"गांड़ा गंधर्व समाज के लोगों की बैठक के बीच एक महिला अनिता नाग उठती है, और अपने मंगलसूत्र को निकाल फेंकती है। हाथ की चूड़ियों को निकाल देती है। मांग के सिंदूर को धो देती है। पास ही खड़ा उसका पति श्रीवास नाग भौचक्क निगाहों से उसे देख रहा है, बड़ा ही निराश और उदास। अनिता का भाई असहाय सा खड़ा है। अनिता के माँ-बाप के आंखों में आंसू है। समाज के भीतर आक्रोश है। वहीं पास में ही खड़ा 8 वर्षीय राजवीर नाग माँ अनिता की हरकतों को देख अपने पिता से पूछ रहा है कि "माँ को क्या हो गया है ?" लेकिन समाज के साथ-साथ श्रीवास भी चुप्प है और वह अब टूट चुका है। वहीं अनिता कह रही है कि मैं अब केवल यीशु को मानती हूँ और मैंने अपने पति, बेटे और घर का त्याग कर दिया है।"
यह दृश्य किसी फिल्म का नहीं, बल्कि बस्तर संभाग के एक गांव की सच्ची घटना है, जो दो दिन पहले हुई है। कांकेर जिले के पखांजुर तहसील के अंतर्गत एक गांव है संगम, यहां रहने वाली अनिता नाग बिना परिवार को जानकारी दिए ईसाई बन गई, और अब घर, परिवार, पति, बच्चे, सबको छोड़कर जाना चाहती है। जैसे ही अनिता के फैसले को उसके पति श्रीवास नाग ने सुना, उसके पैरों तले जमीन ही खिंसक गई।
अनिता की बातें सुनकर श्रीवास ने ना सिर्फ अनिता के माता-पिता एवं भाई को बुलाया, बल्कि समाज के वरिष्ठजनों को भी बुलावा भेजा। इसके बाद समाज के लोगों ने 17 मार्च को संगम गांव में ही बैठक बुलाई, और इसी बैठक में वो दृश्य देखने को मिला जिसमें अनिता ने मंगलसूत्र-चूड़ी उतार दिया और सिंदूर को मिटा दिया।
घटना के बाद समाज के लोगों ने पखांजूर थाना प्रभारी को एक आवेदन लिखकर अनिता को भड़काने-बरगलाने वाले ईसाई मिशनरी समूहों पर एफआईआर करने का अनुरोध किया है। समाज के लोगों का कहना है कि यह कन्वर्जन अवैध तरीके से किया गया है, जिसके लिए जिम्मेदार लोगों पर सख्त कार्रवाई की जाए।
यह पूरा विषय देखते हुए 'द नैरेटिव' ने इस मामले की तह तक जाने की कोशिश की, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि बस्तर के विभिन्न क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों के षड्यंत्रों के कारण ना सिर्फ स्थानीय क्षेत्र में अवैध कन्वर्जन हो रहा है, बल्कि कानून-व्यवस्था के साथ-साथ स्थानीय सामाजिक ताना-बाना भी बिगड़ रहा है। 'द नैरेटिव' ने इस मामले को लेकर अनिता के भाई चंद्रशेखर कचलाम से बात की, पढ़िए बातचीत के कुछ अंश -
द नैरेटिव - अनिता से जुड़ा पूरा विवाद क्या है ?
चंद्रशेखर - अनिता मेरी सगी बड़ी बहन है। हमारा गांव बरहेली है, जो दुर्गकोंदल ब्लॉक में आता है। अनिता का कहना है कि वो अब ईसाई रिलीजन को मानती है, ईसा मसीह वाले संस्था को मानती है और अपने पति एवं बच्चे के साथ नहीं रहना चाहती।
द नैरेटिव - परिवार और समाज के समझाने के बाद भी अनिता क्यों नहीं मान रही ? वह कहां जाना चाहती है ?
चंद्रशेखर - अनिता को मैंने भी समझाया, मेरे माता-पिता ने भी समझाया लेकिन वह नहीं मान रही है। उसका पति श्रीवास यह भी कह रहा कि वो मंगलसूत्र फेंक दी है, सिंदूर मिटा दी है, लेकिन अभी भी अगर वो हिन्दू धर्म में आ जाए, तो मैं उसको अपना लूंगा। लेकिन अनिता नहीं मान रही। वो कहती है कि मैं जहां जाना चाहूं, मैं चले जाऊंगी।
द नैरेटिव - आपको क्या लगता है, वो किसके प्रभाव में आकर ईसाई बनी है ?
चंद्रशेखर - दरअसल अनिता की यह दूसरी शादी है। इससे पहले अनिता की शादी मोहला-मानपुर जिले के दोरबा गांव में हुई थी। अनिता की शादी जिस व्यक्ति से हुई थी, उसके पिता ईसाई धर्म को मानते थे। धीरे-धीरे अनिता के पति और परिवार के अन्य सदस्य भी ईसाई धर्म में कन्वर्ट हो गए। इस बीच आंतरिक कलह के कारण अनिता का उसके पति से तलाक हो गया। लेकिन उन दोनों की एक बेटी है, जो अभी 11वीं कक्षा में पढ़ती है।
मुझे लगता है कि वो भी अब ईसाई रिलीजन की ओर झुकाव रखती है। अनिता का बीच-बीच में अपनी उस बेटी से बात होते रहता था। इस बीच जब संगम गांव में समाज के सामने बैठक हुई तब अनिता ने बताया कि वो अपनी पहली शादी के समय से ही भीतर ही भीतर ईसाई धर्म को मानती थी, लेकिन उसने अपने परिवार में किसी को नहीं बताया। अनिता ने सबके सामने कहा कि उसने ईसाई रिलीजन मानना कभी नहीं छोड़ा।
द नैरेटिव - तो क्या जब दूसरी शादी हुई, तब किसी को नहीं पता था कि अनिता ईसाई रिलीजन को मानती है ?
चंद्रशेखर - नहीं, किसी को नहीं पता था। हम भी नहीं जानते थे।
द नैरेटिव - अभी अचानक फिर क्या हुआ कि अनिता ने अपने परिवार, घर, पति, बच्चे, सबको छोड़ने का निर्णय लिया ?
चंद्रशेखर - अनिता जब मायके (बरहेली) आती थी, तब वह भानुप्रतापपुर के रास्ते आती थी, और इसी बीच वो भानुप्रतापपुर में ईसा मसीह को मानने वाले लोगों से मिली। मिलने के बाद अनिता को वो लोग किसी रविवार को भानुप्रतापपुर के एक चर्च में भी लेकर गए। इसकी जानकारी मुझे है। मुझे ऐसा लगता है कि वो पिछले 3 महीने में केवल 2 बार वहां के चर्च गई है। उसके बाद ही वो ऐसा बात करने लगी कि मैं अपने पति-बच्चे के साथ नहीं रहना चाहती।
जैसा कि आपने पढ़ा ही कि हमने चंद्रशेखर से बात की तब इस पूरे घटना की परत हमारे सामने खुलने लगी। लेकिन इन सब के बीच सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि चर्च खुद सामने आकर अनिता को यह क्यों नहीं कहता कि अपने पति और बच्चे के साथ रहने से प्रभु यीशु अधिक प्रसन्न होंगे ? चर्च को उस 8 वर्ष के बेबस बच्चे का मासूम चेहरा नहीं दिखता, जो उससे उसकी माँ को छीनना चाह रहा है ? चर्च और ईसाइयों को वो हताश पिता और पति नहीं दिखता, जो अपने छोटे बच्चे को पकड़े हुए मां के लौटने की दिलासा दे रहा है ?
आखिर यह कैसा रिलीजन है, जिसे अपनाने की जिद एक माँ को उसके मासूम बच्चे से अलग करने का दबाव डाल देता है? यह कैसा रिलीजन है जो पति-परिवार और घर को छोड़ने के लिए मनोदशा तैयार करता है? क्या प्रभु यीशु यही चाहते हैं कि वो 8 वर्ष का नन्हा सा राजवीर जीवन भर माँ की ममता के रहे?
ईसाई मिशनरियों ने बस्तर के गांव-गांव में ऐसा फरेब फैलाया है, जो स्थानीय सनातनियों को कन्वर्जन के मायाजाल में फंसा रहा है। यही कन्वर्जन का जाल अब इतना विशाल और विस्फोटक हो चुका है, जिसकी आवाज धीमी-धीमी ही सही लेकिन बस्तर के गांवों से बाहर आ रही है। लेकिन डर यह है कि जिस तरह से ईसाई मिशनरियों ने बस्तर में स्थिति पैदा कि है, वह कोई विकराल रूप ना ले ले, क्योंकि राजवीर जैसे छोटे मासूम बच्चे और श्रीवास नाग जैसे बेकसूर ग्रामीण अब प्रत्यक्ष रूप से ईसाई षड्यंत्र का शिकार हो रहे हैं।