पोल पोट - ऐसा कम्युनिस्ट तानाशाह जिसने अपने देश की 25 प्रतिशत आबादी का नरसंहार कर दिया

कंबोडिया में केवल एक पार्टी का शासन रहा, और इस दौरान पोल पोट ने कम्युनिज़्म की नीतियों को कठोरतम तरीके से लागू करवाया। शहरी आबादी को ग्रामीण क्षेत्रों में भेजकर सामूहिक कृषि करवाना हो या कंबोडिया के नागरिकों का सामूहिक नरसंहार करना हो, इन सभी कृत्यों के लिए में पोल पोट की नीतियां बनती गई।

The Narrative World    27-May-2024   
Total Views |

Representative Image
चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के नेता और चीन के तानाशाह रहे माओ ज़ेडोंग ने करोड़ों नागरिकों का जनसंहार किया था। अपनी कम्युनिस्ट नीतियों से चीनी नागरिकों की स्वतंत्रता को खत्म कर दिया था और साथ ही साहिब में ऐसी नीतियों को अपनाया था जिससे लाखों लोग अकाल से मर गए।


लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि करोड़ों लोगों का नरसंहार करने वाले माओ ज़ेडोंग ने एक अन्य देश के नेता को कहा था कि उसे लोगों को प्रताड़ित करना एवं उनकी हत्या करना रोक देना चाहिए।


यदि माओ के शब्दों में ही कहें तो उसने कहा था कि 'आपके पास बहुत अनुभव है, हमसे कहीं बेहतर है। हमें आपकी आलोचना का भी अधिकार नहीं है। यदि देखें तो आप ही सही हैं। लेकिन क्या आपने कोई गलती की है या नहीं की है ? मुझे नहीं पता, लेकिन अवश्य आपको पता है। अतः, स्वयं में सुधार कीजिए, यह रास्त अत्यधिक पीड़ादायक है।'


“अब कल्पना कीजिए कि एक कम्युनिस्ट तानाशाह जो स्वयं करोड़ों लोगों की हत्या करवा चुका है, जब वह किसी को 'रुकने' के लिए कह रहा है तो वह तानाशाह कितना खूंखार होगा ? उस तानाशाह ने कितनी बड़ी आबादी का जनसंहार किया होगा ? उस कम्युनिस्ट तानाशाह ने ऐसी कौन सी प्रताड़ना दी होगी कि माओ जैसा निर्दयी तानाशाह भी उसे रुकने के लिए कह रहा है।”


दरअसल यह तानाशाह था पोल पोट, कंबोडिया का पूर्व प्रधानमंत्री और कम्युनिस्ट विचार का अनुयायी। जिसने केवल 4 वर्षों के अपने शासन में 15 से 25 लाख लोगों को मरवा दिया। केवल कम्युनिस्ट विचार की सनक के चलते लाखों लोग मारे गए।


यह पूरी कहानी इसी कम्युनिस्ट तानाशाह की है, कंबोडिया की कम्युनिस्ट पार्टी के नेता पोल पोट की है, जिनके शासन काल में इन नरसंहारों को अंजाम दिया गया।


पोल पोट का जन्म वर्ष 1925 में हुआ था, जिसके बाद वर्ष 1940 के दशक में फ्रेंच कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़कर उसने कम्युनिज़्म की राह पकड़ी। 1953 में कंबोडिया लौटने के बाद उसने कम्युनिस्ट विचारों के साथ तत्कालीन सत्ता के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध की नीति अपनाई।


इसके बाद लंबे समय तक पोल पोट ने कंबोडिया की अलग-अलग सरकारों के विरुद्ध कम्युनिस्ट विचारों का नेतृत्व किया और अंततः 1976 में डेमोक्रेटिक कंपूचिया (कंबोडिया की कम्युनिस्ट सरकार का आधिकारिक नाम) की स्थापना की और यहां पूरी तरह से अधिनायकवादी शासन लागू कर दिया।


कंबोडिया में केवल एक पार्टी का शासन रहा, और इस दौरान पोल पोट ने कम्युनिज़्म की नीतियों को कठोरतम तरीके से लागू करवाया। शहरी आबादी को ग्रामीण क्षेत्रों में भेजकर सामूहिक कृषि करवाना हो या कंबोडिया के नागरिकों का सामूहिक नरसंहार करना हो, इन सभी कृत्यों के लिए में पोल पोट की नीतियां बनती गई।


लगभग चार वर्षों तक चले इस नरसंहार में लगभग 15 से 25 लाख लोग मारे गए। इस बीच यह अनुमान लगाया गया कि पोल पोट ने अपने कम्युनिस्ट विचार के चलते कंबोडिया की लगभग एक चौथाई नागरिकों की बलि ले ली थी।


कम्युनिस्ट विचारधारा की 'वर्ग विहीन समाज' के उथले सिद्धांत को जमीन पर लागू करने के चक्कर में लाखों लोग बेमौत मारे गए। कम्युनिस्ट नीतियां जमीन में इतनी निष्प्रभावी थीं कि इसके चलते देश की अर्थव्यवस्था गर्त में जाने लगी, खाद्यान्न में कमी आ गई, और हजारों कंबोडियाई नागरिक भूखमरी से ही मारे गए।


कम्युनिस्ट समूहों के इस खूनी आतंक में ईसाई, बौद्ध एवं मुस्लिमों को जमकर प्रताड़ित किया गया। चाम मुस्लिम जनसंख्या की तो 70% आबादी को ही कम्युनिस्टों ने खत्म कर दिया। इसके अलावा बुद्धिजीवियों को खोज-खोजकर मारा गया। स्


थिति ऐसी थी कि जैसे चीन में कल्चरल रिवॉल्यूशन के दौरान शिक्षकों एवं बुद्धिजीवियों को निशाना बनाया जा रहा था, उसी तरह कंबोडिया में भी कम्युनिस्ट नीतियों के चलते शिक्षक, अधिवक्ताओं, चिकित्सकों समेत समाज के प्रतिष्ठित लोगों को निशाना बनाया गया। यहां तक कि यदि कोई व्यक्ति चश्मा (सन ग्लास) भी पहनता था, तो उसे पूंजीवादी कहकर निशाना बनाया जाता था।


1978 में कंबोडिया की कम्युनिसि सरकार ने यह योजना बनाई कि वह नये देश बने वियतनाम पर हमला करेगी, लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि वियतनाम ने कंबोडिया पर कब्जा कर लिया।


कुल मिलाकर देखें तो पोल पोट ने केवल चार वर्षों के ही शासनकाल में इतनी हत्याएं कर दी थी कि माओ ज़ेडोंग को भी कहना पड़ा था कि वह रुक जाए।


कंबोडिया में कम्युनिस्ट समूहों द्वारा किए गए नरसंहार पर लिखी गई पुस्तक 'चिल्ड्रन्स ऑफ कम्बोडियाज़ किलिंग फील्ड्स : मेमोरीज़ बाय सर्वाइवर्स' में लेखक डिथ प्रान कहते हैं कि "यह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है कि कंबोडियाई एवं कंबोडियाई अमेरिकियों की नई पीढ़ी सक्रिय हों तथा विश्व को यह बताए कि उनके एवं उनके परिवारों के साथ क्या हुआ। मैं चाहता हूँ कि वे अपने परिजनों एवं दोस्तों के चेहरे को कभी ना भूलें जो उस दौरान मारे गए थे।"


यह पंक्तियां बताती हैं कि आखिर इन कम्युनिस्टों की एक सत्ता ने कैसे कंबोडिया में अनगिनत लोगों का नरसंहार कर दिया था, जिसके घाव भी नहीं भरे हैं।