जोशुआ प्रोजेक्ट का काला सच (भाग - 1) : कॉरपोरेट मॉडल पर सैलरी देकर चल रहा कन्वर्जन का खेल

भारत में जनजातियों के विरुद्ध तमाम तरह के षड्यंत्र चल रहे हैं, जिनमें सबसे बड़ा नुकसान उन ईसाई मिशनरियों द्वारा पहुंचाया जा रहा है, जो इनका कन्वर्जन करवा रहे हैं। बीते कुछ वर्षों में देखा गया है कि भारत के मध्य क्षेत्र के जनजातियों को ईसाइयों ने मुख्य रूप से अपना निशाना बनाया है, जिनका व्यापक स्तर पर कन्वर्जन किया जा रहा है।

The Narrative World    30-Aug-2024   
Total Views |


Representative Image
भारत में जनजातियों के विरुद्ध तमाम तरह के षड्यंत्र चल रहे हैं
, जिनमें सबसे बड़ा नुकसान उन ईसाई मिशनरियों द्वारा पहुंचाया जा रहा है, जो इनका कन्वर्जन करवा रहे हैं। बीते कुछ वर्षों में देखा गया है कि भारत के मध्य क्षेत्र के जनजातियों को ईसाइयों ने मुख्य रूप से अपना निशाना बनाया है, जिनका व्यापक स्तर पर कन्वर्जन किया जा रहा है।


इसके लिए मिशनरी समूह प्रलोभन, भय, मिथ्या, भ्रम एवं बल का भी उपयोग कर रहे हैं। इन क्षेत्रों में जो ईसाई संस्था सर्वाधिक सक्रिय है, वह है जोशुआ प्रोजेक्ट। यह जोशुआ प्रोजेक्ट नामक संस्था सिर्फ मध्य भारत ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में हिंदुओं को ईसाई बनाने का कार्य कर रही है। इस संस्था को विदेशों से भी फंडिंग होती है, और यह पूरी संस्था अमेरिका से ही संचालित होती है।


इस जोशुआ प्रोजेक्ट नामक संस्था द्वारा मध्य भारत के 4 राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में चलाए जा रहे अनैतिक गतिविधियों पर हाल ही में एक निजी मीडिया ने विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें विस्तार से बताया गया है कि कैसे इस संस्था द्वारा हिंदुओं को चिन्हित कर ईसाई बनाया जा रहा है।

Representative Image


अमेरिका से संचालित जोशुआ प्रोजेक्ट नामक ईसाई संस्था का दावा है कि वो प्रत्येक वर्ष 24 लाख भारतीयों को ईसाई बना रही है। इसका पूरा उद्देश्य ही ईसाई मत का प्रचार-प्रसार करना है।


रिपोर्ट के अनुसार यह संस्था देश में हिंदुओं को जातियों में वर्गीकृत कर उन्हें चिन्हित करती है, और उसके बाद प्रत्येक वर्ग के लिए एजेंट नियुक्त कर उनका कन्वर्जन करने के लिए अपनी योजना बनाती है। इस संस्था के द्वारा देश के विभिन्न गांवों में चर्च और प्रार्थना स्थल भी बनाए गए हैं, जो कन्वर्जन का बड़ा केंद्र हैं।


मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हिंदुओं के कन्वर्जन का यह पूरा मॉडल 'पीपीपी' पर आधारित है। पहले पी का अर्थ है प्रचार, दूसरे पी का अर्थ पास्टर और तीसरे का मतलब है पादरी। यह गाँव-गाँव मे प्रचार का पूरा नेटवर्क बनाता है, जिसमें प्रचार, पास्टर और पादरी के रूप में इनका पद होता है। यह किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी की तरह की कार्य करता है, जिसमें एक सीईओ है, फिर मैनेजर एवं अन्य कर्मचारी।

Representative Image


इसमें 'प्रचार की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, जो सीधे जमीन पर सक्रिय रहता है। रिपोर्ट के अनुसार 'प्रचार' एक पद है जो जोशुआ प्रोजेक्ट में काम करने वाले ईसाई को दिया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य कन्वर्जन कराना ही है। प्रत्येक गांव में एक व्यक्ति को प्रचार का पद दिया जाता है, जिन्हें गांव में ईसाइयत को बढ़ावा देने एवं कन्वर्जन कराने के पैसे मिलते हैं।


इन्हें एक कन्वर्जन पर दो हजार रुपये और किसी की शादी ईसाई से कराने पर 1500 रुपये दिए जाते हैं। इसके अलावा प्रार्थना कराने के लिए घंटी एवं सील-मुहर भी उपलब्ध कराई जाती है। यही वो व्यक्ति होता है जो गांव-गांव में चर्च एवं प्रार्थना स्थल के लिए स्थान भी ढूंढता है।


इसके बाद अगला व्यक्ति होता है दूसरा पी, अर्थात पास्टर। सभी प्रचार अपने क्षेत्र के पास्टर को रिपोर्ट करते हैं। ईसाई संस्था द्वारा इन्हें 10-20 हजार रुपये तक वेतन दिया जाता है। ये चर्च के लिए नई जगह को खोजते हैं, और नये लोगों को बड़े स्तर पर कन्वर्जन कराने में लगे होते हैं। संस्था द्वारा इन्हें गांव-गांव में जाने के लिए पहले मोटरसाइकिल दी जाती थी, लेकिन अब कार भी दी जा रही है।


इन सब से ऊपर होता है पादरी। मीडिया रिपोर्ट में पादरी के कार्यों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि उसे किसी स्कूल या हॉस्पिटल का प्रमुख बनाकर रखा जाता है, ताकि उसका वेतन निर्धारित किया जा सके। इसे 1 लाख रुपये तक का वेतन दिया जाता है। यह मुख्य रूप से कन्वर्जन के लिए आ रही समस्याओं को दूर करने का कार्य करता है, चाहे वो सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक या कानूनी समस्या हो।


रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बीते 12 वर्षों में इन चार राज्यों में चर्चों की संख्या दोगुनी हो चुकी है। जहां वर्ष 2011-12 में लगभग 12,000 चर्च थे, वहीं अब इनकी संख्या 25,000 को पार कर चुकी है।


वहीं एक षड्यंत्र यह भी देखा गया है कि जनजातीय क्षेत्रों में चल रहे इन गतिविधियों के तहत जहां उन्हें कन्वर्ट तो किया जा रहा है, लेकिन शासकीय दस्तावेजों में वो अभी भी ईसाई नहीं हैं। बड़े पैमाने पर चल रहे इस षड्यंत्र को जोशुआ प्रोजेक्ट नामक संस्था के द्वारा अंजाम दिया जा रहा है, जिसकी शुरुआत वर्ष 1995 में हुई थी, जिसके बारे में विस्तार से अगले लेख में।