रायपुर, 15 मार्च [द नैरेटिव वर्ल्ड]: छत्तीसगढ़ के बीजापुर और सुकमा जिलों में दशकों तक आतंक मचाने वाले खूनी नक्सलियों का साम्राज्य अब ढह रहा है।
हाल ही में, 64 नक्सलियों ने तेलंगाना में आत्मसमर्पण कर दिया। इनमें 16 महिलाएं भी शामिल हैं।
यह आत्मसमर्पण उन कायर आतंकियों की हताशा का प्रमाण है, जो अब अपनी ही माओवादी विचारधारा से त्रस्त हो चुके हैं।
आतंक की कब्र खुद खोदते नक्सली
छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर सक्रिय इन खूंखार नक्सलियों को अब समझ में आ गया है कि उनका तथाकथित 'लाल क्रांतिकारी सपना' महज एक खूनी जाल था।
आम जनता को शोषण, लूट, हत्या और जबरन भर्ती के जरिए गुलाम बनाने वाले ये आतंकी अब अपनी ही जाल में फंस चुके हैं।
सुरक्षा बलों के कड़े अभियान और सरकार की मजबूत नीति के कारण इन्हें आत्मसमर्पण करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।
सरकार की नीतियाँ बनीं नक्सलियों की तबाही का कारण
'निया नेल्लनार' जैसी योजनाओं ने जंगलों में बसे जनजातियों को यह एहसास दिलाया कि सरकार ही असली रक्षक है, न कि ये माओवादी भेड़िये।
पुनर्वास नीति के तहत आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने का मौका दिया जा रहा है, ताकि वे समाज का हिस्सा बन सकें।
माओवादी विचारधारा: धोखा, झूठ और नरसंहार
माओवादियों ने वर्षों तक मासूम और गरीब जनजातियों को छलने और उनके नाम पर अपनी आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने का काम किया।
“इनका असली मकसद सिर्फ खून बहाना और सत्ता हथियाना था। लेकिन अब उनकी झूठी क्रांति की पोल खुल चुकी है।”
आखिरी चेतावनी: माओवादियों का अंत निकट है!
सुरक्षा बलों की सख्ती और जनता की बढ़ती जागरूकता के कारण नक्सलियों का सफाया अब तय है।
आत्मसमर्पण करने वाले इन 64 नक्सलियों ने दिखा दिया कि अब वक्त बदल चुका है।
अब वक्त है कि बाकी बचे हुए नक्सली भी आत्मसमर्पण कर दें, वरना उनका हश्र भी इन्हीं आतंकियों की तरह होगा – पराजय और अपमान!
माओवाद का सूरज अब अस्त होने को है, और उसके साथ खत्म होगा खून, हिंसा और आतंक का वह दौर, जिसने वर्षों तक भारत के निर्दोष नागरिकों को दर्द और पीड़ा दी।