बस्तर में बौखलाए माओवादी जनजाति ग्रामीणों को बना रहे निशाना

जिन-जिन स्थानों में फोर्स ने कैंप स्थापित किए हैं, उन स्थानों में भी माओवादी इसी तरह स्थानीय ग्रामीणों को निशाना बना रहे हैं। फोर्स का कैंप खुलने से माओवादियों का प्रभाव इन क्षेत्रों से लगभग खत्म हो जाता है, जिससे ना उन्हें छिपने की जगह मिलती और ना ही उन्हें माओवादी संगठन के लिए संसाधन मिल पाते हैं।

The Narrative World    05-Jun-2024   
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छत्तीसगढ़ में माओवादियों के विरुद्ध केंद्रीय सुरक्षाबलों एवं राज्य की पुलिस द्वारा चलाए जा रहे आक्रामक अभियानों से बौखलाए माओवादी अब आम जनजाति ग्रामीणों को निशाना बना रहे हैं।


बस्तर के धुर माओवादी क्षेत्र नारायणपुर में माओवादियों ने एक जनजाति ग्रामीण की हत्या कर दी है। इस हत्या को अंजाम देने वाले माओवादियों ने शव के समीप ही पर्चें भी फेंके हैं।


सामने आई जानकारी का अनुसार माओवादियों ने इस घटना को 2 रविवार को नारायणपुर जिले के मसपुर गांव में करीब 10 बजे के आसपास अंजाम दिया है। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार रविवार के देर रात करीब 15-20 माओवादी उनके गांव में पहुँचे थे, जो माओवादी वर्दी भी पहने हुए थे, साथ में हथियारों से भी लैस थे।


इस दौरान नक्सलियों ने गांव के ही जनजाति व्यक्ति शालुराम पोटाई के निवास को चारों ओर से घेर लिया, और उसके घर में जा धमके। इस दौरान शालुराम अपने निवास में भोजन कर रहा था, लेकिन माओवादियों ने उसे उसी वक्त घसीटते हुए घर से बाहर निकाला और बाहर आते ही धारदार हथियारों से उसपर हमला करते गए।


माओवादियों के इस हमले में शालुराम की मौके पर ही मौत हो गई, जिसके बाद माओवादी घटनास्थल पर पर्चा फेंक कर चले गए। माओवादियों ने इस घटनास्थल पर कुतुल एरिया कमेटी का पर्चा फेंका है।


मसपुर गांव में हुई इस घटना के लिए माओवादी आतंकियों ने मृतक जनजाति ग्रामीण पर पुलिस मुखबिरी का आरोप लगाया है, हालाँकि यह सर्वविदित है कि माओवादी अपने द्वारा की गई हत्याओं एवं हिंसा को 'मुखबिरी' की आड़ में करते आ रहे हैं।


माओवादियों द्वारा किए गए इस हत्या को लेकर पुलिस का कहना है कि इस पूरे क्षेत्र में अब विकास कार्यों में गति आई है, साथ ही स्थानीय जनजातियों के उत्थान के लिए कार्य किया जा रहा है, लेकिन माओवादी इन सभी गतिविधियों से बौखलाए हुए हैं।


गौरतलब है कि मसपुर से होरादी के लिए एक दिन पहले ही सड़क का निर्माण किया गया था, और सड़क बनने के बाद माओवादियों इस क्षेत्र के एक जनजाति ग्रामीण की हत्या कर दी।


“बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों में जिस तरह से विकास कार्य हो रहे हैं, उससे माओवादी परेशान हैं, क्योंकि इन विकास कार्यों के चलते अब स्थानीय जनजाति ग्रामीणों पर माओवादी विचारधारा का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है, बल्कि ग्रामीण अब विकास को तरजीह देने लगे हैं। इसीलिए माओवादी इन विकास कार्यों को रोकने के लिए एवं क्षेत्र में भय का माहौल बनाने के लिए ऐसी हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं।”


यह भी देखा जा रहा है कि जिन-जिन स्थानों में फोर्स ने कैंप स्थापित किए हैं, उन स्थानों में भी माओवादी इसी तरह स्थानीय ग्रामीणों को निशाना बना रहे हैं। फोर्स का कैंप खुलने से माओवादियों का प्रभाव इन क्षेत्रों से लगभग खत्म हो जाता है, जिससे ना उन्हें छिपने की जगह मिलती और ना ही उन्हें माओवादी संगठन के लिए संसाधन मिल पाते हैं।


अभी माओवादियों ने जिस मसपुर में ग्रामीण की हत्या की है, वहां भी 2 महीने पुलिस कैंप खोला गया है। कैंप खुलने का परिणाम यह हुआ कि सोनपुर जैसे अंदरूनी क्षेत्रों से भी अंदर अब मसपुर तक सड़क पहुंच चुकी है।


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इससे पहले भी माओवादियों ने कई बार स्थानीय जनजाति ग्रामीणों पर मुखबिरी का आरोप लगाते हुए उनकी हत्या की है। फरवरी माह में ही बीजापुर जिले में माओवादियों ने तिमापुर गांव के एक जनजाति युवक मिच्चा हिड़मा की हत्या कर दी थी, जिसकी आयु केवल 25 वर्ष थी। माओवादियों ने इसका अपहरण कर लिया था, जिसके बाद इसे जंगल में टंगिया से मार कर उसकी हत्या कर दी थी।


बीते 40 महीनों में ही माओवादियों ने 25 से अधिक ग्रामीणों अपने 'फर्जी जनअदालत' के माध्यम से मौत के घाट उतारा है। माओवादियों के इस नरसंहार में मारे गए लोग अधिकांशतः जनजाति ग्रामीण हैं।


कुल मिलाकर देखा जाए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि माओवादी आतंकी अपनी कम्युनिस्ट-माओवादी विचारधारा की आड़ में केवल और केवल बस्तर के जनजाति ग्रामीणों का नरसंहार कर रहे हैं, जिन्हें ना जल से मतलब है, ना जंगल से और ना जमीन से।