बस्तर शांति समिति के बैनर तले 50 से अधिक नक्सल हिंसा से पीड़ित बस्तरवासी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलने राष्ट्रपति भवन पहुँचे। उन्होंने अपनी व्यथा और तकलीफों को राष्ट्रपति के समक्ष रखा और माओवादियों के आतंक से मुक्त होने की गुहार लगाई।
बस्तर शांति समिति के सदस्यों ने बताया कि बस्तर, जो कभी अपनी आदिवासी संस्कृति और परंपराओं के लिए जाना जाता था, अब माओवादी हिंसा का गढ़ बन चुका है।
पीड़ितों ने कहा कि पिछले 40 वर्षों में माओवादियों ने बस्तर के लोगों का जीवन नर्क बना दिया है। बस्तर के ग्रामीण और वन्य क्षेत्रों में माओवादियों ने बारूदी सुरंगें बिछाई हुई हैं, जिनकी चपेट में आने से कई लोगों की जान जा चुकी है और कई गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं।
राष्ट्रपति से मिलने पहुँची 16 वर्षीय राधा सलाम, जो बचपन में नक्सली हिंसा का शिकार हुई थी, ने अपनी पीड़ा साझा की। उसने बताया कि माओवादी हमले के कारण उसने अपनी एक आंख की रोशनी खो दी है।
राधा ने कहा, "मैंने क्या गलत किया था जो मेरे साथ ऐसा हुआ?" घटना के समय वह केवल तीन वर्ष की थी। एक अन्य पीड़ित महादेव ने बताया कि माओवादियों के बम हमले में उसका एक पैर खो गया।
बस्तर शांति समिति के प्रवक्ता जयराम दास ने बताया कि जो लोग राष्ट्रपति से मिलने आए हैं, वे सभी माओवादी हिंसा के पीड़ित हैं।
कुछ ने अपने अंग खो दिए, कुछ ने अपने परिवार के सदस्यों को माओवादी हमलों में खोया है। कई पीड़ितों ने माओवादियों की नृशंसता को अपने सामने देखा है, जिसमें परिवार के सदस्यों की निर्मम हत्या की गई।
पीड़ितों ने राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपकर आग्रह किया कि वह इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान लें और बस्तर को माओवादी हिंसा से मुक्त कराने के लिए ठोस कदम उठाएं।