बस्तर : माओवादियों का प्रकृति विरोधी चेहरा बेनकाब, बारूद की चपेट में आते बेजुबान जानवर दे रहे गवाही

माओवादियों द्वारा बस्तर के आम ग्रामीणों को बारूदी ढेर के माध्यम से अपाहिज बनाना और उनकी हत्या करने की घटनाओं ने माओवादियों का मानवता विरोधी वास्तविक चेहरा उजागर किया था, लेकिन अब एक ऐसी घटना की जानकारी सामने आई है, जो ना सिर्फ कम्युनिस्ट आतंकियों के प्रकृति विरोध को दिखाता है, बल्कि उनके इस तथाकथित जल-जंगल-जमीन की लड़ाई के फरेब का भी पर्दाफाश करता है।

The Narrative World    19-Dec-2024   
Total Views |

Representative Image
2
माह पहले जब माओवादी आतंकवाद से पीड़ित दिव्यांग बस्तरवासियों ने दिल्ली आकर अपनी पीड़ा बताई थी, तब देश को यह पता चला था कि माओवादी सबसे ज्यादा बस्तर के आम ग्रामीणों का शोषण कर रहे हैं, उन्हें मार रहे हैं, उन्हें अपाहिज बना रहे हैं, उनके भविष्य को बारूद के ढेर से उड़ा रहे हैं।


पीड़ितों की दिल्ली के जंतर-मंतर से लेकर राष्ट्रपति भवन तक की यात्रा में, पूरे देश ने देखा कि कैसे माओवादियों के बिछाए आईईडी विस्फोटकों के चलते किसी ने पैर खो दिए, तो किसी ने हाथ, कोई चल नहीं सकता, तो कोई देख नहीं सकता, ऐसे पीड़ित भी देखे जिन्होंने अपनी आंखें और पैर, दोनों गंवा दिए।


Representative Image

कम्युनिस्ट आतंकवाद की मार झेल रहे इन बस्तरवासियों की पीड़ा देख कर यह समझ आया कि माओवादी किसी जल-जंगल-जमीन की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं, ना ही वो जनजाति हितों की रक्षा की कोई लड़ाई लड़ रहे हैं, बल्कि वास्तव में तो उनका कृत्य और उनके विचार मानवता विरोधी हैं।


माओवादियों द्वारा बस्तर के आम ग्रामीणों को बारूदी ढेर के माध्यम से अपाहिज बनाना और उनकी हत्या करने की घटनाओं ने माओवादियों का मानवता विरोधी वास्तविक चेहरा उजागर किया था, लेकिन अब एक ऐसी घटना की जानकारी सामने आई है, जो ना सिर्फ कम्युनिस्ट आतंकियों के प्रकृति विरोध को दिखाता है, बल्कि उनके इस तथाकथित जल-जंगल-जमीन की लड़ाई के फरेब का भी पर्दाफाश करता है।


Representative Image

बस्तर संभाग के माओवाद से प्रभावित दंतेवाड़ा-बीजापुर जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में कम्युनिस्ट आतंकियों द्वारा प्लांट किए गए आईईडी विस्फोट की चपेट में आने के कारण एक मादा भालू की मौत हो गई है।


इस घटना ने केवल एक मादा भालू की जान नहीं ली, बल्कि इसके कारण भालू के 2 नवजात शावकों की भी मौत हो गई है। जानकारी मिली है कि तकरीबन एक सप्ताह पहले बारसूर थाना क्षेत्र के अंतर्गत यह घटना हुई है।


“माओवादियों ने जंगल के उस स्थान पर आईईडी बिछाकर रखा था जहां ना सिर्फ जवान ऑपरेशन के लिए निकलते हैं, बल्कि स्थानीय जनजातीय ग्रामीण लकड़ी बिनने भी जाते हैं। वहीं भालू का विस्फोटक की चपेट में आने से यह भी दिखाई देता है कि इस क्षेत्र में वन्यजीव भी विचरण करते हैं। स्थानीय ग्रामीण इस क्षेत्र में लकड़ी ढूंढने ही निकले थे, जब उन्होंने एक मादा भालू के शव को क्षत-विक्षत की स्थिति में देखा।”


भालुओं के शव की वो तस्वीर ही झकझोर कर देने वाली है, तस्वीर में ऐसा नजारा है जो माओवादियों की प्रकृति के प्रति असंवेदनशीलता और उनकी आतंकवाद की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करता है। भालू का शव खून से लथपथ पड़ा है, उसके दो शावकों का शव अपनी माँ के ऊपर पड़ा है, यह देखने में भी दर्दनाक है।


Representative Image

कम्युनिस्ट आतंकियों की इस घटना से माओवादियों की वो खोखली विचारधारा भी दिखाई देती है, जिसे कम्युनिस्ट 'क्रांति' का नाम देते हैं। चाहे वो प्रकृति की रक्षा का विषय हो या जनजातियों की लड़ाई लड़ने का, माओवादियों इसका ठीक विपरीत ही किया है।


बीते गुरुवार को माओवादियों ने अबूझमाड़ में फोर्स के साथ हुए एनकाउंटर में स्थानीय जनजातीय नाबालिग बच्चों को 'मानव ढाल' बनाया था, और वर्तमान में हुई घटना भी यह बताती है कि कैसे माओवादी स्थानीय जनजातियों के लकड़ी बिनने तथा वन्यजीवों के विचरण क्षेत्र में आईईडी प्लांट कर इन्हें भी एक 'शील्ड' अर्थात 'ढाल' के रूप में उपयोग कर रहे हैं, ताकि इनकी माओवादी आतंकवाद की सत्ता और उसका प्रभाव इस क्षेत्र में बना रहे।