इस लोकसभा चुनाव में पिछला प्रदर्शन दोहराने वाला है मध्य प्रदेश

नवंबर 2023 में हुए चुनाव में जहां चुनावी पंडितों, सर्वे के उलट मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव के नतीजे बीजेपी के पक्ष में आए, तब से जैसे विपक्ष जो कि पहले से ही काफी कमजोर था, इस लोकसभा चुनाव के पूर्व ही जैसे हार मान चुका है।

The Narrative World    09-May-2024   
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विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के लगभग 1 अरब मतदाता अगले 5 वर्षों के लिए भारत में वोट डाल रहे हैं। यह लोकसभा चुनाव अप्रैल और मई और जून की पहली तिथि तक होना है। लोकसभा चुनाव के लिए मतदान कुल सात चरणों मे हो रहा है। चुनाव आयोग ने 16 मार्च 2024 को 3 बजे तक लोकसभा चुनाव के तारीखों की घोषणा की थी। नवनियुक्त चुनाव आयोग ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह सिंधू के साथ मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार चुनाव की तारीखों का ऐलान किया था।


पहले चरण में, 19 अप्रैल 2024 को 21 राज्यों के 102 सीटों पर मतदान हुआ। दूसरे चरण के लिए 26 अप्रैल 2024 को मतदान हुआ, जिसमें 12 राज्य के 88 सीटों पर मत डाले गए। वहीं हाल ही में बीते मंगलवार को तीसरे चरण का मतदान 07 मई 2024 को हुआ, जिसमें 13 राज्य के 93 सीटों पर जनता ने अपने जनप्रतिनिधियों का फैसला किया।


इसके बाद अब चौथे चरण का मतदान 13 मई को होना है जिसमें 10 राज्य के 96 सीटों पर मतदान होगा। पांचवें चरण का 20 मई 2024 को होना है, जिसमें 8 राज्य के 49 सीटों पर मतदान होगा, जबकि छठवें चरण का मतदान 25 मई 2024 को होना है, जिसमें 7 राज्य के 57 सीटों पर मतदान होगा और अंतिम चरण में 8 राज्य के 57 सीटों पर मतदान होगा, जो 1 जून को होना है।


मतदान के बाद मतगणना की तारीख 4 जून 2024 निश्चित की गई है. गौरतलब है कि इस लोकसभा का कार्यकाल 16 जून 2024 को समाप्त होने वाला है। पिछला लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई 2019 में हुआ था। बीते चुनाव के बाद,ल भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने केंद्र में सरकार बनाई, जिसमें नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बने।



अपनी समृद्ध संस्कृति विरासत और विविध जनसंख्या के लिए प्रसिद्ध मध्य प्रदेश को अक्सर भारत का दिल कहा जाता है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन एनडीए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसे प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए एक महत्वपूर्ण युद्ध क्षेत्र के रूप में इसकी ऐतिहासिक भूमिका को देखते हुए यहां के चुनाव महत्वपूर्ण है। कुछ सीटों पर बीएसपी एवं एसपी भी परिणाम को बदलने की क्षमता रखते हैं।


प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र ग्रामीण और शहरी मतदाताओं की चिंताओं को शामिल करते हुए अद्वितीय गतिशीलता प्रस्तुत करता है, जिससे मतदाताओं का समर्थन हासिल करने के लिए उम्मीदवारों को मुद्दों के व्यापक स्पेक्ट्रम को संबोधित करने की आवश्यकता होती है।


राज्य के प्रदेश में लगातार बदलाव हो रहे हैं, भारतीय जनता पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस लगातार संघर्ष में लगे हुए हैं। पिछले साल राज्य विधानसभा चुनाव में निर्णायक जीत के बाद भाजपा मध्यप्रदेश में भी लगभग सभी सीटों पर जीत हासिल करने की स्थिति में दिख रही है। इस बीच नवगठित इंडिया गठबंधन से उत्साहित कांग्रेस का लक्ष्य एक मजबूत उत्थान है।


2024 लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में 5 करोड़ 63 लाख 40 हजार 64 मतदाता उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेंगे। 2023 के विधानसभा चुनाव में 5 करोड़ 60 लाख मतदाता थे। इस तरह 4 महीने में 3 लाख कुल वोटर्स बढ़ चुके हैं। कुल वोटर्स में पुरुषों की संख्या 2 करोड़ 89 लाख 51 हजार 705 है, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 2 करोड़ 73 लाख 87 हजार 122 है।


लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश के महत्व को काम करके आंका नहीं जा सकता क्योंकि राज्य की राजनीतिक गतिशीलता अक्सर व्यापक राष्ट्रीय रुझानों का प्रतिबिंब करती है। 2024 के चुनाव लगभग आधे बीतने के बाद भी सभी की निगाहें मध्य प्रदेश पर अभी भी टिकी हुई है, क्योंकि इसके नतीजे राष्ट्रीय राजनीति को लेकर मध्य प्रदेश पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं।


मध्यप्रदेश की 29 सीटों में से 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के 28 सांसद चुन के आए थे, वही कांग्रेस की गढ़ मानी जानी वाली सीट छिंदवाड़ा से कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ ही अपनी सीट बचा पाए थे, परंतु 2024 में दोनों ही पार्टियों के गठबंधन एनडीए जिसका प्रतिनिधित्व बीजेपी करती है, बीजेपी के ही सभी उम्मीदवार खड़े किए हैं, जबकि विपक्ष के इंडी गठबंधन की ओर से 28 सीटों पर कांग्रेस ने जबकि खजुराहो सीट से सपा की उम्मीदवार को मौका मिला। फॉर्म में त्रुटि, हस्ताक्षर नहीं पाए जाने के चलते सपा की उम्मीदवार मीरा यादव का नामांकन रद्द कर दिया गया है। इस तरह खजुराहो सीट का मुकाबला अब भाजपा के पक्ष में जाता दिख रहा है। हालांकि मध्यप्रदेश की अधिकतर सीटों का यही हाल है।


नवंबर 2023 में हुए चुनाव में जहां चुनावी पंडितों, सर्वे के उलट मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव के नतीजे बीजेपी के पक्ष में आए, तब से जैसे विपक्ष जो कि पहले से ही काफी कमजोर था, इस लोकसभा चुनाव के पूर्व ही जैसे हार मान चुका है। इस चुनाव में हाल में ही हुए पहले तीन चरण के चुनाव के पूर्व ना ही कोई इंडी गठबंधन के बड़े नेता मध्यप्रदेश में प्रभाव डालते दिखे, न ही प्रचार करते दिखे।


हालांकि वोट प्रतिशत में गिरावट को सत्ता पक्ष के लिए एक अशुभ संकेत बताकर कांग्रेस और विपक्ष अब आत्मविश्वास में आते दिख रहे हैं। मधयप्रदेश के लगभग सभी दिग्गज नेताओं को उन्ही के गृहजिले की लोकसभा सीट पर उम्मीदवार बनाया है। कई राजनितिक पंडितों के हिसाब से अब की बार कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों पर ही अपनी सीट बचाने और जनता के बीच जाने के लिए निर्देश दिया है, ताकि जनता को प्रधानमन्त्री के चुनाव के बजाय सांसद चुनाव के बदला जा सके।


बात करे सीटों की तो चुनाव के बहुत सारे कोण सामने आते हैं। अपार कोयले के भंडार युक्त जनजाति रिजर्व शहडोल लोकसभा सीट से पूर्व में कांग्रेस से आई हिमांद्री सिंह को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है।वहीं कांग्रेस ने फूंदे लाल सिंह मार्को पर भरोसा जताया है।


मंडला लोकसभा सीट भी एसटी रिजर्व है। इसमें मंडला, शिवनी, डिंडोरी, नरसिंहपुर जिले की 8 विधानसभा सीट आती हैं। कुल 19 लाख 52 हजार जनसंख्या वाले इस लोकसभा सीट में 52 प्रतिशत जनजाति एवं 7.67 प्रतिशत अनुसूचित जाति वोटर्स हैं। वर्तमान में 8 में से 5 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस वही 3 पर बीजेपी के पास हैं। भाजपा ने वर्तमान 6 बार के सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते को मैदान में उतारा है, वहीं कांग्रेस ने डिंडोरी से 4 बार के विधायक रहे, ओमकार सिंह मरकाम को टिकट दिया था। 2023 विधानसभा चुनाव में फग्गन सिंह कुलस्ते, निवार सीट से अपना विधानसभा चुनाव हार गए थे।


छिंदवाड़ा लोकसभा सीट एक हाईप्रोफाइल सीट है, जहां कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को फिर से मैदान में उतारा है वही भाजपा ने विवेक बंटी साहू पर भरोसा जताया है। मुख्यमंत्री और भाजपा के कई दिग्गज नेता बंटी साहू के समर्थन में वोट मांगते दिखे। 44 सालों से एक लोकसभा उपचुनाव छोड़ दिया जाए तो हर बार कांग्रेस के प्रत्याशी पर ही जनता ने भरोसा जताया। कमलनाथ यहां से 9 बार के सांसद रहे तो एक बार उनकी पत्नी अलका नाथ सांसद रही।वर्तमान में नकुलनाथ ही यहां से सांसद रहे हैं।


सीधी लोकसभा सीट जो की भाजपा की गढ़ मानी जाती है,से 2 बार की सांसद रही रीति पाठक को विधानसभा चुनाव में सीधी विधानसभा सीट से जीत जाने के बाद भाजपा ने पूर्व में बसपा से आए डॉ. राजेश मिश्रा को टिकट दिया है, वहीं कांग्रेस की ओर से पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया है। इस सीट से भाजपा से पूर्व राज्यसभा सांसद अजय प्रताप सिंह बागी होकर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के उम्मीद वार के रूप में चुनावी मैदान में हैं।


महाकौशल क्षेत्र की बालाघाट सीट 1998 से लागातार बीजेपी को जीत मिली। यह सीट 8 विधानसभा सीट से मिलके बनी है। यहां पूरा बालाघाट और कुछ शिवनी जिले का हिस्सा है। बीजेपी ने पूर्व सांसद डाल सिंह बिसेन की टिकट काटकर भारती पारधी को मैदान में उतारा है ,वही कांग्रेस से अशोक सारस्वत के बेटे सम्राट सारस्वत चुनाव लड़ रहे हैं। बीएसपी ने बलाघाट से 3 बार के विधायक कंकर मुंजारे को मैदान में उतारा है।


जबलपुर सीट से बीजेपी की ओर से आशीष दुबे को वही कांग्रेस की ओर से दिनेश यादव को टिकट दिया गया है।कांग्रेस के बैंक खाते सीज होने के बाद दिनेश यादव जनता के बीच वोट और चुनाव लडने के लिए आर्थिक सहायता राशि मांगने के लिए चर्चा में आए थे।


सतना सीट की बात करे तो जहां 4 बार के पूर्व सांसद गणेश सिंह जो अपना विधानसभा चुनाव हार गए थे, उन पर भाजपा ने पुनः भरोसा जताया है, वहीं सतना के विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया है।


सफेद शेरों की भूमि रीवा लोकसभा से 10 साल से सांसद जनार्दन मिश्रा को फिर से एक बार भाजपा ने मौका दिया है, वहीं सेमरिया विधानसभा विधायक की पत्नी नीलम मिश्रा को कांग्रेस ने टिकट दिया है। 2019 के चुनाव में जनार्दन मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस के प्रत्याशी सिद्धार्थ तिवारी के भाजपा में आने से और विधायक बनने से ये मुकाबला बीजेपी की ओर झुकता नजर आ रहा।


हालांकि यहां से वोट प्रतिशत का गिरना भाजपा को चिंतित कर रहा। प्राकृतिक सुंदरता का धनी, मां नर्मदा के तट पर बसा होशंगाबाद सीट लोकसभा चुनाव 35 वर्षो से भाजपा का गढ़ रहा है लेकिन इस सीट पर हमेशा काटे की टक्कर होने के आसार रहते हैं। चाहे वो अर्जुन सिंह को बीजेपी के सरताज सिंह से मिली हार हो या बीते चुनाव में उदय प्रताप की जीत से चौका देने का हो। इसीलिए बीजेपी का गढ़ होने के बाद भी बीजेपी हमेशा चौकन्ना रहती है। हालांकि बीजेपी ने इस बार नए चेहरे के रूप में किसान नेता दर्शन सिंह चौधरी को चुनावी मैदान में उतारा है, जिनका मुक़ाबला कांग्रेस के पूर्व विधायक संजय शर्मा से होगा।


ग्वालियर लोकसभा सीट से भाजपा का गढ़ होने के बाद भी यह सीट भी काफी हाई वोल्टेज चुनाव होने के आसार है, कारण है यहां की विधानसभा सीट पर दोनों ही पार्टियों को 4-4 बराबर विधायकों का जीतना और महापौर चुनाव में कांग्रेस का कब्जा होना। यहां से पूर्व में प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेई, माधवराज सिंधिया, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, तात्कालीन विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। बीजेपी से जहां भारत सिंह, वहीं कांग्रेस ने इस बार फिर से प्रवीण पाठक मैदान में हैं। बीएसपी ने कांग्रेस के बागी कल्याण सिंह कंसाना को टिकट दिया है। इसलिए ये मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।


गुना लोक सभा सीट एक हाईप्रोफाइल सीट मानी जाती है जहाँ से कांग्रेस से बागी हुए दिग्गज नेता, बीजेपी से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया मैदान में हैं। कांग्रेस से राव यादवेंद्र सिंह को कांग्रेस ने मौका दिया है। पिछली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया को इसी सीट पर कांग्रेस के पर्चे पर हार का सामना अपने ही करीबी कार्यकर्ता बीजेपी के केपी यादव से 1.50 लाख वोटों से हारे थे।


भारतीय लोकतंत्र में चुनाव में जीत और हार का अंतर भले ही एक वोट का ही पर हारे हुए प्रत्याशी के पक्ष में डाले हुए वोट और उनके पक्ष में वोट डालने वाले वोटर्स के अभिमत और आकांक्षा का लोकतंत्र में कोई महत्व नहीं रह जाता है। उदाहरण के तौर 100 लोगो की किसी लोकसभा में पर प्रत्याशी "" यदि अपने वादों में सबको घर देने की बात कर रहा वही प्रत्याशी "" सबको रोजगार देने की बात कर रहा, मान लीजिए 100 में से कुल 61 वोट पड़े जहां प्रत्याशी "" को 31 वोट एवं तथा प्रत्याशी "" को 30 वोट मिले, जिसमे 1 वोट अधिक मिलने के चलते प्रत्याशी "" जीत गए, ऐसी स्थिति में " " के पक्ष में पड़े वोटों का महत्व नहीं रहता, ना ही उनके समर्थन करने वाले वोटरों की आकांक्षाओं का रहता है।


नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने 2024 लोकसभा चुनाव में मेनिफेस्टो का नाम "मोदी की गारंटी" नाम रखा है ,जिसमे उनके द्वारा किए गए कार्यों को और जितने के बाद अगले 5 साल के होने वाले कार्यों को बताया गया है। सरकार एनआरसी, समान नागरिक संहिता जैसे कानूनी बदलाव की तो बात करती है पर मोदी की गारंटी में बीजेपी, युवाओं में बेरोजगारी, मंहगाई जैसे मुद्दों पर काफी सफाई से बचते दिखाई देती है।


प्रधानमंत्री भी अपने चुनावी भाषण में कोई भी ठोस कदम नहीं बताते दिखे। अंत में उन्हें भी कांग्रेस को कोस कर ही सभा पूरी करनी पड़ी।


वहीं बात करें कांग्रेस के मेनिफेस्टो "न्याय पत्र" में जहाँ "हर घर में एक गरीब महिला को 1 लाख रुपए साल" भर में देने, जातीय जनगणना, 30 लाख सरकारी नौकरियां देने जैसे वादे किए हैं, पर अधिकतर मुद्दों पर एनडीए के विरुद्ध एक मजबूत विकल्प के रूप में कभी नही दिखती नजर आती है। इंडी गठबंधन का मुख्य उद्देश्य, नरेंद्र मोदी को सत्ता से बेदखल करना लगता है, बजाय देश को एक अलग उद्देश्य या सही रास्ते पर ले जाने का कोई अलग प्रयास, शायद इसीलिए विपक्ष की सभाओं से जनता नदारत जान पड़ती है।


लेख


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अनूप हर्ष मिश्रा

यंगइंकर
भोपाल, मध्य प्रदेश