'शेर-ए-पंजाब' महाराजा रणजीत सिंह

शेर-ए-पंजाब नाम से विख्यात महाराजा रणजीत सिंह का जीवन भी सनातन संस्कृति से प्रेरित था। सिख गुरुओं की शिक्षा और परम्पराओं का अनुसरण करते हुए उन्होंने अपने शासन में ब्राह्मणों को संरक्षण प्रदान किया और गौवध के लिए मृत्युदंड भी निर्धारित किया।

The Narrative World    27-Jun-2024   
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18 वीं शताब्दी के समाप्त होने तक पंजाब में इस्लामी शासन का अंत हो चुका था, तथा कई सिख राजाओं ने शासन स्थापित किया, जिसमें महाराजा रणजीत सिंह सर्वाधिक शक्तिशाली थे। तत्कालीन समस्त सिख पंथ के लोग भारत की प्राचीन सांस्कृतिक जड़ों से संबंधित थे।


इसका तर्क महाराजा रणजीत सिंह के अधिकारिक सैन्य नियमावली के पहले पृष्ट से स्पष्ट हो जाता था, जिसमें हिंदुओं के पवित्र ॐ में त्रिदेव (विष्णु, शिवजी, ब्रह्मा) और देवी लक्ष्मी जी की आकृतियां अंकित थी। (पुस्तक: नैरेटिव का मायाजाल, लेखक:बलबीर पुंज, पृष्ठ:165)


शेर-ए-पंजाब नाम से विख्यात महाराजा रणजीत सिंह का जीवन भी सनातन संस्कृति से प्रेरित था। सिख गुरुओं की शिक्षा और परम्पराओं का अनुसरण करते हुए उन्होंने अपने शासन में ब्राह्मणों को संरक्षण प्रदान किया और गौवध के लिए मृत्युदंड भी निर्धारित किया।


कई सैन्य अभियानों के अंतर्गत उन्होंने कश्मीर में पंडितों को क्रूर इस्लामी शासन से स्वतंत्र कराया तथा पराजित अफगानियों से लूटे सोमनाथ मंदिर के कपाट वापिस लाए और इस्लामी शासकों से देश की धरोहर व नायाब कोहिनूर हीरे को भारत वापस लेकर आए।


27 जून 1839 को उनका देहांत हो गया, तब उनकी वसीयत अनुसार इसी कोहिनूर को पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ के चरणों में अर्पित करना था, परंतु ब्रिटिश कुटिलता के कारण आज भी वह हीरा ब्रिटेन की महारानी के ताज में विद्यमान है।


“अपने जीवनकाल में महाराजा रणजीत सिंह ने काशी के विश्वनाथ मंदिर, हिमाचल प्रदेश स्थित ज्वालामुखी मंदिर में भी भरपूर सोना अर्पित किया। वास्तव में महाराजा रणजीत सिंह ने दस गुरुओं तथा श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की शिक्षाओं का अनुसरण कर अपना जीवन व्यतीत करने की शिक्षा दी। महाराजा रणजीत सिंह की लाहौर स्थित समाधि के प्रवेश द्वार पर ब्रह्मा, गणेश और देवी के चित्र लाल बलुआ पत्थर पर तराशे गए थे।”


महाराजा रणजीत सिंह सर्वाधिक शक्तिशाली सिख प्रशासक थे। उन्होंने कश्मीर और पश्चिमोत्तर प्रांतों से इस्लामिक राज्य खत्म कर सिख साम्राज्य को स्थापित किया। अपनी सैन्य श्रेष्ठता के कारण ब्रितानियों ने धीरे-धीरे भारत पर कब्जा तो कर लिया, परंतु सैन्य शक्ति के दम पर भारत पर शासन करना मुश्किल था। भारत में लंबे समय तक अपना शासन स्थापित करने के लिए अंग्रेजों ने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनाई, जिसका शिकार महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद पंजाब भी हुआ।


तत्कालीन सिख साम्राज्य के एकमात्र वारिस युवराज दिलीप सिंह अल्प आयु में राजगद्दी पर बिठा दिए गए। अंग्रेजों ने बालक दिलीप सिंह को उनकी माँ महारानी जिन्दां कौर से अलग कर दिया और उन्हें लंदन भेज कर उनका मतांतरण कर 'सर' की उपाधि देकर पंजाब और भारतीय संस्कृति से दूर कर दिया। इंग्लैंड में दिलीप सिंह को जॉन स्पेंसर लोगन और उनकी पत्नी को सौंप दिया गया, जहाँ उनका ईसाईयत में मतान्तरण कर उनके हाथों में वहां की धार्मिक पुस्तक थमा दी गई। फिर उन्हें कोहिनूर हीरा ब्रिटेन की महारानी को उपहार में पेश करने के लिए बाध्य किया गया।


मशहूर लेखक खुशवंत सिंह की पुस्तक 'ए हिस्ट्री ऑफ सिख्स’ में लिखा है कि महाराजा रणजीत सिंह एक सच्चे सिख होने के साथ साथ भारतीय परंपराओं और संस्कृति में अटूट श्रद्धा रखते थे, जिसकारण उनका दाह संस्कार भी भारतीय परंपराओं के अनुसार हुआ।


वास्तव में मैकॉलिफ और ब्रिटिश कुटिलता का प्रभाव सिख और भारतीय संस्कृति के संबंधों पर पड़ा। जिसके परिणामस्वरूप भारत की भूमि पर विचारक मतभेदों का बीजारोपण हुआ, जिसने पृथकवाद को बढ़ावा दिया। वर्तमान समय में पंजाब की आत्मा पंजाबियत को वैचारिक मतभेद फैलाकर हानि पहुंचाई जा रही है, जिसमें कुछ सत्तालोभी राजनीतिक संगठन शामिल हैं।


ऐसे विश्वासघाती संगठनों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए महाराजा रणजीत सिंह की पुण्यतिथि पर समस्त पंजाबी समाज से एकता और बंधुत्व स्थापित करने का आह्वान करता हूँ ताकि पंजाब में समभाव स्थापित कर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए पंजाब को पुनः सोने की चिड़िया बनाया जा सके।


लेख


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रजत भाटिया

स्तंभकार - Writers For The Nation
शिक्षक, स्तंभकार, लेखक