बिरसा मुंडा का भारत के स्वाधीनता समर में अभूतपूर्व योगदान रहा है। अमर बलिदानी बिरसा मुंडा भारतीय स्वाधीनता संग्राम के एक प्रमुख जनजाति नेता और क्रांतिकारी थे, जिनका योगदान विशेष रूप से झारखंड और आसपास के क्षेत्रों में जनजाति समुदायों के बीच व्यापक प्रभाव डालने वाला रहा है। उन्होंने ब्रिटिश सरकार की शोषणकारी नीतियों और ज़मींदारी व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष किया, जो जनजातियों के समुदायों पर बुरी तरह से असर डाल रही थीं।
बिरसा मुंडा ने जनजाति समाज में एक बड़ी सामाजिक और राजनीतिक चेतना उत्पन्न की, जिसे 'उलगुलान' या महान विद्रोह के रूप में जाना जाता है। उन्होंने जनजातियों को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संगठित किया और उन्हें जागरूक किया कि वे अपने पारंपरिक अधिकारों और भूमि पर अपने स्वामित्व के लिए संघर्ष करें।
बिरसा मुंडा ने जनजाति समाज में कई धार्मिक और सामाजिक सुधार किए। उन्होंने अपने लोगों को अंधविश्वासों, पुरानी प्रथाओं, और विदेशी धर्मों के प्रभाव से दूर रहने का संदेश दिया और एक नई धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की स्थापना की, जिसे 'बिरसाइत धर्म' के रूप में जाना जाता है।
ब्रिटिश सरकार की ज़मींदारी और वन नीतियों के अंतर्गत जनजातियों की भूमि पर अधिकार हो रहा था और उन्हें वन क्षेत्रों में प्रवेश से रोका जा रहा था। बिरसा ने इन नीतियों का विरोध किया और जनजातियों को संगठित कर अपनी भूमि को वापस लेने के लिए प्रेरित किया।
बिरसा मुंडा का संघर्ष न केवल जनजाति स्वाभिमान के लिए था, बल्कि उन्होंने जनजातियों के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा के लिए भी आवाज उठाई। उनका उद्देश्य जनजाति समाज को जागरूक और आत्मनिर्भर बनाना था।
उन्हें 1900 में ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार कर कलकत्ता जेल में डाल दिया गया, जहाँ भोजन में काँच और विष दिए जाने से वह धीरे-धीरे रोगग्रस्त होकर मृत्यु की ओर बढ़ते गए और संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। यह उनके राष्ट्र और धर्म के लिए दिया गया बलिदान था। उनके बलिदान ने स्वाधीनता आंदोलन को आगे चलकर जनजाति अधिकारों और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया। बिरसा मुंडा आज भी एक अमर स्वतंत्रता सेनानी और जनजाति समुदाय के प्रेरणा स्रोत के रूप में सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे।
लेख
डॉ नुपूर निखिल देशकर