेता थे, साथ ही वो जम्मू कश्मीर सरकार में मंत्री भी थे।

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जैसा कि हमने आपको पिछले लेख में बताया था कि सोनम वांगचुक ने अपनी संस्था के गठन के बाद से ही जितने प्रोजेक्ट लिए, उनमें से अधिकांश में विदेशी संस्थाओं की फंडिंग होती थी।


सोनम वांगचुक के अधिकांश प्रोजेक्ट सीआईए और डीप स्टेट से जुड़ी संस्था फोर्ड फाउंडेशन, टाटा ट्रस्ट, डैन चर्च एड और करुणा ट्रस्ट द्वारा फंड किए जाते थे। सोनम वांगचुक की संस्था को होने वाले विदेशी फंडिंग को लेकर भी कुछ रिपोर्ट्स उनकी पत्नी के संबंधों के पहलू को भी देखने को मजबूर करती है।


दरअसल सोनम वांगचुक की मुलाकात 1980 के दशक के अंतिम वर्षों में एक अमेरिकी महिला रेबेका नॉर्मन से हुई थी, जिसके बाद दोनों ने वर्ष 1996 में विवाह कर लिया। रेबेका ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के 'स्कूल ऑफ इंटरनेशनल ट्रेनिंग' (SIT) से अपनी पढ़ाई पूरी की। यह एसआईटी महाविद्यालय अमेरिका में एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में स्थापित है, जिसका अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट से सीधा सम्बंध है।

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इस एसआईटी महाविद्यालय को फोर्ड फाउंडेशन, जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसायटी फाउंडेशन और बी एंड एमजी फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित किया जाता है। यह सभी संस्थाएं सीआईए और डीप स्टेट का ही हिस्सा हैं।


खैर, यहां बात सोनम वांगचुक की है। अब रेबेका से विवाह होने बाद जैसे सोनम वांगचुक की जिंदगी ही बदल गई। सोनम वांगचुक को विदेशी संस्थाओं से व्यापक समर्थन मिलना शुरू हुआ। वर्ष 2002 में सोनम वांगचुक को अशोका फेलोशिप मिला, जो स्कॉल फाउंडेशन और रॉकफेलर फाउंडेशन जैसी संस्थाओं से वित्तपोषित है। इसके बाद शुरू होता है सोनम वांगचुक का भारत सरकार और कांग्रेस पार्टी से संबंध।

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वर्ष 2004 में जब यूपीए की सरकार बनी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री चुने गए तब सोनम वांगचुक को दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार से विशेष समर्थन हासिल हुआ। पहले तो सोनम वांगचुक को 'लद्दाख हिल काउंसिल विज़न डॉक्यूमेंट लद्दाख 2025' की ड्राफ्ट कमेटी में शामिल किया गया। और फिर इसके बाद शिक्षा एवं पर्यटन के बनने वाली नीति के लिए भी सोनम वांगचुक को कमेटी में रखा गया। सोनम वांगचुक द्वारा बनाए गए डॉक्यूमेंट का अंततः मनमोहन सिंह ने 2005 में विमोचन किया।


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वर्ष 2005 में ही सोनम वांगचुक को मनमोहन सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय में प्राथमिक शिक्षा के नेशनल गवर्निंग काउंसिल में सदस्य के रूप में शामिल किया गया। फिर 2007 से 2010 तक सोनम वांगचुक ने डेनमार्क के एक एनजीओ के शिक्षा सलाहकार के रूप काम किया। यह एक ऐसा एनजीओ था जो शिक्षा मंत्रालय को शिक्षा में सुधार के लिए काम कर रहा था।


इस बीच चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस के बीच एक गुप्त समझौता होता है और दूसरी ओर एक ऐसी फिल्म बनती है, जिसमें सोनम वांगचुक से प्रेरित एक किरदार शामिल किया जाता है। यह फ़िल्म होती है आमिर खान की। गौरतलब है कि यह वही आमिर खान हैं जिनकी बाद में रिलीज़ हुई फ़िल्म भारत में तो 100 करोड़ भी नहीं कमा पाती, लेकिन चीन में अचानक 1000 करोड़ का बिजनेस कर लेती हैं।


खैर, हम फिर आते हैं सोनम वांगचुक पर। इसके बाद सोनम वांगचुक को वैश्विक परिदृश्य में लाने का काम शुरू होता है 2016 में। इसी वर्ष वांगचुक को इंटरनेशनल फ्रेड एम. पैकर्ड पुरस्कार दिया जाता है। यह पुरस्कार प्रकृति के संरक्षण के लिए स्विट्जरलैंड स्थित एक संस्था देती है। इसमें दिलचस्प बात यह है कि इस पुरस्कार को पूरी तरह से रॉकफेलर फाउंडेशन, प्यू, पैकवर्ड फाउंडेशन जैसी संस्थाएं वित्तपोषित करती हैं।


वर्ष 2017 में सोनम वांगचुक को टीएन खोशू मेमोरियल द्वारा पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिए पुरस्कृत किया जाता है। गौरतलब है कि यह पुरस्कार फोर्ड फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित होता है। इसके बाद वर्ष 2018 में सोनम वांगचुक को मिलता है रैमन मैग्सेसे पुरस्कार, और यहीं से उसे बनाया जाता है रिज़ीम चेंज का मोहरा।


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रैमन मैग्सेसे पुरस्कार के माध्यम से सोनम वांगचुक की छवि निर्माण और मजबूत की जाती है। इसके माध्यम से भारत के युवाओं के बीच वांगचुक को एक महान शिक्षाविद, इनोवेटर और पर्यावरणविद के रूप में पेश किया जाता है। इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह रैमन मैग्सेसे पुरस्कार भी फोर्ड, रॉकफेलर जैसे संस्थाओं से जुड़ा हुआ है, जिसके सीधे तार डीप स्टेट और सीआईए से हैं।


वहीं सोनम वांगचुक जिस एनजीओ 'लीड इंडिया' से जुड़े हैं, वो भी फोर्ड फाउंडेशन से वित्तपोषित है। इसके अलावा सोनम वांगचुक का सम्बंध इंटरनेशनल एसोशिएशन फ़ॉर लद्दाख स्टडीज़ से भी है, जिसे भी फोर्ड फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित किया गया है।


दरअसल सोनम वांगचुक सीआईए, डीप स्टेट और भारत विरोधी शक्तियों का वह मोहरा है, जो समय-समय पर अपना रंग दिखाता रहा है। इस दूसरे भाग में तो हमने आपको सोनम वांगचुक के उन लिंक के बारे में बताया है, जिसके तार सीधे भारत विरोधी शक्तियों से मिलते है अगले और अंतिम भाग में आपको सोनम वांगचुक की गतिविधियों की पूरी जानकारी और पड़ताल मिलेगी।