जनजातीय गौरव दिवस : संस्कृति रक्षा और राष्ट्र निर्माण में जनजातीय समाज के योगदान का स्मृति दिवस

देश का ऐसा कोई प्राँत, कोई कोना ऐसा नहीं जहाँ अपनी संस्कृति रक्षा और राष्ट्र रक्षा बलिदान न हुआ हो। जनजातीय समाज ने दोनों दिशाओं में संघर्ष किया है। समाज में कुछ ऐसी विलक्षण विभूतियाँ हुईं हैं जिन्होंने अकेले इन दोनों दिशाओं में संघर्ष किया।

The Narrative World    14-Nov-2024   
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जनजातीय समाज ने एक ओर वन, पर्वत और नदियों के संरक्षण के माध्यम से संपूर्ण प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा में अपना जीवन समर्पित किया है वहीं राष्ट्र पर संकट आते ही युद्ध के मैदान में प्रत्येक विदेशी आक्रमण का सशस्त्र सामना भी किया है। समाज, संस्कृति और राष्ट्र के लिये जनजातीय समाज के अभूतपूर्व योगदान का स्मरण करने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 नवम्बर को जनजातीय गौरव दिवस आयोजन करने की परंपरा आरंभ की। 15 नवम्बर बलिदानी भगवान बिरसा मुँडा की जयंती है।

भारत यदि सोने की चिड़िया रहा है, विश्व गुरु रहा है तो इसमें जनजातीय समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सोने की चिड़िया का अर्थ है आर्थिक संपन्नता और विश्व गुरु होने का अर्थ ज्ञान विज्ञान में सर्वोपरि। भारत की संपन्नता शिल्प, कौशल और विशिष्ट तकनीकि से निर्मित वस्तुओं के निर्यात में रही है। इनका निर्माण जनजातीय समाज के कुटीर उद्योगों में होता था। इसकी झलक जनजातीय समाज की रंगोली, भीति चित्रों में मिलती है। यहाँ से ये वस्तुएँ जलयानों द्वारा दुनियाँ भर में जातीं थीं और बदले में सोना आता था, इसलिए भारत सोने की चिड़िया कहलाया।


प्राचीन भारत में शिक्षा, चिकित्सा और अनुसंधान के सभी केन्द्र वन में होते थे। इनका संचालन तो ऋषि-महर्षि करते थे लेकिन इन केन्द्रों और आश्रमों सुरक्षा से लेकर अन्न सामग्री जुटाने तक की संपूर्ण व्यवस्था जनजातीय समाज के बंधुओं के हाथ में ही होती थी। इन आश्रमों की सुरक्षा के लिये संघर्ष और व्यवस्था केलिये धन जुटाने की कथाओं का वर्णन पुराणों में है।


इसी प्रकार भारत पर हुये प्रत्येक आक्रमणकारी का सामना करने में भारतीय जनजातीय समाज कभी पीछे नहीं रहा। इसे भारत पर यूनानी हमलावर सिकन्दर के आक्रमण से लेकर अंग्रेजी काल तक देखा जा सकता है। जनजातीय समाज के यौद्धाओं ने हर आक्रमण का डटकर सामना किया।


सल्तनतकाल और अंग्रेजीकाल में जनजातीय समाज के संघर्ष और बलिदान की घटनाओं से इतिहास के पन्ने भरे हैं। अंग्रेजों ने भारत पर अपना शासन स्थापित करने के बाद भारतीय समाज का केवल शोषण और दमन ही नहीं किया था अपितु भारतीय संस्कृति को नष्ट करने का भी काम किया था। यह काम वनक्षेत्र में निवास करने वाले जनजातीय समाज में अधिक हुआ। अंग्रेजों ने भारत पर अपनी सत्ता स्थापित करने और उसे बनाये रखने के लिये बड़ी कूटनीति से काम लिया। उन्होंने समूची वन संपदा पर अधिकार करके वनों में निवास करने वाले जनजातीय समाज के सामने पेट भरने का संकट उपस्थित कर दिया। दूसरे वनों में चर्च सक्रिय हुआ।


अंग्रेजों ने वन संपदा के संग्रहण केलिये जो ठेकेदार खड़े किये थे वे नगरीय समाज के थे। जब वनवासियों के सामने पेट भरने की समस्या आई तो उनमें से कुछ को सिपाही या चौकीदार बना दिया और उन्हें अपने ही समाज बंधुओं के शोषण दमन के काम में लगा दिया। इसके पीछे अंग्रेजों की योजना थी कि यदि शोषण दमन से कुछ नाराजी हो तो वह अंग्रेजों के विरुद्ध न हो अपितु सामने दिख रहे उनकी ही समाज के सिपाहियों और नगरीय समाज के ठेकेदारों के प्रति हो। इसी स्थिति का लाभ ईसाई धर्म प्रचारक उठा रहे थे।


मिशनरीज कुछ कूटरचित कहानियों और भावुक प्रसंग सुनाकर जनजातीय समाज को अन्य समाज से ही नहीं उनकी जड़ों से दूर करने का प्रयास करते थे। शिक्षा और स्वास्थ्य सबंधी सहायता का आकर्षण देकर मतान्तरण करा रहे थे। अंग्रेजीकाल में जनजातीय समाज ने पूरे देश में इन दोनों मोर्चों पर एक साथ संघर्ष किया।


एक ओर अपनी संस्कृति रक्षा के लिये जन जागरण अभियान और दूसरा अंग्रेजों से भारत की मुक्ति के लिये सशस्त्र संघर्ष। लेकिन जन सामान्य को जनजातीय समाज के इस संघर्ष की जानकारी सबसे कम है। जन सामान्य को यह जानकारी देने के लिये ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2021 में प्रतिवर्ष 15 नवम्बर को जनजातीय गौरव दिवस आयोजित करने की घोषणा की।


जनजातीय गौरव दिवस आयोजन का उद्देश्य


प्रत्येक समाज की अपनी विशिष्टताएं होतीं हैं जो उनकी मूल संस्कृति और परंपराओं में प्रतिबिम्बित होतीं हैं। स्वतंत्रता के बाद जनजातीय समाज के विकास के लिये प्रत्येक सरकार ने योजनाएँ बनाईं। लेकिन दो बातों पर ध्यान नहीं दिया। एक तो जनजातीय समाज का गौरवमय अतीत समाज के सामने कैसे आये और उनकी परंपराओं का संरक्षण कैसे हो। इसके अतिरिक्त एक और बात सरकार ने उनकी हित की जो योजनाएँ बनाती है, कई बार जानकारी के अभाव में वह समाज उन योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाता।


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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जनजातीय गौरव दिवस आयोजित करने के पीछे यही प्रमुख उद्देश्य रहे हैं। एक तो जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत, राष्ट्र रक्षा के लिये उनके द्वारा किये गये बलिदान से समाज अवगत हो, दूसरा सरकार की योजनाओं की उन्हें जानकारी मिले, तीसरा वे अपनी संस्कृति और परंपराओं का महत्व समझें और चौथा उनमें स्वत्व का वोध हो। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस से एक "जन मन योजना" जोड़ी और "विकसित भारत संकल्प यात्रा" से जोड़ा।


प्रधानमंत्री जनमन योजना को "प्रधानमंत्री-जनजाति न्याय महा अभियान" के रूप में जाना जाता है इसका उद्देश्य देश के सभी राज्यों में निवासरत जनजातीय समुदायों को आत्मनिर्भर बनाना है। इसके लिये उनके शैक्षिक, आर्थिक, स्वास्थ्य और सामाजिक विकास करना है। उनके विकास केलिये सरकार की अनेक योजनाएँ हैं लेकिन जानकारी के अभाव में वे इसका लाभ नहीं उठा पाते। उन्हें इन योजनाओं की पर्याप्त जानकारी और योजना का लाभ उठाने केलिये उचित मार्गदर्शन देने के लिये 'विकसित भारत संकल्प यात्रा' का आयोजन किया गया।


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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2021 में पहले जनजातीय गौरव दिवस आयोजन के साथ इस यात्रा को हरी झंडी दिखा कर रवाना किया थाव। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य सरकार की प्रमुख योजनाओं के लाभ सभी लक्षित लाभार्थियों तक पहुंचाना है। यात्रा पर निकले इन वाहनों में जनजातीय समाज के हित में लागू की गई सभी योजनाओं की जानकारी और इच्छुक व्यक्तियों के लिये आवेदन पत्र भी होते हैं। ये यात्रा वाहन जनजातीय गाँवों और बस्तियों में कार्यक्रम आयोजित करते हैं और योजनाओं की जानकारी देने के साथ जनजातीय समाज के गौरव शाली इतिहास की जानकारी भी देते हैं।


जनजातीय गौरव दिवस केलिये 15 नवम्बर तिथि का चयन


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जनजातीय गौरव दिवस आयोजित करने केलिये 15 नवम्बर की तिथि का चयन भी विशेष महत्वपूर्ण है। राष्ट्ररक्षा के लिये जनजातीय समाज ने असंख्य बलिदान दिया है। देश का ऐसा कोई प्राँत, कोई कोना ऐसा नहीं जहाँ अपनी संस्कृति रक्षा और राष्ट्र रक्षा बलिदान न हुआ हो। जनजातीय समाज ने दोनों दिशाओं में संघर्ष किया है। समाज में कुछ ऐसी विलक्षण विभूतियाँ हुईं हैं जिन्होंने अकेले इन दोनों दिशाओं में संघर्ष किया।

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जनजातीय संस्कृति रक्षा केलिये टोलियाँ बनाकर जन जागरण अभियान चलाया, समझाकर उनके स्वत्व से जोड़ा, प्रवचन किये और दूसरी ओर क्राँतिकारी दल गठित करके विदेशी सत्ता से सशस्त्र संघर्ष भी किया। ऐसे ही विलक्षण महानायक बिरसा मुँडा थे। वे केवल चौबीस वर्ष की आयु में बलिदान हुये। उनकी जन्म तिथि 15 नवम्बर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी तिथि का चयन किया और वर्ष 2021 को उनके जन्मस्थान जाकर उन्हें नमन् किया और उनकी जन्मतिथि 15 नवम्बर को प्रतिवर्ष जनजातीय गौरव दिवस मनाने की घोषणा की।


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नरेंद्र मोदी 15 नवम्बर को केवल औपचारिक उत्सव आयोजन की तिथि तक सीमित नहीं रखना चाहते थे। वे इस दिन को जनजातीय समाज के उत्थान और विकास का निमित्त भी बनाना चाहते थे। इसलिये इस दिन गौरव दिवस के साथ प्रतिवर्ष दो यात्राएँ निकालने के भी निर्देश दिये। एक प्रतिवर्ष क्षेत्र और जिलों का निर्धारण करके शासन का एक ऐसा सुसज्जित वाहन जनजातीय क्षेत्रों में जाय जिसमें जनजातीय समाज के विकास की सभी योजनाओं का विवरण हो और उनका लाभ उठाने का मार्गदर्शन भी दिया जाए। इसके एक अभियान अन्य समाज में चले जिसमें जनजातीय समाज के राष्ट्र निर्माण में योगदान का विवरण दिया जाय। नरेंद्र मोदी ने एक यात्रा को "जन मन" नाम दिया और दूसरी यात्रा को "संकल्प यात्रा" नाम दिया।


जीवन परिचय : भगवान बिरसा मुँडा


संपूर्ण भारतीय जनजातीय समाज क्राँतिकारी बिरसा मुंडा को एक अवतारी पुरुष मानता है और भगवान के रूप में मान्यता देता हैं। बिरसा मुंडा ने अपनी निडरता, कौशल और आत्मबल से ब्रिटिश सरकार की जड़ें हिला दी थीं। उनके आव्हान पर सैकड़ों हजारों जनजातीय युवा एकत्र हो जाते थे। उत्पीड़न के विरुद्ध आरंभ उनका आंदोलन 'उलगुलान' या क्रांति कहा गया।


भगवान बिरसा मुँडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को झारखंड राज्य के अंतर्गत रांची जिले के उलिहातू ग्राम में हुआ था। उनका जन्म वर्ष कहीं कहीं 1872 भी लिखा है पर सरकारी रिकार्ड में 1875 ही माना गया है। पिता सुगना मुँडा बकरी चराने का काम करते थे। माता करमी हातू महुआ आदि वनोपज बीनकर बदले मे आटा आदि ले आतीं थीं। बिरसा जी के दो भाई और दो बहने भी थीं।


उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके गाँव के शिक्षक जयपाल नाग द्वारा हुई। 1880 में आगे पढ़ने के लिये साल्गा गाँव के ईसाई मिशनरीज स्कूल भेजे गये। वहाँ उनका मतान्तरण हुआ और नाम बिरसा डेविड रख दिया गया। उन दिनों यह पूरा क्षेत्र ईसाई मिशनरीज के प्रभाव में था और अधिकांश लोगों का मतान्तरण कर दिया गया था। बिरसा जी बचपन से कुशाग्र बुद्धि और शारीरिक रूप से वलिष्ट थे। वे प्रतिदिन व्यायाम करते थे। उन्हें अपनी परंपराओं से लगाव था। उस विद्यालय जब भी शिक्षक जनजातीय परंपराओं का परिहास करते तो बिरसा जी आपत्ति करते थे।


बिरसा जी को ईसाई मत की प्रशंसा पर आपत्ति नहीं थी लेकिन भारतीय परंपराओं विशेषकर जनजातीय समाज की परंपराओं का उपहास उन्हें पसंद न था। एक दिन वे इसी विषय पर पादरी से तर्क करने लगे तो उन्हें विद्यालय से निकाल दिया गया। यह 1890 का वर्ष था। पुरी नगर स्थित भगवान जगन्नाथजी जनजातीय समाज के कुल देवता माने जाते हैं। आज भी जगन्नाथ रथ यात्रा में सबर जनजातीय समाज के मुखिया शामिल होते हैं।


“बिरसा ने पुरी तक पदयात्रा की। वहाँ पहुंचकर पन्द्रह दिन की साधना की। उन्हें एक स्वप्न आया। इसका रहस्य उन्होंने पुजारी जी से समझा। पुजारी ने समझाया कि ईश्वर ने उन्हें एक विशेष निमित्त से भेजा है। यह सुनकर बिरसा ने ईसाई मत त्यागकर पुनः जनजातीय सनातन परंपरा में वापसी की। लौटकर अपने गाँव आये और समाज से अपनी परंपराओं पर दृढ़ रहने का अभियान चलाया। उन्होंने आडंबर और भ्रामक प्रचार से दूर रहने, नशा से दूर रहने, बलि प्रथा बंद करने, जनेऊ पहनने और अपने परिश्रम और पुरुषार्थ को जाग्रत करने का अभियान चलाया। वे गाँव गाँव जाते प्रवचन करते, लोगों को बुराइयों से दूर रहने और अपनी परंपराओं पर दृढ़ रहने का अभियान चलाया।”


जिन लोगों ने ईसाई मत अपना लिया था ऐसे लोगों की अपनी परंपराओं में वापसी भी कराई उनके चेहरे पर अद्भुत ओजस्विता थी। इसी कारण समाज ने उन्हें भगवान के समान आदर देना आरंभ कर दिया।

जब भगवान बिरसा मुँडा विभिन्न गाँवों की यात्रा कर रहे थे तब उन्होंने जनजातीय समाज का शोषण और दमन देखा। उन्होंने यह बंद करने के लिये भी युवकों की टोली बनाई तथा माँग रखी कि बैगारी बंद होनी चाहिए, उचित पारिश्रमिक मिलना चाहिए। ठेकेदारों के अत्याचार बंद होने चाहिए। यदि कहीं अत्याचार का समाचार मिलता तो बिरसा जी अथवा उनकी टोली के सदस्य पहुँच जाते। उनकी गतिविधियों से अंग्रेज सरकार भी बौखलाई और चर्च भी। अंत में 1895 में गिरफ्तार कर लिये गये। दो साल कारावास मिला। 1897 में रिहा हुये लौटकर उन्होंने पुनः अपनी गतिविधि तेज की।


इस बार उन्होंने संपूर्ण वन क्षेत्र की अलग-अलग टोलियाँ बनाईं और जनजातीय समाज को उनकी परंपरा में वापसी का अभियान चलाया ऐसी ही एक सभा डोंगरी सिबुआ गाँव में चल रही थी। पुलिस ने छापा मारा और सबको बंदी बनाकर ले गये। जब यह समाचार आसपास फैला तो जन समूह ने थाना घेर लिया और जनजातीय बंधुओं ने अपने सभी साथियों को छुड़ा लिया।


इस घटना के बाद क्षेत्र में सेना भेजी गई और भगवान बिरसा मुँडा की गिरफ्तारी पर पाँच सौ रुपये का इनाम भी घोषित हुआ। अंत में जनवरी 1900 में दोबारा बंदी बनाये गये। रांची जेल लाया गया। भारी प्रताड़ना दी गई अंत में 30 मई 1900 को संसार त्याग कर परम ज्योति में विलीन हो गये।


भगवान बिरसा मुंडा जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस आयोजन की शुरुआत भले वर्ष 2021 से की लेकिन वे अपने प्रथम कार्यकाल से ही जनजातीय समाज के गौरवशाली अतीत को पूरे देश के सामने लाने के लिये प्रयत्नशील रहे हैं।


प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त प्रयासों से स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय के रूप में संरक्षित और पुनःस्थापित किया। संग्रहालय का यह भवन पहले जेल थी। इसी जेल में भगवान बिरसा मुंडा कैद रहे थे। यह संग्रहालय लगभग 25 एकड़ में फैला है।


केन्द्र और राज्य सरकार की संयुक्त योजना के अंतर्गत इसको अंडमान निकोबार की कालापानी जेल की तरह लाइट और साउंड शो का आयोजन किया जाता है। इसमें भगवान बिरसा का जीवन वृत भी दिखाया जाता है। यह पर्यटकों में आकर्षण का केंद्र है।


संग्रहालय के बाहरी परिसर में भगवान बिरसा मुँडा के ग्राम उलिहातू का स्वरूप बनाया गया है। संग्रहालय में भगवान बिरसा मुंडा की 25 फीट की मूर्ति भी स्थापित की गई है। इसके साथ ही, संग्रहालय में विभिन्न आंदोलनों से जुड़े अन्य स्वतंत्रता सेनानियों जैसे शहीद बुधू भगत, सिद्धु-कान्हू, नीलांबर-पीतांबर, दिवा-किसुन, तेलंगा खड़िया, गया मुंडा, जात्रा भगत, पोटो एच, भागीरथ मांझी, गंगा नारायण सिंह की नौ फीट की मूर्तियां भी शामिल हैं। इस संग्रहालय का उद्घाटन प्रधानमंत्री ने 15 नवंबर 2021 को पहले जनजातीय गौरव दिवस पर किया था।

लेख

रमेश शर्मा

वरिष्ठ पत्रकार