पंजाब का सातवाँ दरिया : वोकिज्म

गुरु नानक देव जी महाराज ने भी मुगलों के अत्याचारों का प्रभाव समस्त हिंदुस्तान पर बताया था, उसी प्रकार खालसा सृजना समय संपूर्ण भारत के विभिन्न कोनों से श्रद्धालु एकत्रित हुए थे, पहले पांच प्यारे इसकी उदाहरण है, जो भारत के विभिन्न स्थानों से संबंधित थे।

The Narrative World    27-Dec-2024   
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पंजाब, शाब्दिक अर्थ- पांच नदियों का क्षेत्र है, जो भारत के इतिहास का अभिन्न भाग होते हुए अपने ज्ञान परंपरा और शौर्य के लिए काफी प्रसिद्ध रहा। जहां नदियों के पानी के साथ-साथ वैदिक ज्ञान का प्रवाह हुआ करता था, कालांतर में ज्ञान प्रवाह का स्रोत गुरबाणी बना। पंजाब जिसने भारत को गुरु शिष्य परम्परा का ज्ञान दिया तथा भारत राष्ट्र ने गुरु नानक देव जी की वैचारिक शिक्षा को आधार मानकर समयानुसार अपनी पूजा पद्धति में भी इच्छानुसार परिवर्तन किया। यही कारण है कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में संपूर्ण भारत राष्ट्र के गुरुओं संतों तथा महापुरुषों का ज्ञान भण्डार हैं, जिन्होंने सदैव समाज को सकारात्मक दिशा प्रदान की तथा समृद्ध बनाया।

गुरबाणी के सबसे प्रथम शब्द (एक ओंकार) समाज को एकत्रित करने का आधार बना तथा निराकार अनंत, अकाल प्रभु की उपासना सीखा स्वयं के अंदर ही परमात्मा को खोजने की शिक्षा दी। इसी ज्ञान धारा को श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के अंग 695 पर राग धनासरी में भक्त पीपा जी लिखते हैं -

जो ब्रह्माण्डे सो ही पिण्डे, जो खोजें सो पावे। पीपा प्रणवै ततु है, सतिगुर होए लखावे।।

कालांतर में नियति की मांग अनुसार स्वयं को बलिदान करने में भी भारत की दस गुरु परंपरा सबसे आगे रही तथा स्वयं के साथ साथ संपूर्ण परिवार को बलिदान पथ पर प्रेरित किया ताकि सारा समाज और भारत राष्ट्र एकत्रित होकर पुन: पुरुषार्थ युक्त हो सके।

जिसमें दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के चारों पुत्रों की शहादत अविस्मरणीय हैं। जिस उम्र में बालक खिलौनों से खेलते हैं, उस उम्र में साहिबजादों ने शस्त्रों तथा शास्त्रों से मुगलों को पराजय किया तथा स्वयं का बलिदान देकर समाज के युवाओं को राष्ट्रप्रति सजग रहकर कार्य करने का उपदेश दिया ताकि भारत राष्ट्र की भूमि को बाबर के वंशजों के अत्याचारों से मुक्त करवाया जा सके।

लेकिन 21वीं सदी के वर्तमान की युवा पीढ़ी धर्म, समाज और राष्ट्र भक्ति जैसे शब्दों के इतिहास मानकर भूल चुकी है तथा बनावटी जिंदगी के बोझ तले दब कर जीवन व्यर्थ कर रही है। उस समाज की पीढ़ी को दिशा भ्रमित करने का भार वोकिज्म नामक बिमारी पर है। जिसका शाब्दिक अर्थ है जागना या जागृत रहना। पश्चिमी देशों में नस्लभेद तथा रंगभेद के दौरान अश्वेत लोगों द्वारा श्वेत लोगों के खिलाफ़ जागृत मोर्चे को वोक रैली का नाम दिया गया। कालांतर में वामपंथी विचारकों द्वारा अपनी विचारधारा के प्रचार का माध्यम भी यहीं जागृत मोर्चा था, चाहे वह पूँजीवाद के विरुद्ध हो या राष्ट्रवाद के। वर्तमान में भी राष्ट्र को अस्थिर करने की वामपंथी कोशिशों को भी वोकिज्म का ही सहारा लेना पड़ा।

किसी भी राष्ट्र की सबसे महत्वपूर्ण ईकाई परिवार, इस वोकिज्म के निशाने पर हैं। संयुक्त परिवारों को वैचारिक स्वतंत्रता के नाम पर छोटे छोटे परिवारों में बांटना तथा आपसी प्यार और विश्वास की कमी लाना ही इस वोकिज्म नामक बिमारी का पहला पड़ाव है पंजाब, जहां के गुरुओं का सारा जीवन सेवा और बलिदान के इर्द-गिर्द रहा, आज उसी पंजाब में विदेश भागने की लालसा तथा नशे के कारण परिवार टूट रहे हैं।

व्यक्ति का प्रथम स्कूल उसका परिवार होता है, जहाँ से सामाजिक तत्वों का अहसास लेकर अपनी जीवन यात्रा को शुरू किया जाता है तथा पहला गुरु उसकी माता होती है। गुरु की महत्वता को बताता गुरबाणी का छंद कुछ इस प्रकार है -

गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदं गुरमुखि रहिआ समाई, गुर ईसर, गुर गोरखा बरमा पार्वती मोई।।


भाव- गुरु का मुख शब्द है, गुरु मुख ही वेद ज्ञान है तथा गुरु मुख में ही सर्वव्यापक समाया हुआ है तथा गुरु की महिमा ईश्वर, गौरव, ब्रह्मा तथा माता पार्वती के समान है।

लेकिन वोकिज्म नामक विचारधारा ने सामाजिक भेदभाव की धुंध कुछ इस प्रकार फैलाईं की परिवार रिश्ते और स्नेह सिर्फ शब्द मात्र ही रह गए।

पंजाब जहाँ के रक्त प्रवाह में पुरुषार्थ का भाव था। भगवान वाल्मीकि जी के आश्रम में शिक्षा से लेकर मध्यकालीन भारत की गुरबाणी तक सभी का मूल इस पुरुषार्थ पर केंद्रित रहा। जिसके प्रभाव स्वरूप समाज को समय समय पर सही दिशा दिखाई गई चाहे उसमें स्वयं का बलिदान ही करना पड़ा। पंजाबी समाज ने कभी अपने समर्पण में कमी नहीं आने दी। परन्तु वर्तमान समय के सोशल मीडिया की कृत्रिम दुनिया में पुरुष रूप में जन्म मनुष्य स्वयं को स्त्री रूप में परिवर्तित कर ख्याति पाना चाहता है।


ऐसे पंजाब में अनेकों उदाहरण हैं जिनके निरंतर प्रवाह को पंजाब का सातवाँ दरिया भी कहा जाने लगा। छठे दरिया नशा से भी घातक वोकिज्म का ये सातवाँ दरिया है, जो सामाजिक कलह पारिवारिक स्तर पर ही उत्पन्न कर सर्वप्रथम परिवार को तथा फिर समाज को तोड़ता हैं। समाज के टूटने का सीधा प्रभाव राष्ट्र को कमजोर करता है, जिसका लाभ राष्ट्रविरोधी शक्तियां ले रही है। जिस तर्ज पर पंजाब में बहुत तेजी से मतांतरण भी हो रहे हैं।

दशम पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ने अपने चारों पुत्रों की शहादत पर अपनी मानसिक दिशा को यूं बयान किया-


इन पूतन के सीस पर वार दिए सुत चार, चार मुए को क्या हुआ जीवित कई हजार।।


उनकी मंशा थी कि उनके बलिदान का प्रभाव सारे पंजाब को राष्ट्र रक्षा के लिए तैयार करेगा और उस समय मैं ऐसा हुआ भी। परन्तु समय बीतने के साथ गुरु महाराज जी द्वारा दी गई शहादत को याद तो रखा गया परंतु उनकी शिक्षा को भुला दिया गया। जिस कारण पंजाब राष्ट्रविरोधी शक्तियों की कठपुतली बनकर राष्ट्र को ही खंडित करने में लग गया।


गुरु नानक देव जी महाराज ने भी मुगलों के अत्याचारों का प्रभाव समस्त हिंदुस्तान पर बताया था, उसी प्रकार खालसा सृजना समय संपूर्ण भारत के विभिन्न कोनों से श्रद्धालु एकत्रित हुए थे, पहले पांच प्यारे इसकी उदाहरण है, जो भारत के विभिन्न स्थानों से संबंधित थे।

परंतु राजनीतिक समीकरण कुछ इस प्रकार बने कि पंजाब अपने असली इतिहास से दूर होता चला गया और आजकल का पंजाब विदेशी मत में सम्मिलित होने में गर्व महसूस करता है न कि अपनी शहादत पूर्ण इतिहास पर। यदि पंजाब का प्रत्येक पंजाबी गुरबाणी को अपने जीवन में उतार लें, तभी पंजाब को विदेशी षड़यंत्रों से निकालकर पुन: समृद्ध राष्ट्र बनाया जा सकता है।


लेख

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रजत भाटिया
स्तंभकार - Writers For The Nation