बस्तर के नक्सल पीड़ितों का कॉलिन गोंसाल्वेस को खुला पत्र

आपने बस्तर आकर हमें अनदेखा किया और अब दिल्ली में भी हमारी आवाज़ आप तक नहीं पहुंच सकी।

The Narrative World    24-Sep-2024   
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कॉलिन गोंसाल्वेस जी, जोहार,
 
हमें मीडिया के माध्यम से पता चला कि आप देश के जाने-माने वकील हैं और आपने पिछले माह ही बस्तर का दौरा किया था। मीडिया में छपी रिपोर्ट के अनुसार, आपने तीन दिनों तक बस्तर के अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों से बात की। आपने इस दौरान कहा कि छत्तीसगढ़ गाजा बन चुका है, और यहां आदिवासियों की हत्याएं की जा रही हैं। देखिए साहब, हम बस्तर के अंदरूनी गांव में रहते हैं। हमें यह तो नहीं पता कि गाजा कहाँ है और वहां क्या हो रहा है, लेकिन यह बात बिल्कुल सच है कि बस्तर में आदिवासियों की हत्याएं की जा रही हैं। इन हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं माओवादी आतंकी। आंकड़े बताते हैं कि बीते ढाई दशकों में माओवादियों की हिंसा के कारण 8000 से अधिक स्थानीय ग्रामीण मारे जा चुके हैं, जिनमें अधिकांश बस्तर के आदिवासी ही हैं। क्या आपने अपने बस्तर दौरे में ऐसे किसी परिवार से मुलाकात नहीं की जिनके परिजन को माओवादियों ने मारा हो? यदि आपने ऐसा किया, तो आपको देश को बताना चाहिए कि उस परिवार पर अब क्या बीत रही है। और यदि आपने माओवादी हिंसा से पीड़ित किसी परिवार से मुलाकात नहीं की, तो हमारा आपसे यह प्रश्न है कि आपने यह जरूरी क्यों नहीं समझा?
 
आपने अपने वक्तव्य में कहा कि आए दिन आदिवासियों के साथ अत्याचार और दमन हो रहा है और आप हैरान हैं कि आगे का रास्ता क्या होगा? हम आपको बताते हैं गोंसाल्वेस साहब! बस्तर में सच में आदिवासियों के साथ अत्याचार और दमन हो रहा है, और इसे अंजाम दे रहे हैं माओवादी-नक्सली। माओवाद का सबसे बड़ा दंश यदि बस्तर में कोई झेल रहा है, तो वो है यहाँ का आदिवासी समाज। माओवादी यहाँ के आदिवासियों का मानसिक, आर्थिक और शारीरिक शोषण करते हैं। क्या आपने कभी किसी आदिवासी से पूछने की कोशिश की कि उनके छोटे बच्चे को माओवादी जबरन क्यों उठाकर ले गए? गोंसाल्वेस साहब, क्या आपने यह पता लगाने की कोशिश की कि सुकमा के पूवर्ती गांव में एक 16 वर्षीय नाबालिग बच्चे को स्कूल यूनिफॉर्म में देखकर माओवादियों ने क्यों मार डाला? यदि आपको माओवादियों द्वारा आदिवासियों पर किया जा रहा यह अत्याचार नहीं दिख रहा है, तो आप किस मुँह से बस्तर के आदिवासियों की आवाज़ उठाने की बात कर रहे हैं?
 
आपका कहना है कि छत्तीसगढ़ खतरनाक राज्य बन चुका है, यहाँ बेकसूर आदिवासियों को घरों में घुसकर मारा जा रहा है, महिलाओं के सामने ही उनके पति और बच्चों की हत्याएं हो रही हैं, और यह सब डीआरजी के जवान कर रहे हैं। गोंसाल्वेस जी, हम जानते हैं कि आप यहाँ बस्तर के आदिवासियों के लिए नहीं आए हैं, नहीं तो आप यह जरूर बताते कि आदिवासियों को घर में घुसकर डीआरजी के जवान नहीं बल्कि माओवादी मार रहे हैं। आदिवासी महिलाओं के सामने उनके पति और बच्चों की हत्या फोर्स के जवान नहीं, बल्कि नक्सली कर रहे हैं। आपने जो आरोप लगाए हैं, उनका एक भी प्रमाण आपने नहीं दिया है, लेकिन बस्तर का हर एक गांव चीख-चीख कर गवाही दे रहा है कि माओवादियों ने उनके गांव को रक्तरंजित किया है, उनकी भूमि पर आदिवासियों का नरसंहार किया है।
 
गोंसाल्वेस साहब, आप कहते हैं कि फोर्स के जवान मैडल के लिए निर्दोष आदिवासियों को मार रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि फोर्स के जवान ही हम आदिवासियों की रक्षा कर रहे हैं। हम बस्तरवासी हैं, हमें भी दिखाई देता है कि कैसे नदियों के बहाव को चीरते हुए, माओवादियों के बिछाए बारूद के ढेर को लांघते हुए ये फोर्स के जवान न सिर्फ हमारी सुरक्षा करते हैं, बल्कि स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सुविधाएं भी मुहैया कराते हैं।
 
कॉलिन गोंसाल्वेस जी, आपने अपने बस्तर दौरे में यदि हमसे मुलाकात की होती तो हम आपको बताते कि कैसे माओवादियों के आतंक के चलते हमारा जीवन नर्क बन चुका है, कैसे माओवादियों के कारण हम विकास से दूर हैं, और कैसे हम आजादी से अपनी जिंदगी भी नहीं जी सकते। हम वही लोग हैं, जिन्होंने माओवादी आतंक को करीब से देखा है। हम वही हैं जो मौत को करीब से देखकर लौटे हैं। आपने हमारे हाथों और पैरों को नहीं देखा। यदि देखा होता, तो हम बताते कि कैसे माओवादियों के बिछाए बारूद ने हमसे हमारे पैर छीन लिए। किसी के हाथ काटने पड़े, कोई अब लंगड़ा कर चलता है, किसी को सुनाई नहीं देता, तो किसी ने अपनी आँखें गंवा दी हैं। लेकिन आपने हमसे मिलना उचित नहीं समझा। आप बस्तर में तीन दिनों तक रहे, लेकिन आपको कोई नक्सल पीड़ित नहीं मिला। आपने चुनिंदा लोगों को तो सुन लिया, लेकिन हमारी आवाज़ आपको सुनाई नहीं दी।
 
आपके बारे में यह भी पता चला कि आप मानवाधिकार की बात उठाते हैं। आपने मणिपुर के कुकी ईसाइयों और रोहिंग्या मुसलमानों के मानवाधिकारों के लिए भी आवाज़ उठाई है। लेकिन आपने कभी बस्तर के हम आदिवासियों के लिए आवाज़ क्यों नहीं उठाई, जिन्हें माओवादियों ने अपाहिज बना दिया है? क्या हम आदिवासियों का कोई मानवाधिकार नहीं है, या आप ऐसा समझते हैं कि हम उस लायक ही नहीं हैं कि हमारे मानवाधिकार की बात की जाए? गोंसाल्वेस जी, यह पत्र लिखकर हम आपसे यह प्रश्न इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आपने हाल ही में बस्तर का दौरा किया था और आपने इस दौरान बस्तर में आदिवासियों को लेकर जो बात कही थी, उसमें सच्चाई नहीं थी। हम बस्तर के आदिवासी आपको सच्चाई बताना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि आपको भी मालूम हो कि जिन माओवादियों की सच्चाई आपने छिपा दी, वे कितने क्रूर और निर्दयी हैं। हालाँकि आपने हमसे बस्तर में मुलाकात की होती, तो हम और विस्तार से आपको बताते कि माओवादियों के कारण हम कैसी ज़िंदगी जी रहे हैं।
 
बात यह है गोंसाल्वेस साहब, हम अपनी आवाज़ सुनाने दिल्ली तक आ गए, लेकिन आप हमसे मिलने नहीं आए। आपने बस्तर आकर हमें अनदेखा किया और अब दिल्ली में भी हमारी आवाज़ आप तक नहीं पहुंच सकी। हम बस्तर के आदिवासी हैं, जो पीड़ित, शोषित, और प्रताड़ित हैं। हमें घरों में घुसकर मार दिया जाता है, हमारी महिलाओं के सामने ही उनके पति और बच्चों की हत्या कर दी जाती है, और यह सब माओवादी करते हैं। तो क्या आप हमारी बात सुनेंगे? क्या आप हमारी आवाज़ को दुनिया तक पहुँचाएँगे? क्या आप हमें माओवादी आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएँगे? बताइए गोंसाल्वेस साहब, आप क्या कहते हैं?
 
जोहार!
नक्सल पीड़ित बस्तरिया