रायपुर, मार्च 30 [द नैरेटिव वर्ल्ड]: छत्तीसगढ़ में दशकों से सक्रिय नक्सली गतिविधियों ने राज्य की शांति और विकास में बाधा डाली है।
पहले, सुरक्षा बलों पर अचानक हमले कर नक्सली अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे।
लेकिन हाल के वर्षों में, सुरक्षा बलों ने अपनी रणनीति में बदलाव कर नक्सलियों के खिलाफ सफल अभियान चलाए हैं।
2010 में सुकमा जिले के
ताड़मेटला में नक्सलियों ने घात लगाकर 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या की थी, जो उस समय का सबसे घातक हमला था।
इसके बाद, 2013 में
झीरम घाटी में एक राजनीतिक काफिले पर हमला हुआ, जिसमें कई वरिष्ठ नेता मारे गए।
इन घटनाओं ने नक्सलियों की हिंसक क्षमता को उजागर किया।
हाल के वर्षों में, विशेषकर दिसंबर 2023 से, सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के खिलाफ अभियान तेज कर दिए हैं।
जनवरी 2025 में गरियाबंद जिले में 16 नक्सली मारे गए। फरवरी में इंद्रावती क्षेत्र में 31 नक्सली ढेर हुए। मार्च 2025 में सुकमा जिले के केरलापाल क्षेत्र में
17 नक्सली मारे गए, और दो जवान घायल हुए।
सुरक्षा बलों की बढ़ती कार्रवाइयों से नक्सली संगठन में हताशा बढ़ी है।
2025 की शुरुआत से अब तक 80 से अधिक माओवादी मारे गए हैं। उन्होंने 4 अप्रैल को बंद का आह्वान किया है, जो उनकी कमजोर होती स्थिति को दर्शाता है।
सुरक्षा बलों की दबावपूर्ण रणनीति के परिणामस्वरूप, कई नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे हैं।
हाल ही में नारायणपुर जिले में 6 महिला माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया, जिन्होंने संगठन में शोषण और हिंसा के आरोप लगाए। सरकार ने उन्हें सुरक्षा और पुनर्वास योजनाओं का आश्वासन दिया है।
सुरक्षा बलों की सक्रियता और प्रभावी रणनीति से छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद पर नियंत्रण मजबूत हुआ है।
नक्सली हमलों में कमी और आत्मसमर्पण की बढ़ती संख्या इस दिशा में सकारात्मक संकेत हैं।
यह राज्य की शांति और विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।