हिन्दू साम्राज्य दिवस विशेष : शिवाजी का हिंदुत्व आंदोलन

शिवाजी आजीवन महादेव की इच्छा अनुसार हिंदू समाज को एकजुट कर सांस्कृतिक और अध्यात्मिक कार्य हेतु कार्यरत रहे, जिसके प्रभाव स्वरूप 1680 में उनकी मृत्यु के बाद भी हिंदवी साम्राज्य (मराठा साम्राज्य) विशाल वृक्ष की भांति पूरे भारत राष्ट्र पर फैलता रहा जिससे भारतीयों को पुनः स्वाभिमान एवं पुरुषार्थ का एहसास हुआ।

The Narrative World    20-Jun-2024   
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विश्व मानचित्र पर सबसे समृद्ध और वैभवशाली राष्ट्र के रूप में भारत को देखा जाता रहा है, अपने इसी वैभव और संपन्नता के कारण भारत अकसर विदेशी आक्रांताओं के निशाने पर भी रहा। भारत की भूमि पर प्रथम विदेशी आक्रांता का आक्रमण 712 में मोहम्मद बिन कासिम ने किया, तभी से इस भारत में किसी न किसी प्रकार से विदेशी शक्तियो का आगमन होता रहा, जिसका माँ भारती के वीर सपूतों ने कड़ा संघर्ष किया, परन्तु कुछ तुच्छ भारतीयों द्वारा कट्टरपंथियों का साथ देने के परिणामस्वरूप संपूर्ण भारत राष्ट्र गुलामी की जंजीरों में जकड़ा गया।


1565 भारतीय इतिहास का ऐसा काला दौर था, जब भारतीय भूमि पर महजबी ध्वज को लहराते हुए 600 वर्षों का समय हो चुका था। उत्तर भारत में मुस्लिम पंथ के सुन्नी सम्प्रदाय का मुगलों के नाम से शासन था और दक्षिण में शिया संप्रदाय का शाह नाम से शासन था।


इस्लामिक विचारधारा के अनुसार सुन्नी और शिया एक दूसरे के कट्टर विरोधी हैं, वर्तमान समय में इसका उदाहरण इराक और ईरान जैसे देश है। परन्तु अपनी विचारधारा अनुसार काफिर का जिक्र होने पर आपसी मतभेद त्याग सब एक होकर लड़ते हैं।


तत्कालीन समय में इन क्रूर, असभ्य इस्लामिक आक्रान्ताओं का सामना इकलौता भारतीय विजयनगर साम्राज्य राजाराम राय के नेतृत्व में कर रहा था, परन्तु राजाराम राय की मृत्यु के बाद संपूर्ण भारत पर आक्रांताओं का कब्जा हो गया जिसके उपरान्त भारतीय समाज मानसिक रूप से स्वाभिमानहीन और पुरुषार्थ रहित बन गया।


बीजापुर सल्तनत के सेनापति शाहजी भोसले और गृहणी जीजाबाई के घर 19 फरवरी 1630 को हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र के संरक्षक शिवाजी शाह जी भोसले का जन्म हुआ। माता जीजाबाई ने भारतीय संस्कृति और हिंदुत्व का ज्ञान शिवाजी को बाल्यकाल से ही देना आरंभ किया, जिसके परिणामस्वरूप मात्र 15 वर्ष की आयु में 1645 में शिवाजी ने रायवेश्वर मंदिर में चैत्र सप्तमी के दिन पंडित शिव जंगम के समक्ष शिवलिंग का अपने रक्त से अभिषेक कर हिंदवी साम्राज्य की शपथ ग्रहण की।


16 वर्ष की आयु से ही शिवाजी ने म्लेच्छों से लोहा लेना शुरू कर दिया। 1650 में महाराष्ट्र के विभिन्न मावलों को एकत्रित कर मराठा समाज की स्थापना की जिसके अधीन उन्होंने 40 किलों पर भगवा ध्वज लहराया।


1659 में शिवाजी के बढ़ते पराक्रम को देख निजाम शाह ने अफजलखाँ को 25,000 की सेना के साथ दक्षिण का सूबेदार घोषित किया। कूटनीति का कुशल प्रयोग कर शिवाजी ने अफजल खान से संधि हेतु मिलने की योजना बनाई परन्तु अफजल खान का वध कर शिवाजी ने अपनी कुल देवी काल भवानी को श्रद्धांजलि समर्पित की और इसी के साथ दक्षिण में शाह साम्राज्य को सीधा चुनौती के रूप में सामने आई।


एक पुरानी कहावतदुश्मन का दुश्मन मित्र होता हैको सार्थक रूप शिवाजी ने मुसलमानों की मज़हबी मतभेद का लाभ उठाते हुए सुन्नी सम्प्रदाय के मुगलों से संधि कर शिया सम्प्रदाय के शाह साम्राज्य का पतन किया।


1670 में निजामशाही दक्षिण पठार में खत्म हो चुकी थी तथा मराठा शासन का उदय हुआ और इस बात पर बौखलाया औरंगजेब शिवाजी के पराक्रम को रोकने के लिए नीचता की सीमा लांघते हुए हिंदू राजा जयसिंह को शिवाजी के विरुद्ध किया। मातृभूमि का प्रण लेने वाले शिवाजी ने जय सिंह को पत्र लिखा- ‘जो किले आप चाहते हैं वे आपको सौंप दूंगा।


आपका ध्वज भी उन पर फहराऊंगा, परन्तु मुसलमानों को यश ना दिलवाए। हिंदू धर्म रक्षकों के सम्मुख शत बार नतमस्तक हो सकता हूँ परन्तु जिसका काम से हिंदू धर्म की अवमानना हो वह काम मैं कदापि नहीं करूँगा।‘ (विषय- शिवाजी का हिन्दुत्व आंदोलन, किताब- हिंदुत्व, लेखक-विनायक सावरकर, पृष्ठ 73) शिवाजी का पत्र उनकी भारतीय सांस्कृतिक और सद्भाव के प्रति उच्चतम विचार दर्शाता है, जिसके परिणामस्वरूप जय सिंह ने शिवाजी का संभव समर्थन किया और हिंदवी साम्राज्य के लिए हो रहे यज्ञ में अपनी आहुति भी दी।


ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी संवत् 1731 विक्रमी तदनुसार 06 जून 1674 ईस्वी को शिवाजी महाराज ने 50,000 ब्राह्मणों को रायगढ़ राजभवन में बुला विधिवत् श्री की इच्छानुसार हिंदवी साम्राज्य को स्थापित कर स्वयं को छत्रपति घोषित किया। इसी साम्राज्य के परिणामस्वरूप भारत का पुनः भगवाकरण हो सका और मुगल साम्राज्य का पतन आरंभ हुआ।


इतिहासकारों के अनुसार 1674-75 के समय की घटनाएँ मुगल साम्राज्य के पतन का कारण बनी, जिसमें प्रमुख दक्षिण भारत में शिवाजी का हिंदवी साम्राज्य तो दूसरी तरफ़ उत्तर भारत में श्री गुरु तेग बहादुर जी द्वारा कश्मीरी पंडितों की रक्षा हेतु आत्म बलिदान देना , इन सभी घटनाओं से भारतीयता का ऐसा वेग उत्पन्न हुआ जिसमे मुगल साम्राज्य की जड़ें पूरे भारत से उखड़ती हुई एक छोटे से क्षेत्र में रह चुकी थी।


शिवाजी आजीवन महादेव की इच्छा अनुसार हिंदू समाज को एकजुट कर सांस्कृतिक और अध्यात्मिक कार्य हेतु कार्यरत रहेजिसके प्रभाव स्वरूप 1680 में उनकी मृत्यु के बाद भी हिंदवी साम्राज्य (मराठा साम्राज्य) विशाल वृक्ष की भांति पूरे भारत राष्ट्र पर फैलता रहा जिससे भारतीयों को पुनः स्वाभिमान एवं पुरुषार्थ का एहसास हुआ।


वर्तमान समय में समाज को शिवाजी शाह जी भोसले के जीवन वृतांत से सामाजिक समरसता और सद्भाव का प्रवाह कर संयुक्त राष्ट्र के निर्माण के लिए पुन कार्यरत होने की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।


भारत में जन्म लेने वाली धार्मिक पद्धतियों को आपसी वैचारिक मतभेद त्याग बंधुत्व का भाव स्थापित कर समाज रूपी मोतियों को माला की तरह पिरोना चाहिए ताकि फिर से कोई मलेच्छ आक्रांताओं या तुच्छ व्यक्तियों द्वारा भारत की सुखद और समृद्ध परंपरा में विषैला बीजारोपण फिर ना हो सके। अंत में हिंदवी साम्राज्य के उपलक्ष्य में शिवाजी शाहजी भोसले को श्रद्धांजलि समर्पित करता अपने लेख को विराम देता हूँ।


लेख


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रजत भाटिया

स्तंभकार - Writers For The Nation
शिक्षक, स्तंभकार, लेखक