नक्सल आतंकवाद एवं नक्सलियों को लेकर एक आम धारणा हमेशा से यह बनाई गई है कि यह एक "आंदोलन" है, और इसमें बस्तर के आम जनजाति स्वतःस्फूर्त शामिल होते हैं, जो जनजातियों के अधिकारों और हितों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन नक्सलियों का असली और आतंकी चेहरा अब बेनकाब हो चुका है, साथ ही आम जनता भी यह समझ चुकी है कि नक्सली केवल और केवल हिंसा और आतंक फैलाने का काम कर रहे हैं।
इस बीच नक्सलियों का एक पत्र सामने आया है, जिसमें उनके काले करतूत उजागर हुई हैं। माओवादियों के इस पत्र से खुलासा हुआ है कि नक्सल आतंकी संगठन 9-10 वर्ष के बच्चों को आतंकी बनने की ट्रेनिंग दे रहे हैं। नक्सली इन छोटे बच्चों को ना सिर्फ हथियार पकड़ने की ट्रेनिंग दे रहे हैं, बल्कि इन्हें बम बनाना भी सिखाया जा रहा है।
दरअसल हाल ही में बस्तर में हुए एनकाउंटर में तीन खूंखार माओवादी मारे गए हैं, जिसमें एक माओवादी कमांडर भी शामिल था। मारे गए माओवादी कमांडर सुधाकर पर 25 लाख रुपये का इनाम था, जिसके पास से ही एक पत्र बरामद हुआ है। इसी पत्र में कई खुलासे सामने आए हैं।
सुधाकर के पास से मिले पत्र के अनुसार माओवादी आतंकियों ने 130 बच्चे, किशोरों और युवाओं की भर्ती की है, जिनकी आयु 9 से लेकर 22 वर्ष है। नक्सलियों के पत्र से मिली जानकारी के अनुसार 9 से 11 वर्ष के 40 बच्चे, 14 से 17 वर्ष के 40 बच्चे और 18 से 22 वर्ष के 50 युवाओं को नक्सल संगठन में शामिल किया गया है।
नक्सलियों का यह पत्र 4 पन्नों का है, जो तेलुगु में लिखा हुआ है। माओवादी आतंकियों के इस पत्र से यह भी खुलासा हुआ है कि नक्सल संगठन में भर्ती हुए इन बच्चों को 'नक्सली आतंकी' बनने की ट्रेनिंग दी जा रही है, जिसके तहत उन्हें हथियार चलाने, आईईडी बनाने, गुरिल्ला युद्ध लड़ने समेत नक्सली-माओवादी विचारधारा का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। नक्सलियों के अनुसार भर्ती हुए ये बच्चे और युवा अभी लड़ने के योग्य नहीं है, इसीलिए इन्हें लड़ने के लिए तैयार किया जा रहा है।
गौरतलब है कि माओवादियों के इस पत्र से इस बात का भी पता चला है कि अब नक्सलियों को नए लड़ाके नहीं मिल रहे हैं, साथ ही पुराने नक्सली लगातार सरेंडर कर रहे हैं। हाल ही में जो 130 बच्चों-युवाओं की भर्ती नक्सलियों ने की है, वह इनकी आखिरी भर्ती थी। इस भर्ती को लेकर यह जानकारी भी मिली है कि माओवादियों ने माड़ क्षेत्र में ग्राम सभा बुलाकर प्रत्येक घर से एक बच्चा देने का निर्देश दिया था, जिसके बाद गांव के हर घर से एक-एक बच्चा नक्सलियों को दिया गया है।
वहीं दूसरी ओर नक्सलियों ने 18 वर्ष से अधिक के किशोरों को हथियार भी दे दिया है, जिसके बाद उनपर अपने गांव जाने से भी रोक लगा दी गई है। नक्सलियों को यह डर है कि यदि वह किशोर अपने गांव जाकर परिजनों से मिलता है, तो वो उनके प्रभाव में आकर सरेंडर कर सकता है, या उनकी गिरफ़्तारी हो सकती है।
नक्सलियों द्वारा अलग-अलग एरिया कमेटी को भेजे गए इस पत्र में इस बात का भी उल्लेख है कि कुछ समय पूर्व उत्तर बस्तर ब्यूरो में सीसी, दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के कैडर की हाई लेवल मीटिंग हुई थी, जिसमें ही इन सभी गतिविधियों का जिक्र किया गया है। नक्सलियों के अनुसार अब लगातार सरेंडर और एनकाउंटर के कारण उनकी संख्या खत्म हो रही है, साथ ही नई भर्ती नहीं होने के कारण नक्सलवाद के अस्तित्व पर खतरा आ चुका है।
नक्सलियों के इस पत्र से इस बात की तो पुष्टि हुई है कि माओवादी जबरन छोटे बच्चों को उठाकर ले जाते हैं, और उन्हें माओवाद के उस घने अंधकार में धकेल देते हैं जहां से निकल पाना लगभग असंभव हो जाता है।
सलवा जुडूम से पहले एक दौर तब जब माओवादी बस्तर के अंदरूनी गांवों में हर घर से एक बच्चा देने का फरमान सुनाते थे, लेकिन सलवा जुडूम के होने से नक्सलियों की यह रणनीति बैकफायर कर गई और आम ग्रामीणों ने युद्ध छेड़ दिया।
इसके बाद नक्सलियों ने अपनी रणनीति बदलते हुए इस तरह से सीधा दबाव डालना बंद किया था। लेकिन कोविड के दौरान नक्सल संगठन की टूटी कमर और फोर्स के आक्रामक ऑपरेशन के चलते माओवादियों ने फिर ऐसा ही फरमान सुनाया था।
छत्तीसगढ़ में वर्तमान सरकार के दौरान जिस तरह से नक्सलवाद पर प्रहार किया जा रहा है, उससे पूरे माओवादी तंत्र में घबराहट है। लेकिन 2022 और 2023 में कांग्रेस शासन के दौरान नक्सलियों ने बस्तर के जंगलों में शहीदी सप्ताह मनाकर तस्वीर जारी की थी और अपनी ताकत दिखाई थी।
हालांकि सच्चाई यही है कि माओवादी अपने आतंक का भय बनाकर बस्तर के जनजाति बच्चों को जबरन नक्सल संगठन में भर्ती कर रहे हैं, और 9-10 वर्ष के छोटे बच्चों को आतंकी बनाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं। यही नक्सलवाद की सच्चाई है, यही माओवाद की सच्चाई है, यही कम्युनिज़्म की सच्चाई है।