मई, 2008 : नेपाल में हिंदू राजशाही खत्म कर 13000 नेपालियों की हत्या के जिम्मेदार माओवादी को बनाया गया प्रधानमंत्री

प्रचंड माओ के उसी सिद्धांत पर काम करते हैं जिसमें पहला सिद्धांत है "राजनीतिक सत्ता बंदूक की नली से निकलतीं है" और दूसरा सिद्धांत है "रक्तपात से युक्त युद्ध है और युद्ध रकापात युक्त राजनीति।"

The Narrative World    30-May-2024   
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28 मई, वर्ष 2008 को नेपाल में 246 वर्षों से चली आ रही हिंदू राजशाही का अंत कर कम्युनिस्ट-माओवादी सत्ता की स्थापना की गई थी। इसी दिन नेपाल के माओवादी दल को चुनाव में जीत मिली और तत्कालीन नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र को अपदस्थ कर पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' नेपाल के प्रधानमंत्री बने।


कम्युनिस्टों के द्वारा भीषण हिंसा एवं आतंक के कारण लगभग 1 दशक से अधिक समय तक चले गृह युद्ध के बाद देश में शाह राजवंश के हाथों से सत्ता छीन ली गई और कम्युनिस्ट-माओवादी सत्ता देश की राजनीति में मुख्यधारा बनकर उभरी।


भारतीय उपमहाद्वीप में जहां-जहां कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की गई, वहां इस बात का विशेष ध्यान रखा गया था कि यह सभी कम्युनिस्ट पार्टियां पहले सोवियत संघ और बाद में चीन के कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थन करते रहेंगे। कुछ यही स्थिति नेपाल के कम्युनिस्ट दलों की भी रही।


जिस तरह से नेपाल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के तानाशाह माओ जेडोंग के निशाने पर पहले से था, इसीलिए नेपाल में माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की गई और उसका मुख्य कारण नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करना था।


नेपाल भारत और तिब्बत के बीच एक सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण देश है। तिब्बत में चीन के द्वारा कब्जा करने के बाद भारत और चीन के कब्जे वाले तिब्बत क्षेत्र के बीच नेपाल एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में उभरा है। ऐसे में नेपाल में उठाया जाने वाला कोई भी कदम भारत के लिए सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव लेकर आ सकता है।


यही कारण है कि चीन ने लगातार नेपाल में माओवादियों को समर्थन देकर गृह युद्ध की स्थिति बनाए रखा, जिसके चलते हजारों नेपाली लोगों की बेमौत मारे गए।


नेपाल की माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख पुष्प कमल दहल प्रचंड ने माओ ज़ेडोंग से प्रभावित होकर चीन के समर्थन से नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की थी। हालांकि कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि प्रचंड का यह राजनीतिक कदम पेरु के शाइनिंगपाथ आंदोलन से प्रेरित था और इसी की नकल कर नेपाल में माओवादी आंदोलन की प्रचंडपाथ कहा गया।


वर्ष 1996 में नेपाल में गृह युद्ध अपने चरम पर था, इस दौरान नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) की सशक्त रंग और जग मुक्ति सेना के शीर्ष नेता प्रचंड के नेतृत्व में 13,000 नेपालियों की हत्या की गई थी। वर्ष 1990 में नेपाल में जब लोकतंत्र स्थापित हुआ उसके बाद भी प्रचंड लंबे समय तक अंडरग्राउंड रहे।


प्रचंड माओ के उसी सिद्धांत पर काम करते हैं जिसमें पहला सिद्धांत है 'राजनीतिक सत्ता बंदूक की नली से निकलतीं है' और दूसरा सिद्धांत है 'रक्तपात से युक्त युद्ध है और युद्ध रकापात युक्त राजनीति।'


माओवादियों द्वारा नेपाल में कई व्यवधान उत्पन्न किए गए, जो भारत के लिए भी खतरा बनते गए। दरअसल पहले यह योजना बनाई गई थी कि चुनाव होगा और जिस संसद को नेपाल की जनता चुनेगी वही संविधान को भी लिखेगा। मई 2010 तक यदि नेपाल का संविधान तैयार हो जाता तो, 6 महीने में चुनाव होते और नेपाल पूर्ण रूप से लोकतंत्र बन जाता लेकिन यह बहुत मुश्किल था और इसका कारण था माओवादियों द्वारा जगातार व्यवधान उत्पन्न करना।


इस दौरान चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की तरह ही, नेपाली माओवादियों ने तो यह तक मांग कर दी थी कि उनकी आतंकी सेना (माओवादी सशस्त्र इकाई) को नेपाल की सेना में शामिल किया जाए।


नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल ने एक बार यह स्वीकार किया था कि बहुत से माओवादियों में एकाधिपत्य की प्रवृत्ति थी और उनकी सेना में ऐसे तत्व थे जो असामाजिक तरीके से लोगों को बरगला कर चुप बैठाना चाहते हैं।


जो स्थिति नेपाल की हुई, वही स्थिति लाने का प्रयास भारत के कम्युनिस्टों का भी रहा है। भारत में भी माओवादियों के द्वारा गृहयुद्ध कराने का भरसक प्रयास किया गया, कम्युनिस्टों द्वारा समाज को विभाजित कर उन्हें संस्थाओं के प्रति विद्रोह करवाने का प्रयास किया गया, ताकि नेपाल की तरह यहां भी कम्युनिस्ट-माओवादी शक्तियों के हाथ में सत्ता आ सके। हालांकि भारत में यह षड्यंत्र विफल रहा।