बीजापुर में हुई मुठभेड़ में 26 माओवादियों के मारे जाने के बाद फोर्स को घटनास्थल से एक पत्र मिला है। यह पत्र नक्सल आतंकी मोटू ने एक अन्य नक्सल आतंकी कमांडर मनकी को लिखा है। पत्र गोंडी बोली में लिखा गया है, जो बड़ा दिलचस्प है। दिलचस्प इसलिए कि आज तक माओवादी जिन स्थानों पर खुलेआम घूमते थे, अब उन्हें वहां डर लगने लगा है।
जिन गांवों में माओवादी अपनी तथाकथित 'माओवादी सरकार' चलाते थे, अब वहां उनके छिपने के लिए भी जगह नहीं है। जिन क्षेत्रों के ग्रामीणों पर माओवादी हथियारों के दम पर भय का दबाव बनाते थे, अब उन सभी जगहों से माओवादी भाग रहे हैं। इसीलिए यह पत्र दिलचस्प है।
दो पन्नों के इस पत्र में माओवादी आतंकी मोटू का कहना है कि नक्सलियों के लिए अब सुरक्षित तरीके से कहीं भी ठहर पाना मुश्किल हो चला है। गौरतलब है कि जिन स्थानों में हाल ही में मुठभेड़ भी हुई है, उन्हें भी माओवादियों ने अपने लिए असुरक्षित बताया है।
नक्सल आतंकी मोटू ने इस पत्र में बोडका, गमपुर, डोडीतुमनार और तोड़का जैसे क्षेत्र के जंगल को भी अपने लिए असुरक्षित बताया है। पत्र में नक्सल आतंकी का कहना है कि फोर्स के बढ़ते दबाव के कारण सभी साथी नक्सली दहशत में जी रहे हैं।
यदि आपने हाल-फिलहाल में द नैरेटिव की रिपोर्ट पढ़ी होगी, तो आपको यह पता होगा कि कैसे दिल्ली में बैठकर कुछ 'स्वघोषित बुद्धिजीवी' बस्तर में ऑपरेशन कगार को रोकने की बात कर रहे हैं। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में बैठकर नक्सलियों के लिए ढाल बनने वाले लोगों ने कहा कि बस्तर में फोर्स के ऑपरेशन रुकने चाहिए।
संदिग्ध नक्सल समर्थक एवं आम आदमी पार्टी की पूर्व नेता सोनी सोरी ने तो बस्तर में फोर्स के कैंप लगाए जाने का भी विरोध कर दिया। लेकिन अभी माओवादियों के मिले पत्र से यह दिखता है कि कैसे फोर्स के कैंप लगने से माओवादी अब जंगल से भाग रहे हैं, उनके सुरक्षित ठिकाने अब खत्म हो रहे हैं।
गौरतलब है कि इस प्रेस वार्ता में सोनी सोरी के साथ-साथ संदिग्ध अर्बन नक्सल हिमांशु कुमार, नंदिनी सुंदर, कॉलिन गोंजाल्विस समेत अन्य लोग भी शामिल थे, जिनकी मांग थी कि बस्तर में फोर्स के ऑपरेशन को रोका जाए।
सिर्फ इतना ही नहीं, आज शाम (26 मार्च, 2025) को दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हार्डकोर कम्युनिस्ट समूहों द्वारा एक कार्यक्रम किया जा रहा है, जिसके पोस्टर में 'बस्तर के ग्रामीणों की फ़ोटो' लगाकर दावा किया गया है कि बस्तर में पिछले 14 महीने में 400 से अधिक लोगों को मारा गया है।
जेएनयू के इस कार्यक्रम में भी कम्युनिस्ट समूह वक्ता के रूप में आमंत्रित है, जिसमें हिमांशु कुमार जैसे संदिग्ध अर्बन नक्सल भी शामिल हैं। जेनएयू में हो रहे कार्यक्रम का मुद्दा भी यही है कि किसी तरह बस्तर में फोर्स की कार्रवाई को रोका जाए। फोर्स के द्वारा स्थापित किए जा रहे सुरक्षा बलों के कैंप को रोका जाए और नक्सलियों के एनकाउंटर को बंद किया जाए।
इस कार्यक्रम के अलावा कई ऐसे समूह हैं जो लगातार फोर्स के ऑपरेशन के खिलाफ टिप्पणी कर रहे हैं। हार्डकोर माओवादी संगठन 'भगत सिंह छात्र एकता मंच' जैसे संगठन खुलेआम सोशल मीडिया में नक्सल समर्थन पोस्ट कर रहे हैं, साथ ही ऑपरेशन कगार रोकने के लिए मुहिम चला रहे हैं।
वहीं आंध्र प्रदेश की कुछ संस्थाओं ने भी इसके लिए मांग की है कि 'ऑपरेशन कगार' को रोका जाए। 'आदिवासी हक्कुला संगीभव वेदिका', 'विरासम', आंध्रप्रदेश सिविल लिबर्टीज कमेटी' जैसी संस्थाओं ने नक्सल उन्मूलन के लिए चलाए जा रहे ऑपरेशन को रोकने की मांग की है। इसके अलावा देश-विदेश से भी अन्य संस्थाओं को भी इस मुहिम में शामिल किया है, जिसके तहत नक्सलियों का पक्ष रखने वाले समूह एक-एक कर उजागर हो रहे हैं।
यह विचार करने का विषय है कि नक्सली खुद कह रहे हैं कि फोर्स के ऑपरेशन के कारण उनका किसी भी जगह छिपना कठिन हो गया है। उनके सुरक्षित ठिकाने अब असुरक्षित हो गए हैं। पुलिस कैम्प के कारण माओवादी प्रभाव के क्षेत्रों में अब उनकी पकड़ खत्म हो गई है। सच यही है कि इसी पकड़ को दोबारा स्थापित करने के लिए 'अर्बन नक्सली' हाथ पैर मार रहे हैं।
इन अर्बन नक्सल समूहों ने जिस तरह सलवा जुडूम और ऑपरेशन ग्रीन हंट को बंद करवाया था, और नक्सलियों को "फ्री हैंड" दिलवाया था, ठीक वैसा ही अभी भी करना चाह रहे हैं, लेकिन अब यह सम्भव होता नहीं दिख रहा है।