ब्रिटिश ईसाइयों के विरुद्ध लरका विद्रोह के सूत्रधार - वीर बुधु भगत

अंग्रेजों के पास अत्याधुनिक बंदूकें थीं, जबकि बुधु भगत और उनके साथियों के पास तीर-कमान और तलवार जैसे हथियार थे।

The Narrative World    26-Oct-2024   
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बुधु भगत का जन्म झारखंड के रांची जिले में 17 फरवरी 1792 को हुआ था। उरांव जनजाति में जन्मे बुधु भगत में अद्भुत संगठन क्षमता थी।
 
1857 के स्वतंत्रता संग्राम से 25 वर्ष पूर्व, वर्ष 1832 में, बुधु भगत ने "लरका विद्रोह" नामक ऐतिहासिक आंदोलन का सूत्रपात किया।
 
बुधु भगत ने ईसाई अंग्रेजों के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध शुरू किया और गांव के लोगों को अंग्रेजों से युद्ध करने के लिए तैयार किया। उनकी संगठन क्षमता ऐसी थी कि लोगों ने उन्हें देवता का अवतार माना।
 
उन्होंने सिल्ली, चोरेया, पिठौरिया, लोहरदगा, और पलामू में लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ संगठित करने का कार्य किया। बुधु भगत ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था।
 
इस आंदोलन में सैकड़ों वनवासी परिवार शामिल हुए थे, जिनका नेतृत्व प्रमुख रूप से 7 लोगों ने अलग-अलग स्तर पर किया था। बुधु भगत, हलधर, गिरधर, उनकी बहन रुनिया और झुनिया समेत कई जनजाति योद्धा इस संघर्ष में शामिल थे, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी थीं।
 
इन क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए अंग्रेज ईसाइयों की सेना ने दिन-रात एक कर दिया था, लेकिन 2 वर्षों तक वे पूरी तरह नाकाम रहे।
 
लरका क्रांति के दौरान क्रांतिकारियों ने अंग्रेज ईसाइयों की सेना के कई हथियार एवं गोला-बारूद डिपो को ध्वस्त कर दिया था और कई ब्रिटिश अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिया था, इस कारण ब्रिटिश ईसाई सत्ता के बीच इनका भय व्याप्त हो चुका था।
 
लरका आंदोलन में शामिल नेतृत्वकर्ताओं को पकड़ने के लिए अंग्रेज ईसाइयों ने पहले तो तरह-तरह के अभियान चलाए, और इसके बाद इन क्रांतिकारियों पर इनाम भी घोषित किए।
 
इनाम के लालच में आंदोलन से जुड़े ही एक व्यक्ति ने अंग्रेजों को क्रांतिकारियों की जानकारी दी और 14 फरवरी 1832 के दिन अंग्रेजों की सेना ने बुधु भगत और उनके साथियों को सिलगाई गांव में घेर लिया।
 
अंग्रेजों के पास अत्याधुनिक बंदूकें थीं, जबकि बुधु भगत और उनके साथियों के पास तीर-कमान और तलवार जैसे हथियार थे।
 
अंग्रेजों की चेतावनी के बाद भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया और अपने अनुयायियों के साथ अंग्रेजों से युद्ध करते हुए बलिदान हो गए।
 
इस युद्ध में उनके भाई, भतीजे, और दोनों बेटे उदय और करण तथा बुधु भगत की दोनों बेटियां रुनिया और झुनिया भी वीरगति को प्राप्त हुईं।
 
इन स्वाधीनता सेनानियों ने मां भारती को स्वतंत्र कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, लेकिन ब्रिटिश सत्ता के सामने नतमस्तक नहीं हुए।