बस्तर की अनसुनी कहानी (भाग-6) : कम्युनिस्ट आतंकियों ने केदार के सामने उसके भाई के अमाशय को निकाल कर की थी नृशंस हत्या

"बस्तर की अनसुनी कहानी" के इस छठे भाग में रूपेंद्र कश्यप और केदारनाथ कश्यप की कहानी, जिन्हें मारने के लिए माओवादियों ने बीच बाजार में उनपर हमला किया और एक भाई के सामने दूसरे भाई के अमाशय को काट कर उसकी नृशंस हत्या कर दी।

The Narrative World    09-Oct-2024   
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बस्तर की सबसे रौनक भरी जगहों में से एक होता है साप्ताहिक हाट (बाजार), जहाँ बड़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीण तो मौजूद होते ही हैं, वहीं इन स्थानों में आसपास के व्यापारी भी पहुंचते हैं, जो अपना सामान बेचते हैं।


इन बाजारों से ही स्थानीय ग्रामीण अपने सप्ताह भर के सामान खरीदते हैं, वहीं इनके माध्यम से ही ग्रामीणों को अपने ही क्षेत्र में कई सामान मिल जाते हैं। लेकिन बस्तर के इन बाजारों की एक ऐसी सच्चाई भी है, जिसे आम बस्तरवासी जानते भी हैं, और उसी सच्चाई के साथ जीने को मजबूर हैं।


यह सच्चाई है बस्तर के हाट-बाजारों में माओवादियों के खूनी खेल की। दरअसल माओवादियों ने इन बाजारों में कई बार स्थानीय ग्रामीणों की हत्याएं की है, कभी किसी को मुखबिर बताकर, तो कभी किसी अन्य कारणों से।


इन्हीं परिस्थितियों का सामना किया था कोंडागांव के मर्दापाल में रहने वाले कश्यप भाइयों ने, जो स्थानीय क्षेत्र में गल्ला व्यापारी का काम करते थे, फिर माओवादियों ने उनमें से एक भाई की हत्या कर दी, और हत्या भी ऐसी कि मन में सिहरन उठ जाए।


'बस्तर की अनसुनी कहानी' के इस छठे भाग में रूपेंद्र कश्यप और केदारनाथ कश्यप की कहानी, जिन्हें मारने के लिए माओवादियों ने बीच बाजार में उनपर हमला किया और एक भाई के सामने दूसरे भाई के अमाशय को काट कर उसकी नृशंस हत्या कर दी।

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1970 के दशक में पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले में एक नरसंहार काफी चर्चा में आया था। इस नरसंहार को कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े लोगों ने अंजाम दिया था, जिसमें बर्धमान के ही सेन परिवार के दो भाइयों को मारा गया था। यह हत्या इतनी नृशंस थी कि मारने के बाद दोनों मृतक युवकों के खून से सने चांवल को उनकी माँ को खिलाया गया था, और इस हैवानियत को अंजाम दिया था सीपीएम अर्थात मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने।


इस नरसंहार की चर्चा हालांकि बर्धमान और पश्चिम बंगाल के बाहर नहीं हुई लेकिन यह ज़रूर स्पष्ट हुआ कि कम्युनिस्टों की हिंसक प्रवृत्ति एवं उनकी आतंकी गतिविधि लगभग एक समान ही होती है।


“पश्चिम बंगाल में जिस घटना को कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने अंजाम दिया था, ठीक वैसी ही घटना को छत्तीसगढ़ के बस्तर में उसी कम्युनिस्ट विचारधारा के 'आतंकियों' ने अंजाम दिया। बस्तर में भी इन कम्युनिस्ट आतंकियों (माओवादी आतंकी) ने दो भाइयों पर जानलेवा हमला किया और अंततः एक भाई की नृशंसता से हत्या कर दी। यह कहानी माओवादी आतंक की है, यह कहानी कम्युनिस्ट आतंकवाद की है, यह कहानी नक्सलवाद से पीड़ित बस्तरवासी की है।”


बस्तर संभाग के कोंडागांव जिले के मर्दापाल क्षेत्र में रहने वाला जनजातीय परिवार गल्ला व्यापारी का कार्य करता था। इस परिवार के दो भाई रूपेंद्र कश्यप और केदार कश्यप इस व्यापार को संभालते थे।


इसी बीच माओवादियों ने रूपेंद्र कश्यप के नाम पर्चा जारी किया, जिसके बाद पूरा परिवार भयभीत था। लेकिन दोनों भाइयों के सामने पूरे परिवार का भरण-पोषण भी था, जिसे करना उनकी जिम्मेदारी थी।


परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए दोनों भाई मर्दापाल के आसपास के गांवों में लगने वाले साप्ताहिक बाजारों में जाकर अपना व्यापार करते थे। इसी बीच ऐसे ही एक गांव मटवाल के साप्ताहिक बाजार में दोनों भाई पहुँचे थे। रूपेंद्र और केदार दोनों अपने व्यापार में लगे थे, इसी बीच उन्हें बाजार में ही तीन हथियारबंद माओवादी दिखाई दिए।


चूंकि रूपेंद्र को पहले ही माओवादियों ने पर्चा जारी कर धमकी दी हुई थी, ऐसे में दोनों भाइयों को कुछ अनहोनी को लेकर आशंका हुई, और इतने में ही हथियार लेकर घूम रहे कम्युनिस्ट आतंकियों ने पीछे से ही उनपर गोलियां चलानी शुरू कर दी।


माओवादियों की गोलीबारी का पहला शिकार रूपेंद्र बना, जिसे कुल तीन गोलियां लगी। पीठ और कंधों पर लगी ये गोलियां रूपेंद्र को लगभग मूर्छित कर चुकी थी। वहीं पास में ही खड़े केदार के जांघ में जाकर एक गोली लगी, जो रूपेंद्र के कोहनी को छूकर निकली थी।


दोनों भाई इन कम्युनिस्ट आतंकियों से जान बचाकर भागने लगे, लेकिन गोली लगने के कारण रूपेंद्र घायल अवस्था में माओवादियों के कब्जे में आ गया। आसपास के दुकानों और लोगों से दोनों भाइयों ने मदद भी मांगी, लेकिन कम्युनिस्ट आतंकियों के हाथों में हथियार और आंखों में लाल आतंक देखकर किसी ने मदद करने का साहस नहीं किया।


“माओवादियों ने रूपेंद्र को पकड़ने के बाद कई गोलियां उसपर फायर की, जिससे रूपेंद्र नीचे गिर पड़ा। इनसब के बाद भी जब माओवादियों को रूपेंद्र के मरने का विश्वास नहीं हुआ तो उन्होंने रूपेंद्र के अमाशय को तेज छुरे से काटकर निकाल लिया।”


अपने भाई के साथ की गई इस नृशंसता को दूर में छिपकर बैठा केदार देख रहा था, लेकिन वह मजबूर था, उसे पता था कि यदि वो सामने जाएगा तो उसकी भी हत्या कर दी जाएगी।


द नैरेटिव की टीम ने जब केदार से इस घटना के बारे में बात की तो, वह अपनी कहानी बताते बताते ही भावुक हो गया, उसका गला भर आया। केदार ने बताया कि जब उसके भाई को मारा जा रहा था तब उसकी माँ भी वहीं मौजूद थी, और वो अपने बच्चे के जान की भीख मांग रही थी।

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केदार ने यह भी बताया कि इस घटना के बाद उसके पैर लगभग चलने लायक नहीं रह गए थे, और जांघ में लगी गोली ने उसे मजबूर बनाकर रख दिया था।


अपनी विवशता बताते हुए केदार ने बताया कि जब माओवादियों ने उसके भाई की हत्या की, उसके बाद पूरा परिवाद सदमे में था। वहीं दूसरी ओर माओवादियों ने केदार के व्यापार करने पर पाबंदी लगा दी थी। इसके चलते उनके घर की आर्थिक स्थिति पूरी तरह चौपट हो गई, और परिवार सड़क पर आने की स्थिति में आ गया था।