नक्सल आतंकी अर्थात माओवादी कहने को तो स्वयं को 'जल-जंगल-जमीन' और जनजाति समाज के हितैषी बताते हैं, लेकिन उनकी सच्चाई यही है कि उन्होंने सर्वाधिक शोषण जनजाति समाज का ही किया है, और सबसे अधिक हिंसा उन्होंने जनजाति समाज के साथ ही की है। वहीं माओवादी-नक्सली केवल जनजाति विरोधी ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र विरोधी भी हैं, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण हमें बस्तर में देखने को मिल रहा है।
नक्सली आतंकियों ने दंतेवाड़ा जिले के अंतर्गत आने वाले अरनपुर पंचायत के एक जनजाति नेता की हत्या कर दी है। मिली जानकारी के अनुसार मृतक की पहचान जोगा बरसे के रूप में हुई है, जो वर्तमान में सरपंच प्रत्याशी था।
सामने आई जानकारी के अनुसार जोगा बरसे गांव के सरपंच पारा का निवासी था और गुरुवार की रात वह अपने घर पर ही मौजूद था, जब कम्युनिस्ट आतंकियों ने इस घटना को अंजाम दिया।
परिजनों ने बताया कि गुरुवार की देर रात बड़ी संख्या में नक्सलियों ने जोगा के घर में धमक दी, जिसके बाद कुल्हाड़ी से उसके घर के दरवाजे को तोड़ा गया। नक्सलियों ने परिजनों के सामने ही गला रेतकर जोगा की हत्या कर दी।
नक्सलियों ने जोगा बरसे को केवल इसलिए मार दिया क्योंकि वो भारत के लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा ले रहा था, अर्थात चुनाव में प्रत्याशी के रूप में खड़ा था। नक्सलियों ने क्षेत्र में चेतावनी दी थी कि चुनाव का विरोध किया जाएगा, लेकिन जोगा बरसे जैसे जनजाति ग्रामीण भारत की लोकतंत्र में आस्था रखते थे, ना कि कम्युनिस्ट तंत्र पर, इसीलिए उन्होंने चुनाव लड़ने का फैसला किया।
लेकिन दूसरी ओर विदेश से आयातित कम्युनिस्ट विचार को मानते हुए नक्सल आतंकियों ने भारतीय लोकतंत्र पर आस्था रखने वाले जनजाति ग्रामीण की ही हत्या कर दी। स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि जोगा क्षेत्र का जाना-पहचाना चेहरा था, स्थानीय जनजाति नेता था, जो बीते ढाई दशक से राजनीति में सक्रिय था।
अरनपुर में जोगा बरसे की नृशंस हत्या ही नक्सलियों की एकमात्र कायराना करतूत नहीं है, बल्कि बीते 4 दिनों में नक्सल आतंकियों ने दंतेवाड़ा-बीजापुर में 4 जनजातीय ग्रामीणों की हत्या की है।
दरअसल छत्तीसगढ़ में पंचायत चुनाव होने वाले हैं, जिसे लेकर ग्रामीणों में न सिर्फ उत्साह है, बल्कि वो बढ़-चढ़कर इसमें हिस्सा भी ले रहे हैं। वहीं दूसरी ओर नक्सली अपनी कम्युनिस्ट-माओवादी विचारधारा को अपनाते हुए लोकतांत्रिक प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं। यही कारण है कि पंचायत चुनाव की तैयारियों के बीच कम्युनिस्ट-नक्सल आतंकी स्थानीय जनजातीय ग्रामीणों की हत्या कर क्षेत्र में भय पैदा कर रहे हैं।
लेकिन इन सब के बीच यह समझने का विषय है कि कम्युनिस्ट समूह जो दुनियाभर में समानता और स्वतंत्रता की बात करता है, वहीं बस्तर में मौजूद नक्सलवादी जनजातियों के हितों की रक्षा की बात करते हैं, वास्तव में वही कम्युनिस्ट, वही नक्सली ही जनजातियों को सबसे अधिक प्रताड़ित करते हैं। कभी मुखबिर बताकर, तो कभी केवल चुनाव में भाग लेने पर जनजातीय ग्रामीणों की हत्या कर दी जाती है।
वहीं बात हम लोकतंत्र की करें तो, एक ओर शहर में बैठे इन माओवादियों-नक्सलियों के शहरी पैरोकार और कम्युनिस्ट विचारक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतंत्र, गणतंत्र और संविधान जैसे विषयों पर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। लेकिन इनकी भी वास्तविकता यही है कि ये सभी नक्सलियों के 'लोकतंत्र विरोधी' चेहरे पर बात नहीं करते।
हालांकि बस्तर में बीते 4 दिनों में हुई ये 4 हत्याएं नक्सलियों के ताबूत में कील ही बनेंगी, क्योंकि इन्होंने भारतीय लोकतंत्र और उसमें आस्था रखने वाले को चुनौती देकर स्पष्ट कर दिया है कि ये संविधान को खत्म कर कम्युनिस्ट तानाशाही लाना चाहते हैं, जो भारत की लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक सरकार और जनता कभी नहीं होने देगी।