जब कार्ल मार्क्स ने कथित कम्युनिस्ट क्रांति की बात की थी तब उसके विचार में चीन कभी नहीं था। इस कम्युनिस्ट विचार का विस्तार वह मुख्यतः यूरोप में करना चाहता था, जहाँ औद्योगिक क्रांति आ चुकी थी। कम्युनिस्ट विचार को उन देशों में फैलाना था जहाँ पूंजीवाद हावी था, जिसमें ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे देश शामिल थे।
हालाँकि अंततः वर्ष 1921 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का गठन किया गया और आरंभ में लगभग 12-13 लोग इसमें शामिल थे, जिसमें माओ-त्से-तुंग का नाम भी शामिल है।
अपने 103 वर्षों में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अब पूरे चीन सहित तिब्बत, पूर्वी तुर्कमेनिस्तान, इनर मंगोलिया, हांगकांग समेत विभिन्न क्षेत्रों में कब्जा कर लिया है, और साथ ही ताइवान पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहा है।
तथाकथित रूसी क्रांति से निकला सोवियत संघ का कम्युनिज़्म धीरे-धीरे गिरता हुआ अंततः 1991 में ना सिर्फ समाप्त हुआ बल्कि सोवियत का विघटन भी हुआ। लेकिन वर्तमान समय में सोवियत की तथाकथित क्रांति और लेनिन के विचार को आगे बढ़ाता हुआ हमें चीन दिखाई देता है, जो मार्क्सवाद, लेनिनवाद एवं स्टालिनवाद का एक मिश्रित स्वरूप है, जिसे चीनी तानाशाह माओ त्से-तुंग ने अपनाया था और अब यह माओवाद के नाम से जाना जाता है।
हालांकि खुद को एक कम्युनिस्ट तंत्र कहने वाला चीन अब आर्थिक नीतियों के मामले में पूरी तरह पूंजीवादी हो चुका है। सिर्फ चीनी आर्थिक नीतियां ही नहीं, बल्कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सभी बड़े नेता आर्थिक मामलों में पूंजीवाद का समर्थन करते हुए दिखाई देते हैं।
इस विषय पर रॉयल यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टिट्यूट नामक एक थिंक टैंक के सीनियर एसोसिएट फेलो चार्ली पार्टन का कहना था कि चीन में जो वर्तमान प्रणाली चल रही है उसका मुख्य कारण यह है कि कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी सहूलियत के अनुसार मार्क्सवाद की व्याख्या की है।
चीन की पूंजीवादी कम्युनिस्ट व्यवस्था को चीनी कम्युनिसि पार्टी के प्रमुख और वर्तमान चीनी तानाशाह शी जिनपिंग के बयानों से भी समझा जा सकता है। शी जिनपिंग ने चीन के इस दोहरी रणनीति की व्याख्या करते हुए कहा था कि यह 'चीनी विशेषताओं के साथ समाजवाद' है। शी जिनपिंग के इस विचार को चीन में व्यापक तौर पर प्रसारित किया गया है।
खैर, यह तो थी आर्थिक मुद्दों की बात, लेकिन जब बात कम्युनिस्ट साम्राज्यवादी विषयों को आती है तब शी जिनपिंग के विचार बिल्कुल अलग हो जाते हैं।
इसे ऐसे समझा जा सकता है कि वर्ष 2022 में उन्होंने बयान दिया था कि चीनी लोगों की महान एकता को नए युग में बढ़ावा देना देशभक्ति का कार्य है और इस कार्य को करने के लिए सभी चीनियों को विभिन्न दलों, राष्ट्रीयताओं, वर्गों, समूहों और मान्यताओं के साथ-साथ सामाजिक व्यवस्थाओं में रहने के बाद भी एकजुट रहना चाहिए।
शी जिनपिंग का यह विचार सुनने या पढ़ने पर तो सामान्य लगता है लेकिन इसके पीछे वह कम्युनिस्ट विचार है जो कहती है कि किसी भी राष्ट्र, लिंग, जाति, समाज, वर्ग और नियमों से परे होकर एक विचार के लिए एकजुट होना है, और यह विचार कम्युनिज़्म का है।
यही चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के पूंजीवाद की सच्चाई है। दरअसल जहां बात आर्थिक मुद्दों की आती है चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पूंजीवाद की ओर चलती है, वहीं जैसे ही बात विचार और राजनीतिक विषयों की आती है चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को कम्युनिज़्म याद आ जाता है।
इसकी नींव सोवियत कम्युनिज़्म के अंत से रखी गई है। पूर्व में कम्युनिस्ट सोवियत संघ का प्रभाव अत्यधिक फैला हुआ था और यह एक अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट समूह की तरह कार्य करता था।
जब बर्लिन की दीवार गिराई गई और कम्युनिज़्म का पतन शुरू हुआ तब सोवियत को लगा कि उन्हें अपने आर्थिक तंत्र के साथ-साथ राजनीतिक तंत्र में भी सुधार लाने की आवश्यकता है, और इस तरह सोवियत में कम्युनिस्ट पार्टी का पतन हुआ।
लेकिन दूसरी ओर, चीन में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने आर्थिक मोर्चे पर तो वामपंथ को त्याग दिया परंतु कम्युनिस्ट तंत्र की राजनीतिक इकाइयों को सही माना। एक तरफ अपनी वामपंथी प्रणाली का उपयोग कर चीन अधिनायकवादी सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करता चला गया, वहीं दूसरी ओर उसने पूंजीवाद के सहारे आम चीनी जनता को आर्थिक मोर्चों में व्यस्त रखने में भी सफल रहा।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने चीनी तानाशाह शी जिनपिंग के विचारों को ही '21वीं सदी के मार्क्सवाद' के रूप में स्थापित किया है। यही कारण है कि वर्तमान में चीनी कम्युनिस्ट विचारों में शी जिनपिंग की तुलना माओ त्से-तुंग के बराबर की जाती है। लेकिन शी जिनपिंग भी कोई दूध के धुले व्यक्ति नहीं हैं।
वर्ष 2016 में सामने आए पनामा पेपर लीक में चीनी राष्ट्रपति के करीबियों और परिजनों के नाम भी सामने आए थे। इसमें चीनी तानाशाही शी जिनपिंग के परिजनों के अलावा चीन के एलीट स्टैंडिंग कमेटी के दो सदस्यों झांग गाओलि और लियु युनशान का नाम भी शामिल था।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी बातें भले समाजवाद और कम्युनिज़्म की करती है, लेकिन सच्चाई यही है कि कम्युनिज़्म का उपयोग इन्होंने केवल अपनी सत्ता और तानाशाही को स्थायी रखने के लिए किया है।