झीरम कांड : बस्तर में माओवादी आतंक की कहानी

छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल, वर्तमान में छत्तीसगढ़ शासन में मंत्री कवासी लखमा, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ला, सलवा जुडूम की शुरुआत करने वाले महेंद्र कर्मा समेत कांग्रेस की पूरी प्रदेश की टॉप लीडरशिप इस काफिले में सवार थी।

The Narrative World    25-May-2024   
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वर्तमान समय में केंद्र सरकार की कठोर नीतियों के सतज
-साथ राज्य सरकार के साथ उचित समन्वय के चलते माओवादियों के विरुद्ध जिस तरह से कड़ी कार्यवाई चल रही है, उससे यह कहा जा रहा है कि अब जल्द ह माओवादी आतंक का ख़त्म हो जाएगा। लेकिन आज से 11 वर्ष पहले की स्थिति बिलकुल ही अलग थी।


केंद्र की सरकार में ही अर्बन नक्सलियों की तूती बोलती थी, ऐसे में यह संभव ही नहीं था कि केंद्र की कांग्रेस सरकार इन माओवादियों के विरुद्ध कोई कड़े क़दम उठाती। यही कारण था कि छत्तीसगढ़ की तत्कालीन प्रदेश सरकार भी सीमित संसाधनों में ही माओवादियों से मुक़ाबला कर रही थी।


कांग्रेस की माओवादी आतंक के विषय पर लचर नीति को ऐसे ही समझा जा सकता है कि जब उनकी ही पार्टी की राज्य इकाई के शीर्ष नेता तक माओवादी आतंक की भेंट चढ़ गए, इसके बाद भी कांग्रेस की सरकार ने कोई ठोस निर्णय नहीं लिया। आज उसी माओवादी आतंकी हमले की ग्यारहवीं बरसी है। वह घटना ही दरभा घाटी की, जिसे झीरम कांड के नाम से भी जाना जाता है।


से 11 वर्ष पहले आज ही के दिन माओवादियों ने झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर घात लगाकर एक बड़ा हमला किया था। इस हमले में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के तत्कालीन अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री समेत सुरक्षा बल के जवान और आम नागरिक भी मारे गए थे। माओवादियों द्वारा कुल 32 लोगों की हत्या की गई थी। लेकिन यह आज भी रहस्य बना हुआ है कि कवासी लखमा कैसे बच के आ गए थे।


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झीरम घाटी में हुआ माओवादी हमला अब तक के सबसे बड़े माओवादी हमलों में से एक है। दरअसल 10 वर्षों से सत्ता से दूर कांग्रेस ने चुनाव से पहले पूरे राज्य में 'परिवर्तन यात्रा' निकालने की तैयारी की थी और इसी अभियान के तहत 25 मई वर्ष 2013 के दिन कांग्रेस ने सुकमा में परिवर्तन रैली आयोजित की थी।


कांग्रेस नेताओं के द्वारा आयोजित इस रैली के समापन के बाद उनका काफिला सुकमा से जगदलपुर सड़क के माध्यम से आगे बढ़ रहा था, जिसमें लगभग 25 गाड़ियां थी और 200 नेता सवार थे।


छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल, वर्तमान में छत्तीसगढ़ शासन में मंत्री कवासी लखमा, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ला, सलवा जुडूम की शुरुआत करने वाले महेंद्र कर्मा समेत कांग्रेस की पूरी प्रदेश की टॉप लीडरशिप इस काफिले में सवार थी।


इस काफिले पर माओवादियों ने घात लगाकर शाम तकरीबन 4:00 बजे के आसपास हमला किया। 200 से अधिक माओवादियों ने पहले तो पेड़ों को गिरा कर रास्ता बंद किया और उसके बाद डेढ़ घंटे तक अंधाधुंध गोलीबारी की।


लगभग डेढ़ घंटे फायरिंग करने के बाद 5:30 बजे माओवादी पहाड़ों से उतर कर एक-एक गाड़ी की चेकिंग करने लगे और जो लोग गोलीबारी से थोड़े बहुत बच चुके थे उन्हें दोबारा गोली मारकर मार दिया गया।


इस बीच महेंद्र कर्मा गाड़ी से नीचे उतरे एवं माओवादियों से कहा कि उन्हें बंधक बनाकर सभी को छोड़ दिया जाए, जिसके बाद माओवादियों ने महेंद्र कर्मा को पकड़कर थोड़े दूर ले जाकर उनकी बेरहमी से हत्या कर दी।


सूत्रों से मिली जानकारी और पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार इस हमले का मुख्य निशाना महेंद्र कर्मा थे। सलवा जुडूम का नेतृत्व करने की वजह से माओवादी उन्हें अपना सबसे बड़ा शत्रु मानते रहे।


महेंद्र कर्मा की हत्या माओवादियों ने इतनी निर्दयता से की थी कि उन पर 100 गोलियां चलाई गई थी और 50 से अधिक बार चाकू से वार किया गया था। सिर्फ इतना ही नहीं हत्या के बाद माओवादियों ने उनके शव पर चढ़कर डांस किया था।


इस पूरी घटना के मास्टरमाइंड के रूप में जिनका नाम आया था वह था रमन्ना और गणेश उइके का। यह दोनों माओवादी संगठन के सबसे बड़े आतंकी नेता थे। एनआईए को भी इन दोनों माओवादी आतंकियों की तस्वीरों की तलाश थी। इसके अलावा जोगन्ना और गुडसा उसेंडी इस पूरी कार्रवाई के दौरान योजना बनाने में इनकी मदद की थी।

इस मामले की जाँच कर रही राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने दिसम्बर 2023 को अट्ठारह माओवादियों के नाम और पते जारी किए थे। इनमे से एक माओवादी तिमिरि तिरुपति पर एक करोड़ का इनाम घोषित है। इसके अतिरिक्त अन्य माओवादियों पर भी अलग-अलग इनाम घोषित है। सभी फ़रार माओवादियों ने अपना घर बदल लिया है, साथ ही अपने परिवारों को भी दूसरी जगह स्थानांतरित कर दिया है।