बस्तर में ईसाई मिशनरियों का षड्यंत्र (भाग - 3) : हाईकोर्ट का भी दुरुपयोग करने से नहीं चूक रहा मिशनरी समूह

कोरेन्डा गांव की एक महिला का 18 अगस्त, 2024 को नारायणपुर जिला अस्पताल में निधन हो गया था। इसके बाद मृतक महिला का ईसाई बेटा अपनी माँ का अंतिम संस्कार ईसाई पद्धति से कराने की जिद कर रहा था, जिसका स्थानीय जनजातीय ग्रामीणों ने जमकर विरोध किया।

The Narrative World    24-Aug-2024   
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बस्तर में ईसाई मिशनरियों का षड्यंत्र', द नैरेटिव की इस खास आलेख शृंखला के पहले दो भागों में उन पहलुओं को बताने का प्रयास किया गया था कि कैसे ईसाई मिशनरियों के कारण स्थानीय जनजातीय संस्कृति को खतरा हो रहा है।


इस आलेख शृंखला के पहले भाग में 10 अगस्त, 2024 को नारायणपुर जिले के कलेपाल क्षेत्र में ईसाई व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके शव को दफनाने को लेकर हुए विवाद पर विस्तार से जानकारी दी गई थी।


वहीं इसके दूसरे भाग में 18 अगस्त, 2024 को नारायणपुर जिले के ही कोरेन्डा गांव की घटना का उल्लेख किया गया था। इन दोनों आलेखों में यह जानकारी देने का प्रयास किया गया था कि कैसे ईसाई मिशनरी शव दफनाने के नाम पर जनजातियों की भूमि पर कब्जा करने, स्थानीय जनजातीय संस्कृति को खत्म करने और ईसाइयत को बढ़ावा देने के लिए षड्यंत्र रच रहे हैं।


आज इस आलेख शृंखला के तीसरे भाग में ईसाई मिशनरियों के उस षड्यंत्र को उजागर करेंगे, जो आपका जानना अत्यंत आवश्यक है। यह समझने का प्रयास करेंगे कि कैसे यह समूह अपने षड्यंत्र के लिए न्यायालय और न्याय व्यवस्था का भी दुरुपयोग कर रहा है।

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हालांकि यह दुरुपयोग अधिक समय तक नहीं चल सकता था, यही कारण है कि इन मिशनरियों के षड्यंत्रकारियों को न्यायालय से भी मुंह की खानी पड़ी है। दरअसल आलेख शृंखला के दूसरे भाग में जिस घटना का उल्लेख किया गया था, वह कोरेन्डा गांव का था।



कोरेन्डा गांव की एक महिला का 18 अगस्त, 2024 को नारायणपुर जिला अस्पताल में निधन हो गया था। इसके बाद मृतक महिला का ईसाई बेटा अपनी माँ का अंतिम संस्कार ईसाई पद्धति से कराने की जिद कर रहा था, जिसका स्थानीय जनजातीय ग्रामीणों ने जमकर विरोध किया।


स्थानीय जनजातियों ने इस मामले को लेकर बेनूर थाना के प्रभारी को एक पत्र लिखकर ईसाई पद्धति से अंतिम संस्कार करने नहीं देने की बात कही थी, साथ ही यह भी कहा था कि जनजातियों के देवी भूमि स्थल पर यदि उसे अंतिम क्रियाकर्म करना है तो जनजाति रीति-रिवाज से ही करने दिया जाएगा। बेनूर थाना प्रभारी के नाम स लिखे गए इस पत्र में स्थानीय जनजातीय ग्रामीणों के नाम एवं उनके हस्ताक्षर भी मौजूद थे।

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अब इस मामले को लेकर ईसाई मिशनरियों के सहयोग से मृतक महिला का ईसाई बेटा अपनी मां का अंतिम संस्कार करने से ही रुक गया। उस ईसाई व्यक्ति बिल्लू ने बिलासपुर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कि जिसमें उसने अपनी मृतक माँ का अंतिम संस्कार अपनी ही भूमि पर करने की अनुमति मांगी। इस याचिका में "सारतिक कोर्राम बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एवं अन्य" में दिए गए फैसले को ही आधार बनाकर, कुछ उसी तरह के फैसले की मांग की गई थी।


इस याचिका को लेकर हाईकोर्ट का अब निर्णय आ चुका है, हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट रूप स कहा है कि जिस गांव में महिला की मृत्यु हुई है, वहां एक निर्धारित श्मशान मौजूद है, अतः निजी भूमि पर शव दफनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

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इस पूरे मामले में ईसाई व्यक्ति ने कोर्ट में याचिका लगाते हुए कहा था कि 18 अगस्त, 2024 को महिला की मृत्यु के बाद स्थानीय ग्रामीण उसकी मां का अंतिम संस्कार उसकी निजी भूमि पर करने का विरोध कर रहे हैं।


विरोध को देखने के बाद याचिकाकर्ता ईसाई ने छिंदबहार मामले (सारतिक कोर्राम बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एवं अन्य) की तरह ही कोर्ट से आदेश लाने के लिए याचिका लगाई।


इस याचिका का विरोध करते हुए स्टेट काउंसिल ने कहा कि मृतका के गांव में पहले से ही श्मशान क्षेत्र मौजूद है। जब किसी क्षेत्र में एक निर्धारित श्मशान क्षेत्र होता है, तब किसी भी व्यक्ति को ऐसे ही अपनी पसंद की भूमि पर अंतिम संस्कार करने नहीं दिया जा सकता है।

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स्टेट काउंसिल ने कहा कि 'सारतिक कोर्राम बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एवं अन्य'पूरी तरह से अलग मामला था। स्टेट काउंसिल द्वारा यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता अभी भी जनजातीय रीति-रिवाज एवं पद्धति से अपनी मां का अंतिम संस्कार कर सकता है।


वहीं इस मामले में एक तीसरा पक्ष लेकर आये स्थानीय ग्रामीणों के वकील ने कहा था कि क्षेत्र के 265 ग्रामीणों के हस्ताक्षर सहित पत्र मौजूद हैं, जिसमें उन्होंने निर्धारित क्षेत्र के अतिरिक्त किसी अन्य क्षेत्र में अंतिम संस्कार करने का विरोध किया है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना था कि यदि याचिकाकर्ता अपनी मां का अंतिम संस्कार जनजातीय रीति-रिवाज से निर्धारित स्थल में करता है, तो उन्हें कोई समस्या नहीं है।


इन सभी पहलुओं को सुनने के बाद न्यायधीश पार्थ प्रीतम साहू ने यह फैसला सुनाया कि मृतका का अंतिम संस्कार निजी जमीन में नहीं किया जाएगा, साथ ही अंतिम संस्कार गांव के निर्धारित स्थली में पूरे जनजातीय रीति-रिवाज एवं परंपरा से किया जाएगा।

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ईसाई व्यक्ति द्वारा लगाई गई याचिका कहीं ना कहीं ईसाइयों के बड़े षड्यंत्र को दिखाती है, जिसे वो बस्तर की भूमि पर अंजाम दे रहे हैं।


मिशनरियों की साजिश कुछ ऐसी है कि वो जनजातियों की जमीन पर ही ईसाइयों को दफनाना चाहते हैं, वो इसी साजिश में लगे हैं कि जनजातियों की भूमि में उनका कब्जा हो जाये।