समाज को अराजकता की राजनीति से सतर्क रहना होगा

जिस दिन मतदान का आखिरी चरण था, विपक्षी गठबंधन ने बैठक की और एक्जिट पोल के प्रसारण से पहले ही अपनी जीत की घोषणा कर दी, कहा की गठबंधन 295 सीटें जीतने जा रही है। इस आंकलन का आधार क्या है? शायद विपक्ष का यह दावा भी उसी तरह का है जिसमें मोदी सरकार पर संविधान बदलने, आरक्षण खत्म करने का है।

The Narrative World    03-Jun-2024   
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18वीं लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है, मतगणना कल होगी। इस बीच एक्जिट पोल ने एनडीए की सरकार बनने के संकेत दिए हैं। लगभग ढ़ाई महीने की चुनावी प्रक्रिया के दौरान सभी पार्टियों के नेताओं ने मंचों से बड़ी बड़ी बातें की, परंतु इस चुनाव में विपक्षी गठबंधन ने जिस प्रकार के मुद्दे उठाए, जिन विषयों को जनता के बीच लेकर गए, वे देश के भविष्य के लिए खतरनाक हैं। उदाहरण के तौर पर, संविधान खतरे में है, भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला तो आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा, जाति जनगणना करा कर जाति की संख्या के आधार पर संसाधन और पदों का बंटवारा किया जायेगा आदि।


जिस दिन मतदान का आखिरी चरण था, विपक्षी गठबंधन ने बैठक की और एक्जिट पोल के प्रसारण से पहले ही अपनी जीत की घोषणा कर दी, कहा की गठबंधन 295 सीटें जीतने जा रही है। इस आंकलन का आधार क्या है? शायद विपक्ष का यह दावा भी उसी तरह का है जिसमें मोदी सरकार पर संविधान बदलने, आरक्षण खत्म करने का है। जबकि एक्जिट पोल करने वाली सभी एजेंसियों ने यह संभावना जताई है की मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार सरकार बनने जा रही है और एनडीए को 350 से 400 तक सीटें मायने वाली है। इसके बाद भी इंडी गठबंधन अपनी जीत के दावे पर बरकरार है, क्या वाकई एक्जिट पोल के दावे असफल होने वाले हैं? अगर नहीं तो सवाल यह है कि विपक्ष इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहा है?


जब भी चुनाव मतदान के बाद एक्जिट पोल के परिणाम आते हैं जो हारने वाले खेमे में होता है वह एक्जिट पोल की वैज्ञानिकता, सत्यता, निष्पक्षता पर संदेह करता ही है और मतगणना के दिन तक प्रतीक्षा करने की बात कहता है। पिछले 15 वर्षों में कई एक्जिट पोल गलत भी साबित हुए हैं खासकर राज्यों के विधानसभा चुनाव को लेकर। लोकसभा चुनाव का एक्जिट पोल 2004 में ध्वस्त हुआ था इसलिए अभी विपक्ष उसी तरह इस लोकसभा के परिणाम को लेकर एक्जिट पोल की असफलता के दावे कर रहा है। यहां तक तो ठीक है लेकिन 2004 और 2024 के बीच की तुलना करना भी कई मायनों में सही नहीं होगा।


पहला तो यह कि एक्जिट पोल करने वाली एजेंसियों ने भी अपनी गलतियों से सबक ली है, इसलिए कुछ एजेंसियों के आंकलन एकदम सटीक साबित हो रहे हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात, 2004 में कांग्रेस पार्टी मजबूत स्थिति में थी, पचमढ़ी मंथन के बाद गठबंधन की राजनीति को स्वीकार किया था। कांग्रेस राष्ट्रीय धुरी थी, 150 से अधिक सीटें अपने बलबूते जीत रही थी और क्षेत्रीय दलों को अपने सहयोगी के रूप में शामिल करना चाहती थी। अभी कांग्रेस पार्टी की कितनी दुर्दशा है, किसी से छिपी नहीं है, ऊपर से उत्तर भारत की ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियां अपने निम्नतर प्रदर्शन कर रही हैं। इसका मतलब न तो विपक्षी गठबंधन की धुरी मजबूत है और न ही सहयोगी पार्टियां।


लोकतंत्र में जनता का मत सर्वोपरि होता है, 2024 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही सरकार के प्रति जनता के कुछ घटकों में असंतोष हो सकता है लेकिन गुस्सा नहीं है। जबकि मोदी सरकार ने पिछले 10 सालों में अपनी योजनाओं के लाभार्थियों का मजबूत वोटबैंक तैयार कर लिया है, यह ऐसे मतदाता हैं जिनको सरकारी लाभ मिल रहा है, इन्हें भाषण और नारों से दिग्भ्रमित नहीं किया जा सकता। राम मंदिर निर्माण, धारा 370 को समाप्त करने, विश्व स्तर पर भारत की साख बढ़ाने और मजबूत आर्थिक विकास ऐसे विषय हैं जिन पर मोदी के विरोधी भी सहमत हो जाते हैं। ऐसे स्थिति में 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन का 295 सीटें जीतने का दावा किन आधार पर किया जा रहा है?


चुनाव की प्रक्रिया के दौरान कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने जिस प्रकार के विषयों को जनता के सामने प्रस्तुत किया गया, वे भी भारतीय चुनाव के इतिहास में मौलिक हैं। समाज में जाति-जनजाति के मन में भेद पैदा करने की कोशिश और इस आधार पर अमीरी और गरीबी को परिभाषित करने की कोशिश सामान्य चुनावी भाषण नहीं थे। मंच से एक पिछड़ी जाति के व्यक्ति की गरीबी, बेरोजगारी को सवर्ण जातियों की अमीरी से तुलना कर यह कहना कि उसकी गरीबी का कारण है सवर्ण धनपति और उसे उसकी संपत्ति पाने का अधिकार है। विडियो जारी कर पुणे के सड़क हादसे को गरीब और अमीर के आधार पर एक विभाजनकारी विमर्श खड़ा करने का कुत्सित प्रयास किया गया।


यह जहर जब किसी समाज में बोया जा रहा है तो मान लीजिए यह चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा मात्र नहीं है। दूसरी ओर संवैधानिक संस्थाओं जैसे चुनाव आयोग, न्यायालय की निष्पक्षता पर संदेह जताना भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की विश्वसनीयता पर चोट करना है। ऐसा इसलिए किया जा रहे कि चुनाव परिणाम के बाद जब विपक्षी गठबंधन पराजित हो जाय तो ईवीएम को दोष देकर, चुनाव को फर्जी बताकर देश में अराजकता और उन्माद फैलाई जा सके। चुनाव प्रचार के दौरान इस प्रकार के विषयों को उठाकर एक माहौल बनाने का प्रयास किया जा चुका है।


जो लोग पिछले 10 वर्षों से लोकतंत्र और संविधान की रक्षा की दुहाई देते आए हैं, उन्हें अब समझ में आ चुका है कि बहुसंख्यक मतदाता का भरोसा अब उनके साथ नहीं है। लोकतंत्र बहुसंख्यक के मतों के आधार पर चलता है जबकि देश में अराजकता फैलाना या उनमें पैदा करना कुछ मुट्ठी भर लोग कर सकते हैं। यह प्रयोग विपक्ष नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में शाहीन बाग में और कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के आंदोलन के दौरान कर चुकी है। आज विपक्ष भारत में लोकतंत्र को बंधक बनाने के लिए जातीय संघर्ष शुरू करवा सकता है। इसकी शुरुआत चुनावके परिणाम के बाद हो सकती है।


भारत में लोकतंत्र का व्यवहार प्राचीन काल से होता रहा है यही कारण है कि भारत में राजतंत्र भी लोक कल्याण भी भावना से चलते थे और दुनिया के दूसरे देशों की तरह तानाशाह भारत में नहीं हुए। यह सामाजिक भावना भारत की बड़ी शक्ति है, सत्ता के लिए राजनीति किसी भी स्तर तक गिर सकती है लेकिन भारत की संस्कृति की रक्षा करने वाला समाज और हमारी कुटुंब व्यवस्था ऐसी किसी षड्यंत्र को सफल नहीं होने देगी।


लेख

शशांक शर्मा

वरिष्ठ पत्रकार