वैश्विक जल संसाधन की चुनौतियां

जल विशेषज्ञों ने उत्तर की नदियों को दक्षिण से जोड़ने की योजना बनाई थी। अंग्रेजों ने इस पर विचार नहीं किया पहली बार 1980 में विचार किया गया लेकिन अधिक धन के कारण नहीं संभव हो सका। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इस विशाल और खर्चीली योजना पर कार्य प्रारंभ किया गया। वर्तमान सरकार ने इस योजना में तेजी लाने का काम किया।

The Narrative World    05-Jun-2024   
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महाकवि रहीम का दोहा --

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।

पानी गये न उबरे , मोती, मानुस चूना ।।

हमारे कवियों ने प्राचीन काल से जल की महत्ता पर सत्यता प्रदर्शित की है। इसलिए जल ही जीवन है और जल के बिना सब जग सूना है। मानव ही नहीं अपितु जीव जगत और जन्तु जगत के लिए भी जल अत्यधिक और अनिवार्य माना गया है।जल के बिना सभी का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।

जग प्रसिद्ध है कि जल में ही सबसे पहले जीवन आया था। पृथ्वी पर चारों तरफ जल ही जल व्याप्त था। पृथ्वी की 71%में सागर और महासागर फैला हुआ है और 29 %पर महाद्वीप और द्वीप स्थित हैं। केवल 3% जल उपयोगी है। सागर और महासागर का जल खारा होता है तो ध्रुवीय, अंटार्कटिका और उच्च पर्वतीय क्षेत्र हिमाच्छादित है।


सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उपयोगी जल नदियों, नहरों, झील और तालाब से प्राप्त होता है। बड़ी मात्रा में भूमिगत जल भी पाया जाता है। विश्व में कुल प्रमुख 165000 नदियां हैं जिसमें सबसे लम्बी नदी अमेजान है।विश्व में प्रमुख नदियां हैं - मिसीसिपी, मिसौरी( उत्तर अमेरिका),अमेजान( दक्षिण अमेरिका), नील, जायरे( अफ्रीका), वोल्गा, डैन्यूब, राईन ,रोन,पो ( योरोप) ,दजला -फरात, ह्वांग हो, यांगत्सीकांग, गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र ( एशिया), मरे और डार्लिंग (आस्ट्रेलिया)

उपयोगी और स्वच्छ जल का प्रयोग घरेलू कार्यों ( पीने योग्य) के साथ कृषि की सिंचाई, उद्योग तथा निर्माण कार्य में किया जाता है। जल का प्रयोग जीवों और पेड़ पौधों के लिए आवश्यक है।जल परिवहन तो किसी भी जल क्षेत्र में किया जा सकता है।

विश्व की जनसंख्या आठ अरब ( 800 करोड़) हो गई है और यह लगातार बढ़ती जा रही है। विश्व के सभी भागों में जल पर्याप्त नहीं है। गर्म और ठंडे मरूस्थल में वर्षा कम होने से जल का संकट बना रहता है। ठंडे पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा कम और हिमपात अधिक होता है। योरोप में आल्प्स और एशिया में हिन्दूकुश से हिमालय तक हिमाच्छादित पर्वतीय क्षेत्र है। जिसमें हिमनद (ग्लैशियर -जोकि धीमी गति चलने वाली हिम की नदी) की भरमार है।

जलवायु परिवर्तन का संबंध तापमान और मौसम पद्धति में लंबे समय से परिवर्तन से है। इसके लिए मानवीय क्रियायें बहुत हद तक जिम्मेदार हैं। क्योंकि मानव जीवाश्म ईंधन का उपयोग परिवहन, विद्युत उत्पादन और घरेलू कार्यों में बहुत अधिक कर रहा है। इससे विश्व के विभिन्न हिस्सों में अति मौसम का पाया जाना हो रहा है। समुद्रों का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है इससे तटीय शहरों के डूबने का खतरा पैदा हो गया है। यही नहीं जैवविविधता ( जीव-जंतु और पेड़ पौधों की प्रजातियां) की हानि हो रही है। विश्व में करीब दस लाख प्रजातियां जैव जगत में पायी जाती है। समुद्रों और स्थल भाग में जीव और वनस्पतियां के अस्तित्व पर खतरा बढ़ता जा रहा है।

वैश्विक जलवायु परिवर्तन आज सबसे बड़ी चुनौती और समस्या बन गई है। वैसे तो जलवायु विज्ञान के अंतर्गत प्रति 35 से 50 वर्ष में जलवायु में थोड़ा बहुत परिवर्तन आ जाता है लेकिन जिस प्रकार विश्व की जलवायु बदल रही है वह विश्व के लिए चिंता जनक है।विकसित, विकासशील और अविकसित देशों में यह समस्या विकराल रूप धारण कर रही है।


पृथ्वी का तापमान हर वर्ष बढ़ रहा है और इससे ग्लैशियर पिघल रहे हैं और उनका आकार घटता जा रहा है। इसलिए विश्व के सभी देश "सेव द अर्थ प्रोग्राम -पृथ्वी बचाओ अभियान" चला रहे हैं। वनों की तेजी से कटाई पर नियंत्रण किया जा रहा है। परिवहन और विद्युत उत्पादन में जीवाश्म ईंधन के बजाय वैकल्पिक ईंधन पर जोर दिया जा रहा है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और हाईड्रोजन को विकसित किया जा रहा है।

जलवायु परिवर्तन का असर हिन्दूकुश से लेकर हिमालय पर्वतमाला तक भारतीय उपमहाद्वीप में हिमनद की भरमार है। केवल जम्मू-कश्मीर में 14000 छोटे बड़े हिमनद पाये जाते हैं जिसके कारण वहां से निकलने वाली सभी नदियां सदानीरा हैं। लेकिन इन क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान बढ़ा है और हिमनद का आकार घटता जा रहा है। हिमनद झील में परिवर्तित हो जा रही हैं। इसलिए 40 वर्षों में 2000 हिमनद झील में परिवर्तित हो गयी हैं यह भीषण चिंता भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ( इसरो) के वैज्ञानिकों ने प्रकट की है।


इसका प्रभाव भारत सहित पांच देशों( नेपाल, भूटान, पाकिस्तान और बांग्लादेश) पर प्रभाव पड़ेगा जहां निम्न समुद्री जलस्तर वाले नगरों के जलमग्न होने का खतरा बढ़ता जा रहा है। यही नहीं भारतीय उपमहाद्वीप में भीषण बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है। वैसे तो प्रति वर्ष इन क्षेत्रों में बाढ आती रहती है।

वर्तमान में केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट है कि दक्षिण भारत के राज्यों - आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में बड़े 42 जलाशय में केवल 17% जल बचा है और मानसून आने अभी बहुत समय है।

यही नहीं भारत में जितनी नदियों में जल पाया जाता है उससे अधिक भूमिगत जल का भंडार रहा है। जिसका उपयोग कृषि सिंचाई, पेय सहित घरेलू कार्यों और निर्माण कार्यों में हो रहा है। वर्तमान में भूमिगत जलस्तर में तेजी से कमी होती जा रही है। जोकि गंभीर चिंता का विषय है।

भारत में करीब 400 छोटी बड़ी नदियां हैं। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है जहां सर्वाधिक 206 नदियां हैं। उत्तर भारत की नदियां - गंगा, ब्रह्मपुत्र, सतलुज, सिंधु, यमुना आदि सदानीरा है जोकि हिमनद से निकलती हैं और वर्ष भर जल पाया जाता है। जबकि दक्षिण भारत की नदियां जैसे नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी ऋतुवत हैं जोकि वर्षा ऋतु में अधिक प्रवाहित होती हैं। इसलिए संपूर्ण भारत में जल की असमानता पायी जाती है।


जल विशेषज्ञों ने उत्तर की नदियों को दक्षिण से जोड़ने की योजना बनाई थी। अंग्रेजों ने इस पर विचार नहीं किया पहली बार 1980 में विचार किया गया लेकिन अधिक धन के कारण नहीं संभव हो सका। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इस विशाल और खर्चीली योजना पर कार्य प्रारंभ किया गया। वर्तमान सरकार ने इस योजना में तेजी लाने का काम किया।


3.2 लाख करोड़ रुपए की वृहत स्तर की योजना है जिसमें इन नदियों के अतिरिक्त वर्षा जल को सूखे वाले क्षेत्र में आपूर्ति करना है और दक्षिण भारत की नदियों जल के अभाव को समाप्त करना है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना को पूरा करने में एक दशक से अधिक का समय लग सकता है। अभी केवल केन, बेतवा को जोड़ने का कार्य संपन्न हुआ है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना को पूरा होने एक दशक से अधिक का समय लगेगा।


अब समय आ गया है कि सभी भारतीयों को जल संसाधन का महत्व समझना होगा। भारत में नगर नगर, गांव गांव को स्वच्छ जल से जोड़ना होगा। भारत में 2500 छोटे बड़े शहर और पांच लाख गांव हैं जहां 140 करोड़ मानव रहते हैं। अभी यह लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है। भूमिगत जल का प्रयोग कम करना होगा और पेयजल को छोड़कर बाकी सभी कार्यों के लिए रिसाइकिल किया जल उपयोग में लाना चाहिए। उत्तर भारत की नदियां दक्षिण से जुड़ने से यह समस्या कुछ हद तक दूर हो जायेगी।


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इन्दु शेखर त्रिपाठी

स्तंभकार - Writers For The Nation