नक्सल आतंकवाद से यदि कोई राज्य सर्वाधिक प्रभावित है, तो वो छत्तीसगढ़ है। छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र माओवादियों का सबसे बड़ा गढ़ है, और सर्वाधिक सशस्त्र नक्सली इसी क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बनाए हुए है। यही कारण है कि बस्तर की छवि रायपुर से लेकर दिल्ली तक कुछ ऐसी बनी है कि आम लोग बस्तर की नैसर्गिक सुंदरता एवं बस्तर की संस्कृति से भी अनजान हैं, उन्हें बस्तर का अर्थ केवल 'नक्सलवाद' पता है।
बस्तर को इसी लाल आतंक से मुक्त करने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार भरसक प्रयास कर रही है, जिसमें ना सिर्फ नक्सलियों का एनकाउंटर किया जा रहा है, बल्कि माओवादियों के गढ़ में अब सुरक्षाबल अपने कैम्प स्थापित कर रहे हैं, जिसके माध्यम से स्थानीय ग्रामीणों को चिकित्सा, शिक्षा समेत बुनियादी सुविधाएं भी मिल रही हैं।
इन सब के बीच राज्य की सरकार ने बस्तर की छवि सुधारने, साथ ही बस्तर की कला-संस्कृति एवं यहां के लोगों की प्रतिभा को मुख्यधारा में लाने के लिए कुछ प्रयास किए हैं, जिसमें बस्तर ओलंपिक और बस्तर पंडुम जैसे कार्यक्रम का आयोजन किया गया। बीते वर्ष के अंतिम माह में आयोजित बस्तर ओलंपिक एक सफल आयोजन बना, जिसने खेलों में बस्तर की युवा प्रतिभा को सामने लाने और निखारने का प्रयास किया।
वहीं अब सरकार ने बस्तर की लोक संस्कृति की ख्याति बढ़ाने हेतु 'बस्तर पंडुम - बस्तर का उत्सव' का आयोजन किया है, जिसमें बस्तर की स्थानीय संस्कृति का भव्य प्रदर्शन हो रहा है। 12 मार्च से आरंभ हुए बस्तर पंडुम के उत्सव को तीन भागों में बांटा गया है, जिसमें पहले ब्लॉक-विकासखंड स्तर, जिला स्तर एवं संभाग स्तर पर इसका आयोजन हो रहा है।
पारंपरिक पोशाकों एवं वाद्य यंत्रों के साथ बस्तर की संस्कृति की झलक इस बस्तर पंडुम में देखने को मिल रही है, वहीं मीडिया रिपोर्ट के माध्यम से इस संस्कृति की पहचान भी समाज के सामने आ रही है। लेकिन इस बीच एक समूह ऐसा भी है जो बस्तर की संस्कृति को बढ़ावा देने से परेशान है। यह समूह है सर्व आदिवासी समाज।
सर्व आदिवासी समाज बस्तर के जनजाति समाज का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है, लेकिन अब जब बस्तर की संस्कृति का उत्सव व्यापक स्तर पर सरकार मना रही है, तो यह समूह विरोध करने उतर आया है। सर्व आदिवासी समाज के बस्तर सम्भाग के अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर का कहना है कि "पंडुम का अर्थ त्यौहार होता है, और इसका उपयोग इस तरह सरकारी आयोजन में नहीं किया जा सकता।"
बीते वर्ष बीजापुर के पीड़िया क्षेत्र में हुई मुठभेड़ को लेकर सर्व आदिवासी समाज का कहना था कि वह मुठभेड़ फर्जी थी और फोर्स ने तेंदूपत्ता तोड़ने गए ग्रामीणों को मारा है। मुठभेड़ में 12 नक्सली मारे गए थे और सर्व आदिवासी समाज ने सभी 12 लोगों को ग्रामीण बताया था। कांग्रेस पार्टी और सीपीआई भी इस मुठभेड़ को फर्जी बताने में लगे थे।
गौरतलब है कि नक्सलियों ने स्वयं 12 में से 2 लोगों को नक्सली माना था। हालांकि पुलिस ने बाद में उसी मुठभेड़ स्थल से गिरफ्तार महिला माओवादी को सामने लाकर सच्चाई उजागर की थी। गिरफ्तार महिला माओवादी ने बताया था कि मारे गए माओवादियों ने पुलिस के आने की खबर सुनते ही अपनी वर्दी बदल ली थी और हथियारों को छिपा दिया था, इसीलिए वो गांव वालों की तरह दिख रहे थे।
बस्तर के आम लोगों को भी समझना होगा कि 'सर्व आदिवासी समाज' जैसे संगठन ना सिर्फ बस्तर के जनजातियों के नाम पर अपनी राजनीतिक दुकान चला रहे हैं, बल्कि बस्तर के छवि सुधार और शांति स्थापित के कार्यक्रमों में अड़चन भी पैदा कर रहे हैं।