छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णुदेव साय का आलेख : आपातकाल लगाने वाले आज संविधान की दुहाई दे रहे

तथ्य यह है कि भारत में आज जो आज़ादी है, वह जेपी-लोहिया-अटल-आडवाणी जी जैसे महापुरुषों की देन है। यह कांग्रेस से लड़ कर पायी गयी आज़ादी है, कांग्रेस के शिकंजे से संविधान को मुक्त करा कर लायी गयी गयी आज़ादी है।

The Narrative World    26-Jun-2024   
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विश्व का सबसे बड़ा और सबसे अधिक सफल लोकतंत्र बहुधा रंग-बिरंगा दृश्य भी उत्तपन्न करता है। यह पढ़ते हुए आपको आश्चर्य होगा कि जिस समय भारत अपने ऊपर थोप दिए गए आपातकाल की पचासवीं बरसी मना रहा था, उसी समय कांग्रेस नीत विपक्ष के लोग संविधान की कथित हत्या का नारा लगाते हुए संविधान की प्रतियां लहरा रहे थे। उस कांग्रेस के लोग जिन्होंने संविधान की हत्या कर, लोगों के मौलिक अधिकारों तक को स्थगित कर देश में घोषित तानाशाही लागू कर दी थी। विपक्ष के अधिकांश नेताओं-कार्यकर्ताओं को निरपराध जेल में ठूँस दिया था।


25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि भारत में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के तहत आपातकाल लगा दिया था। जबकि आपातकाल जैसी कोई स्थिति तब थी ही नहीं। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए, तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इसे 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था।


तथ्य यह है कि जिन राष्ट्र्वादियों पर आज कांग्रेस कथित तौर संविधान समाप्त करने का आरोप लगा रही है, वह संविधान और लोकतंत्र उन्हीं राष्ट्र्वादियों द्वारा वापस बचाया गया है, जिसे सँवारने का काम प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। भारत में आज जो आज़ादी है, वह जेपी-लोहिया-अटल-आडवाणी जी जैसे महापुरुषों की देन है। यह कांग्रेस से लड़ कर पायी गयी आज़ादी है, कांग्रेस के शिकंजे से संविधान को मुक्त करा कर लायी गयी गयी आज़ादी है।


श्रीमती इंदिरा गांधी की तानाशाही, भ्रष्टाचार एवं तमाम अनियमितता के खिलाफ देश भर में तब भयंकर आक्रोश था। विगत चुनाव में इंदिरा गांधी के प्रतिद्वंदी रहे राजनारायण जी की चुनाव याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला देने पर उनके हाथ से सत्ता निकलती दिखी और तब 25 जून, 1975 की रात को आपातकाल लगाया गया था। सभी मौलिक अधिकार स्थगित कर दिए गए थे।


“उस दौरान कुल 3,801 अख़बारों को ज़ब्त किया गया। 327 पत्रकारों को मीसा कानून के तहत जेल में बंद कर दिया गया। 290 अख़बारों में सरकारी विज्ञापन बंद कर दिए गए। ब्रिटेन के The Times और The Guardian जैसे कई समाचार पत्रों के 7 संवाददाताओं को भारत से निकाल दिया गया। रॉयटर्स सहित कई विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के टेलीफोन और दूसरी सुविधाएं काट दी गई। 51 विदेशी पत्रकारों की मान्यता छीन ली गई। 29 विदेशी पत्रकारों को भारत में एंट्री देने से मना कर दिया गया। अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार को जिस तरह तब कुचला गया था, उसका कोई अन्य उदाहारण नहीं है। आज का लोकतंत्र कांग्रेस के कारण नहीं, बल्कि उसके बावजूद कायम है।”


हमने अपने पुरखों के बलिदान से भले आज़ादी दोबारा हासिल करने में सफलता पायी हो, लेकिन इस आज़ादी पर खतरे तब तक बने रहेंगे जब तक कांग्रेस का अस्तित्व है। हमने छत्तीसगढ़ में भी हाल ही में ऐसे दौर से मुक्ति पायी है, जहां महज बिजली कटौती की बात करने पर राजद्रोह के आरोप में मुक़दमा कर दिया जाता था। जहां राष्ट्रीय नेताओं और पत्रकारों पर सौ-सौ मुकदमें इसलिए ठोक दिए गए थे, क्योंकि इन नेताओं ने संतों की निर्मम हत्या की भर्त्सना की थी, या कोरोना के समय सरकार और देश को बदनाम करने की विपक्षी साजिश वाले ‘टुल किट’ को उजागर कर दिया था।


ऐसे आपातकाल की मनोवृत्ति वाले तत्व और संगठन आज भी मौजूद हैं, हर क्षण-प्रतिपल लोकतंत्र विरोधी तत्वों के खतरे के प्रति सावधान रहने की ज़रुरत है। ये ऐसे ही तत्व हैं जो लगातार झूठ पर झूठ गढ़ते हुए देश को बदनाम करने का कोई मौक़ा हाथ से गवाना नहीं चाहते। 2019 में ही कांग्रेस लगातार दुष्प्रचार कर रही थी कि अगर मोदी जी चुनाव जीत गए तो देश में चुनाव नहीं होंगे। यही राग 2024 में अलाप रहे थे जबकि भारत के चुनाव प्रणाली की साख दुनिया भर में है। ऐसा झूठ कांग्रेस इस तथ्य के बावजूद बोलती रही कि उल्टे उसने ही आपातकाल में चुनाव आदि की संभावनाओं को समाप्त कर दिया था। संसद के अधिकार छीन लिए थे। आज मोदीजी तीसरी बार जीते हैं और देश में चुनाव आयोग स्वतंत्र हो कर उपचुनाव की घोषणा कर रहा है। शीघ्र ही झारखंड, महाराष्ट्र आदि में चुनाव होने हैं। पर कांग्रेस अपने झूठ पर ज़रा भी शर्मिंदा नहीं है।


यहां यह विशेष तौर पर ध्यान देने योग्य बात है कि जिस सेक्यूलरिज़्म को कांग्रेस ने लगातार दशकों तक तुष्टिकरण के बहाने के रूप में उपयोग किया, वह सेक्यूलरिज़्म भी आपातकाल के दौरान ही संविधान की प्रस्तावना में डाल दिया गया था। वह मूल संविधान का हिस्सा नहीं था। इसके अलावा भी अनावश्यक तौर पर 80 से अधिक बार संविधान को तोड़-मरोड़ कर उसमें मनमाना संशोधन करते रहने वाली कांग्रेस ही आज अगर संविधान समाप्त होने की झूठी बात पर घड़ियाली आसूँ बहा रही है, तो इसके निहितरथ को समझने की ज़रूरत है। बहरहाल।


अगर आप इतिहास को याद नहीं रखेंगे तो उसे बार-बार दुहराने पर विवश होंगे। आपातकाल का यह इतिहास हमें इसलिए भी बार-बार हर बार स्मरण रखना चाहिए ताकि ऐसा कलंकित इतिहास कभी अब फिर दुहराने का दुस्साहस कांग्रेस या उस मनोवृत्ति वाला कोई दल कभी अब करने में सफल नहीं हो पाए। इतिहास याद रखने का एक उपाय यह भी है कि हम हमारे सेनानियों, अपने नायकों को उनके शौर्य को सम्मानित करते रहें। दूसरी आज़ादी के सेनानियों अर्थात् मीसाबंदियों को छत्तीसगढ़ में भी एक सम्मान राशि दी जा रही थी, प्रदेश की तब की भाजपा सरकार ने 2008 में इसे प्रारम्भ किया था।


छत्तीसगढ़ में ऐसे 350 से अधिक लोग थे, जिन्होंने अत्यंत प्रताड़ना झेलते हुए भी लोकतंत्र की मशालें थामी रखी थी। कांग्रेस की पिछली सरकार ने इस सम्मान को भी मीसा बंदियों से छीन लेने का असंवैधानिक कृत्य किया था। उनकी सम्मान बहाली की लड़ाई में सभी राष्ट्रभक्त साथ रहे और हमारी सरकार ने सभी की पेंशन बहाली उनके बकाए राशि के साथ करने का निर्णय कर लोकतंत्र सेनानियों के अवदान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित किया है। आज ऐसे सभी क़रीब 350 सेनानियों को हम ससम्मान मुख्यमंत्री निवास में सपरिवार भोजन पर आमंत्रित कर स्वयं को सौभाग्यशाली समझ रहे हैं। अपने नायकों का सम्मान कर वास्तव में हम स्वयं सम्मानित होते हैं। आपातकाल और उससे लड़ने वाले योद्धाओं का सम्मान हमेशा हमें आपातकाल वाले तत्वों से निपटने-जूझने हमें प्रेरित करता रहेगा।


लेख


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विष्णुदेव साय
मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़ शासन