बस्तर में माओवाद : जनजाति समाज की पीड़ा को संवेदनशीलता से समझकर कड़े कदम उठाती छत्तीसगढ़ सरकार

माओवादी संगठन की बौखलाहट ऐसी है कि वो आम जनजाति ग्रामीणों को निशाना बना रहे हैं। जनजातीय ग्रामीणों की हत्याएँ की जा रही हैं, वहीं उनका शोषण भी किया जा रहा है। इन सभी विषयों को लेकर वर्तमान सरकार कितनी संवेदनशील है, इसका पता हाल ही में जगदलपुर में हुए कार्यक्रम से पता चलता है।

The Narrative World    07-Jun-2024   
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छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा से जिस समूह को सर्वाधिक नुक़सान पहुँचा है
, वो है जनजाति समाज। जनजातियों के विकास, उत्थान, शिक्षा, चिकित्सा एवं रोजगार में माओवादी-नक्सली सबसे बड़ी बाधा हैं।


यही कारण है कि अब छत्तीसगढ़ की वर्तमान सरकार एवं केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ और विशेषतः बस्तर से माओवाद के पूर्ण उन्मूलन पर कार्य आरम्भ कर दिया है।


प्रदेश में नयी सरकार के गठन के बाद से ही माओवादियों के विरुद्ध आक्रामक अभियान चलाए गए, और इसका परिणाम यह हुआ कि पहले चार माह में ही 100 से अधिक माओवादियों को फ़ोर्स ने ढेर कर दिया।


लेकिन दूसरी ओर माओवादी संगठन की बौखलाहट ऐसी है कि वो आम जनजाति ग्रामीणों को निशाना बना रहे हैं। जनजातीय ग्रामीणों की हत्याएँ की जा रही हैं, वहीं उनका शोषण भी किया जा रहा है। इन सभी विषयों को लेकर वर्तमान सरकार कितनी संवेदनशील है, इसका पता हाल ही में जगदलपुर में हुए कार्यक्रम से पता चलता है।


बीते सोमवार (3 जून, 2024) को जगदलपुर स्थित टाउन हॉल में 'लोकतंत्र बनाम माओवाद' नामक एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसमें प्रदेश के उप मुख्यमंत्री एवं गृहमंत्री विजय शर्मा और बस्तर के बड़े जनजातीय नेता एवं प्रदेश सरकार में वन मंत्री केदार कश्यप भी मौजूद थे।


इस कार्यक्रम में ही केदार कश्यप ने जब माओवादी हिंसा झेल रहे स्थानीय जनजयियों की बात की, तब वो भावुक हो गए, उनका गला भर आया। केदार कश्यप ने कहा कि 'मैं उन हिंसक घटनाओं को याद नहीं करना चाहता। बस्तर में ऐसी घटनाएँ नहीं होनी चाहिए।


उन्होंने माओवादी हिंसा पर आगे कहा कि "जो पीड़ा बस्तर को झेलनी पड़ी है, वो पीड़ा आने वाली पीढ़ी को ना सहना पड़े। हत्या की इतनी वीभत्स घटना अपने जीवन में मैंने कभी नहीं देखी थी, आज भी वो मंज़र याद आता है, उनके परिवारों के चेहरे दिखाई देते हैं।"


“वन मंत्री केदार कश्यप ने भावुक होकर प्रश्न उठाया कि माओवादियों की हिंसा के चलते परिवार के परिवार उजड़ गए, आख़िर माओवादी ये बताएँ कि ये लड़ाई वो किसके लिए लड़ रहे हैं? माओवादी आगे आकर बताएँ कि ये जनजातियों को क्यों मार रहे हैं? बस्तर के प्रत्येक परिवार ने अपने परिजन खोए हैं।"”

 


केदार कश्यप ने कहा कि यदि माओवादी जनजातियों का विकास चाहते हैं तो उन्हें 'गनतंत्र' को छोड़कर 'जनतंत्र' को अपनाना चाहिए। वन मंत्री द्वारा इस तरह का भावुक कथन यह बताता है कि कैसे बस्तर में माओवादी आतंक की पीड़ा को ज़मीनी स्तर पर ना सिर्फ़ समझा जा रहा है, बल्कि संवेदनशीलता के साथ इसके समाधान के प्रयास भी किए जा रहे हैं।


माओवादी बस्तर में लगातार जनजाति नागरिकों को निशाना बना रहे हैं। हाल ही में माओवादियों ने नारायणपुर में एक जनजाति ग्रामीण को उसके घर से निकाल कर उसकी हत्या कर दी थी।


इसके पहले माओवादी आतंकी संगठन ने अपनी "फर्ज़ी जनताना अदालत" लगाकर बीते चार वर्षों में पच्चीस से अधिक जनजातीय ग्रामीणों की हत्या कर चुके हैं, और यह आँकड़ा केवल और केवल उनके उस "फर्ज़ी जनताना अदालत" का है।


इसके अतिरिक्त माओवादियों के द्वारा लगाए गाए आईईडी विस्फोटक की चपेट में आने के चलते ना सिर्फ़ जनजातीय महिलाएँ एवं पुरुष मारे जा रहे हैं, बल्कि छोटे-छोटे जनजाति बच्चे भी उनके आतंक का शिकार बन रहे हैं।


वहीं माओवादियों ने छत्तीसगढ़ की पिछली सरकार (भूपेश बघेल सरकार) के दौरान भाजपा नेताओं को भी निशाना बनाया, जो अधिकांश जनजाति समाज से आते थे।


माओवादियों ने बस्तर के कई जनजाति नेताओं की हत्या की, जो जनजाति समाज के थे और जिन्होंने समाज के भीतर माओवाद की खोखली विचारधारा के विरोध में जागृति लाई और समाज को अहिंदु गतिविधियों से दूर रखा।


कुल मिलाकर देखें तो बात यही है कि माओवादियों ने "नक्सल आंदोलन" के नाम पर जनजातियों को "जल, जंगल, जमीन" बचाने एवं "जनजातियों-शोषितों-वंचितों" की लड़ाई लड़ने के नाम पर केवल और केवल जनसंहार किया है, जिसका सबसे अधिक ख़ामियाजा जनजाति समाज को उठाना पड़ा है।


लेकिन एक अच्छी बात यह है कि प्रदेश की वर्तमान सरकार ना सिर्फ़ इस समस्या को गम्भीरता से ले रही है, बल्कि जनजाति समाज की पीड़ा को संवेदनशीलता से समझ भी रही है। इसी का परिणाम है कि प्रदेश सरकार को माओवादियों के विरुद्ध सफलता हासिल हुई है।


राज्य में माओवादियों के विरुद्ध फोर्स ने ऐसा आक्रामक अभियान चलाया कि 4 महीनों में 100 से अधिक माओवादी ढेर हो गए। इसी दौरान ही फोर्स ने छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ी सफलता हासिल करते हुए कांकेर के छोटेबेठिया में माओवादियों के विरुद्ध ऑपरेशन के दौरान 29 कम्युनिस्ट आतंकियों को ढेर किया था, जो राज्य का सबसे बड़ा नक्सल ऑपरेशन था।