हजारों वर्षों तक भारत वर्ष सोने की चिड़िया कहलाता था। भारत अति समृद्ध देश था, और यह समृद्धि केवल धन-धान्य की नहीं थी, बल्कि यह भूमि ज्ञान की राजधानी भी थी। ऐसा ही एक ज्ञान का वैश्विक केंद्र था, नालंदा महाविहार। जहां पर रत्नासागर, रत्नोरंजन, रत्नादधि नामक तीन बड़े विश्वविद्यालय थे।
यह ज्ञान, विज्ञान, चिकित्सा, ज्योतिष, दर्शन व अन्य विषयों के अध्यन का केंद्र था। विश्व भर के मेधावी विद्यार्थियो का यहां अध्ययन करना स्वप्न रहता था। नालंदा विश्वगगन में दैदीप्यमान ज्ञान का सूर्य था, जिसपर अज्ञान के कई राक्षसों द्वारा ग्रहण लगाने की कोशिश की गई। नालंदा के ऊपर कुल 3 बार आक्रमण हुए और ज्ञान के इन मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया। प्रथम दो बार ध्वस्त होने के पश्चात और बेहतर पुनर्निर्माण करवा दिया गया था, परंतु तीसरी बार के विध्वंस के बाद पुनर्निर्माण में 830 वर्षों से अधिक का समय लग गया।
नालंदा का अर्थ है ज्ञान का कभी न रुकने वाला बहाव। नालंदा विश्वविद्यालय की ख्याति पूरे विश्व में फैली हुई थी। नालंदा से निकलने वाली ज्ञान की ज्योति पूरे विश्व में बुद्धि का प्रकाश फैलाती थी। नालंदा वह स्थान था जहां पर भगवान बुद्ध ने अपना तीसरा उपदेश दिया था। यह विश्व का प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय था, जहां पर 10,000 विद्यार्थियों व 1500 आचार्यों के रुकने की व्यवस्था थी।
यहां चरक, शुश्रुत, आर्यभट्ट, नागार्जुन जैसे आचार्य उपदेश देते थे। यह स्थान ज्ञान, विज्ञान, कला, चिकित्सा, साहित्य, परमाणु विज्ञान का वैश्विक केंद्र था। यहां की विद्वता का प्रमाण इस बात से लगता है कि यहां पर विद्यार्थियों को प्रवेश के लिए प्रतियोगी परीक्षा से गुजरना पड़ता था, जिसमें साक्षात्कार विश्वविद्याल के द्वारपाल लेते थे। नालंदा के द्वारपाल के रूप में बड़े बुद्धिमान व्यक्ति को नियुक्त किया जाता था, जिसे मनोविज्ञान की अच्छी जानकारी होती थी।
यहां विशाल एवं भव्य पुस्तकालय था जिसमें 90 लाख से अधिक पुस्तकें विभिन्न विषयों पर उपलब्ध थीं। विपश्यना ध्यान जिसे अवचेतन मन की प्लास्टिक सर्जरी कहते हैं, उसकी खोज भी इसी पवित्र ज्ञान भूमि पर हुई थी।
नालंदा के ज्ञान की ख्याति सुनकर चीन का प्रसिद्ध विद्वान ह्वेनसांग भी शिक्षा ग्रहण करने इस भूमि पर आया था। शिक्षा ग्रहण करने के बाद अपनी पुस्तकों में नालंदा का उल्लेख किया था।
इस ज्ञान के वैश्विक केंद्र पर कुल 3 बार आक्रमण हुआ था। एक बार कुषाण राजाओं द्वारा, एक बार बंगाल के राज द्वारा और एक बार बख्तियार खिलजी द्वारा। प्रथम दो आक्रमणों में नालंदा को कुछ खास क्षति नहीं पहुँची थी, और महाविहार का पुनर्निर्माण तात्कालिक राजा कुमारगुप्त और हर्षवर्धन ने करवा दिया था। दोनों आक्रमणों के पश्चात नवनिर्मित नालंदा पहले से बेहतर रूप में सामने आया। लेकिन तीसरे आक्रमण के पश्चात इस ज्ञान के केंद्र को फिर खड़ा होने में काफी समय लग गया।
बारहवीं शताब्दी के अंत में सम्राट पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा गुलाम वंश की स्थापना की गई, जिसके साथ भारत में इस्लामी शासन का काल प्रारंभ हुआ। गुलाम वंश के पहले शासक कुतुबुद्दीन ऐबक का एक सिपहसालार था बख्तियार खिलजी।
इसी दौरान बख्तियार खिलजी जब रोग ग्रस्त हो हुआ, तब लाख उपाय करने के बाद भी उस रोग का निवारण नहीं हो रहा था। तब किसी ने उसे सलाह दी कि नालंदा में उपस्थित चिकित्सक उसका इलाज कर सकते हैं। अंततः उसे नालंदा के चिकित्सकों के पास जाना पड़ा, जिसके बाद नालंदा के चिकित्सकों उसे ठीक कर दिया। भारतीय ज्ञान की इस अलौकिक समृद्धि को देखकर खिलजी ईर्ष्या व क्रोध से भर गया और उसने नालंदा और उसके ज्ञान का विध्वंस करने का निर्णय लिया।
1193 में खिलजी ने नालंदा पर आक्रमण किया। सभी भवनों को गिरा दिया और वहां उपस्थित सभी आचार्यों और विद्यार्थियो को मार डाला। कई शिक्षकों को तो जिंदा जला दिया गया। साथ ही नालंदा की सबसे बड़ी धरोहर उसके पुस्तकालय को भी जला दिया गया। आग में झुलसे पुस्तकालय की आग को शांत होने में 3 महीने से ज्यादा का समय लग गया, और उस बर्बरता की आग में स्वाहा हो गई भारत की अमूल्य धरोहर, जिसमें कई उपनिषदों की महत्वपूर्ण प्रतिलिपियाँ थीं। ना जाने कितने महत्वपूर्ण वैज्ञानिक सूत्र उस अग्नि में जल गए।
नालंदा के विध्वंस से विश्व कई शताब्दी पीछे चला गया। यदि नालंदा का विमर्श चलता रहता तो शायद जो खोज आइंस्टीन और गैलीलियो ने करी वो सदियों पहले ही भारत के वैज्ञानिक कर दिखाते। ना जाने कितने महाकाव्यों की रचना हो सकती थी, शायद चांद तक की यात्रा कई शताब्दियों पहले ही संभव हो जाती। परंतु यह विश्व का दुर्भाग्य था कि यह धरोहर एक इस्लामिक कबीलाई के असहिष्णु विचारधारा की बलि चढ़ गई।
कुछ समय पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के नवनिर्मित परिसर का उद्घाटन किया। अपने उद्बोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि आग की लपटे भले ही पुस्तकों को जला दें, परंतु ज्ञान को नहीं जलाया जा सकता।
नालंदा का पुनरुत्थान भारत के विश्वगुरु बनने की यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि 21वीं सदी भारत की सदी होगी। नालंदा के निर्माण से विश्व भारत के यग में प्रवेश की ओर एक और कदम आगे बढ़ गया है। भारत निरंतर विश्व पटल पर मजबूती से आगे बढ़ रहा है।
ओंकारेश्वर में निर्माणाधीन एकात्म धाम और नालंदा भारत को वैचारिक रूप से सुद्रढ़ बनाएंगे। नालंदा के पुनरुत्थान से भारत के पुनः सर्वविद्या की राजधानी बनने की यात्रा प्रारंभ होगी। जिस ज्ञान के आंतरिक बल के कारण भारत ने 800 वर्षों की बर्बरता भरी पराधीनता झेली, उसी ज्ञान की राजधानी आज फिर सीना ताने खड़ी हो गई है।
नालंदा का नवनिर्मित परिसर यह संदेश देता है कि अंधकार के बादल सूर्य के प्रकाश को ज्यादा समय तक नहीं रोक सकते। भारत तैयार है फिर से विज्ञान, साहित्य, चिकित्सा, कला, परमाणु विज्ञान आदि का वैश्विक केंद्र बनने को, फिर से विश्वगुरु बनने को।
लेख
आदित्य प्रताप सिंह
यंगइंकर
विधि छात्र, वक़्ता
इंदौर, मध्यप्रदेश