बस्तर में ईसाई मिशनरियों का षड्यंत्र (भाग - 2) : नारायणपुर में 10 दिन के भीतर दूसरी बार शव दफनाने को लेकर विवाद, जनजाति समाज में आक्रोश

स्थानीय ग्रामीणों द्वारा बेनूर के थाना प्रभारी को लिखा गया एक पत्र सामने आया है, जिसमें स्थानीय जनजाति ग्रामीणों ने पुलिस को पत्र जारी कर यह जानकारी दी है कि उनके गांव में 19 अगस्त, 2023 को किसी ईसाई महिला की मृत्यु हुई है, और उसका अंतिम संस्कार गांव में नहीं करने दिया जाएगा।

The Narrative World    20-Aug-2024   
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बस्तर में ईसाई मिशनरियों का षड्यंत्र' नामक हमारी आलेख शृंखला के पहले भाग में हमने विस्तार से बताया था कि कैसे ईसाई मिशनरियों द्वारा बस्तर के जनजातियों की भूमि पर कब्जा करने की साजिश रची जा रही है, जिसके लिए वो अब शव दफनाने जैसे विषय को मुखौटा बना रहे हैं।


पिछले आलेख में हमने आपको नारायणपुर जिले के कलेपाल क्षेत्र में हुई घटना के बारे में बताया था कि कैसे वहां एक ईसाई व्यक्ति की मौत के बाद उसके शव को गांव में ही दफनाने के लिए ईसाइयों के समूह ने कोशिश की थी, लेकिन स्थानीय जनजातीय ग्रामीणों के चलते वो सफल नहीं हो पाए थे। उस ईसाई व्यक्ति की मृत्यु 10 अगस्त, 2024 को हुई थी, जिसके बाद अंततः 2 दिनों के बाद शव को जिला मुख्यालय स्थित ईसाई कब्रिस्तान में दफनाया गया था।

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आज इस आलेख शृंखला के दूसरे भाग में ऐसी ही एक और घटना के बारे में खबर देने वाले हैं, जो कल अर्थात 19 अगस्त, 2024 को घटित हुई है। नारायणपुर के बेनूर थाना के अंतर्गत जिस कलेपाल में 10 दिन पहले घटना हुई थी, अब ठीक उसी गांव के पड़ोस में स्थित कोरेन्डा में ऐसे ही घटना की जानकारी सामने आई है।


स्थानीय ग्रामीणों द्वारा बेनूर के थाना प्रभारी को लिखा गया एक पत्र सामने आया है, जिसमें स्थानीय जनजाति ग्रामीणों ने पुलिस को पत्र जारी कर यह जानकारी दी है कि उनके गांव में 19 अगस्त, 2023 को किसी ईसाई महिला की मृत्यु हुई है, और उसका अंतिम संस्कार गांव में नहीं करने दिया जाएगा। बेनूर थाना प्रभारी को लिखे पत्र का पूरा कथन कुछ इस प्रकार है -


"प्रामाणित किया जाता है कि ग्राम - कोरेन्डा (कालेपारा) में दिनांक 19/8/2024 को श्रीमती सोनारी वड्डे / स्व. जुगुल वड्डे का निधन रात 10 बजे जिला अस्पताल नारायणपुर में हुआ है। उनका पूरा परिवार ईसाई धर्म को मानता था, और गांव की परंपराओं रीति रिवाजों एवं किसी प्रकार के देवी रीति रिवाजों को नहीं मानने के कारण उसका (श्रीमती सोनारी वड्डे) का दफन ग्राम कोरेन्डा (कालेपारा) की भूमि पर परगना बेनूर के आदिवासी समाज एवं समस्त ग्रामवासी के निर्णय अनुसार उसे गांव में दफन करने नहीं दिया गया है। उसे जिला नारायणपुर मुख्यालय में अपने ईसाई समाज द्वारा ले जाए। समाज बेनूर परगना के आदिवासी समाज द्वारा यब निर्णय लिया गया है कि ग्राम कोरेन्डा (कालेपारा) के देवी भूमि स्थल पर उसका क्रिया कर्म नहीं करने दिया जाएगा।"


बेनूर थाना प्रभारी के नाम से लिखे गए इस पत्र में स्थानीय जनजातीय ग्रामीणों के नाम एवं उनके हस्ताक्षर भी मौजूद है। गांव के अधिकांश जनजाति परिवार ईसाइयों को अपने पवित्र पुरखों की भूमि पर दफनाना नहीं चाहते।


स्थानीय ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार मृतिका महिला के ईसाई परिजन एवं ईसाई मिशनरी समूह के सदस्य उक्त महिला के शव को अभी तक जिला अस्पताल के शवगृह में ही रखे हुए हैं, उन्होंने अभी तक (मंगलवार दोपहर तक) किसी भी तरह से अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को शुरू नहीं किया है। कुछ सूत्रों से यह जानकारी भी मिली है कि ईसाई समूह इस मामले को लेकर हाईकोर्ट जाना चाहता है, और इसके लिए मिशनरी का पूरा तंत्र उनके साथ लगा हुआ है।



दरअसल कुछ महीने पहले जगदलपुर के समीप एक गांव के ईसाई व्यक्ति की मौत पर मिशनरी समूह ने गांव वालों के विरोध के चलते शव दफनाने के लिए बिलासपुर हाईकोर्ट का रुख किया था, जिसके बाद हाईकोर्ट ने ईसाई व्यक्ति को निजी जमीन में शव दफनाने की अनुमति दी थी। कुछ इसी तरह की योजना को दोबारा अंजाम देने के लिए मिशनरी समूह अभी भी जुटा हुआ है।


हालांकि इस बात को भी याद रखना होगा कि नारायणपुर जिले के ही भटपाल में एक ईसाई व्यक्ति की मौत के बाद मिशनरी समूह ने निजी जमीन बताकर उसके शव को जनजातियों की देवस्थली के समीप दफना दिया था, जिसके बाद काफी हंगामा हुआ था।

बाद में जांच में भी यह बात सामने आई थी कि जिस जमीन को निजी बताकर ईसाई व्यक्ति के शव को दफनाया गया है, वह शासकीय भूमि है। ऐसे में ग्रामीणों का कहना है कि ईसाइयों के द्वारा जनजातीय गांवों में ही शव दफनाने की जिद के पीछे कुछ और नहीं, बल्कि शासकीय एवं जनजातीय भूमि पर कब्जा करना है।


हालांकि इन सब के बीच अच्छी बात यह है कि जनजातीय समाज में अब अपनी संस्कृति, परंपरा, सभ्यता और देवी-देवताओं के रीति-रिवाजों के समक्ष मंडरा रहे खतरे को लेकर जागरूकता आ रही है। यह जागरूकता बस्तर के कोने-कोने तक फैलनी इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि विधर्मी शक्तियों एवं जनजातियों के अधिकारों को छिनने वाली ताकतों ने इन क्षेत्रों में काफी अंदर तक घुसपैठ कर ली है।