कंबोडिया का जनसंहार (1975-1979) इतिहास के सबसे भयावह नरसंहारों में से एक है, जिसमें 15 से 20 लाख निर्दोष लोगों की हत्या कर दी गई।
यह नरसंहार कम्युनिस्ट संगठन खमेर रूज के नेतृत्व में हुआ, जिसका उद्देश्य एक वर्गहीन समाज स्थापित करना था।
इस अमानवीय शासन ने लाखों लोगों की जान ले ली और पूरे देश को विनाश की ओर धकेल दिया।
पोल पॉट की खूनी विचारधारा
खमेर रूज का नेतृत्व पोल पॉट कर रहा था, जो कट्टर कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित था।
उसका सपना था कि कंबोडिया को एक शुद्ध कृषि-प्रधान समाज बनाया जाए, जहां न कोई शहर हो और न ही कोई शिक्षित व्यक्ति।
उसने सत्ता में आते ही पूरे देश को जबरन कृषि क्षेत्रों में भेज दिया और शहरी आबादी को समाप्त करने की योजना बनाई।
जो भी शिक्षित था, जो भी सरकार के खिलाफ आवाज उठाता था, उसे मौत के घाट उतार दिया गया।
कैसे हुआ जनसंहार?
1975 में खमेर रूज ने कंबोडिया की राजधानी नोम पेन्ह पर कब्जा कर लिया और वहां के नागरिकों को जबरन गांवों में भेज दिया।
इन लोगों को अमानवीय परिस्थितियों में कृषि श्रमिक बना दिया गया। अगर किसी के हाथों में घड़ी, चश्मा या किताब मिलती तो उसे सीधे देशद्रोही मानकर मार दिया जाता।
हजारों लोगों को S-21 जेल में बंद किया गया, जहां उन्हें बेरहमी से यातनाएं दी गईं और बाद में किलिंग फील्ड्स में ले जाकर निर्ममता से मार दिया गया।
किलिंग फील्ड्स: नरसंहार के गवाह
किलिंग फील्ड्स वे स्थान थे जहां हजारों निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतारा गया।
खमेर रूज ने बंदूक की गोलियों की बचत के लिए लोगों को कुंद हथियारों से मारा, जिंदा दफनाया या उनके सिर पर लोहे की छड़ से वार किया।
छोटे बच्चों तक को नहीं बख्शा गया – उन्हें पेड़ों पर पटककर मार दिया गया। यह कम्युनिस्ट शासन का सबसे घिनौना रूप था, जहां सत्ता के नाम पर निर्दोष लोगों का कत्लेआम किया गया।
किन लोगों को बनाया गया निशाना?
खमेर रूज ने खासतौर पर शिक्षित लोगों, डॉक्टरों, वकीलों, शिक्षकों, बौद्ध भिक्षुओं और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया।
चम मुसलमान और चीनी मूल के कंबोडियाई लोगों को विशेष रूप से प्रताड़ित किया गया।
जो लोग पोल पॉट की विचारधारा का विरोध करते थे, उन्हें बिना किसी सुनवाई के मार दिया जाता था।
भुखमरी और बीमारियों से मौतें
केवल सीधी हत्या ही नहीं, बल्कि भुखमरी और बीमारियों से भी लाखों लोग मारे गए।
लोगों को इतना कम खाना दिया जाता था कि वे भूख से दम तोड़ देते थे। दवाओं और अस्पतालों की सुविधा खत्म कर दी गई थी, जिससे बीमार लोग बिना इलाज के मरने लगे।
चीन की भूमिका
इस भयावह नरसंहार में चीन की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। माओ जेडोंग की कम्युनिस्ट सरकार ने पोल पॉट को आर्थिक और सैन्य सहायता दी।
लगभग 90% विदेशी सहायता चीन से आई, जिसमें 1975 में ही 10 अरब डॉलर की ब्याज-मुक्त सहायता शामिल थी।
यह दिखाता है कि कैसे कम्युनिस्ट देश आपस में मिलकर मानवता के खिलाफ अपराधों को अंजाम देते हैं।
अंत कैसे हुआ?
1979 में वियतनाम ने कंबोडिया पर हमला किया और पोल पॉट की सत्ता को उखाड़ फेंका।
खमेर रूज जंगलों में भाग गया, लेकिन नरसंहार का असर लंबे समय तक बना रहा।
पोल पॉट 1998 में मारा गया, लेकिन तब तक लाखों निर्दोष लोग अपनी जान गंवा चुके थे।
न्याय और सजा
2006 में इस नरसंहार से जुड़े लोगों पर मुकदमे शुरू हुए। 2010 में S-21 जेल के प्रमुख कैंग गेक इव (डच) को मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
“हालांकि यह न्याय बहुत देर से मिला, लेकिन यह दुनिया को कम्युनिज्म की क्रूरता का एक कड़ा सबक दे गया।”
निष्कर्ष
कंबोडिया का जनसंहार कम्युनिस्ट शासन की असलियत को उजागर करता है। यह घटना दिखाती है कि कैसे सत्ता की भूख और कट्टरपंथी विचारधारा एक पूरे देश को विनाश की ओर धकेल सकती है।
हमें इतिहास से सीख लेनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में ऐसा अत्याचार दोबारा न हो।
कम्युनिज्म केवल तबाही और मौत लाता है, और कंबोडिया का जनसंहार इसका सबसे बड़ा प्रमाण है।