नारायणपुर में आईईडी विस्फोट : नक्सलवाद के 'बारूदी ढेर' में सिसक रहा बस्तर

मीडिया जब लिखती है कि "मजदूर चपेट में आये", तब वह नक्सलियों के आतंक को दबा देती है। दरअसल इस घटना में मजदूर किसी विस्फोटक की चपेट में नहीं आये हैं, बल्कि उन पर कम्युनिस्ट आतंकियों ने अर्थात नक्सलियों-माओवादियों ने हमला किया है।

The Narrative World    07-Mar-2025   
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माओवादी आतंक का दंश ऐसा है
, जो हर बस्तरवासी को भीतर ही भीतर खोखला कर रहा है। यह आतंक कभी किसी बेकसूर मजदूर की जान ले लेता है, तो कभी मासूम बच्चों की जिंदगी छीन लेता है। और यह सबकुछ होता है, कम्युनिज़्म के विचार के नाम पर।


ऐसा ही एक आतंकी हमला बस्तर क्षेत्र के नारायणपुर जिले में हुआ है, जहां नक्सलवादी आतंक के चलते एक जनजाति मजदूर की मौत हो गई है, वहीं दूसरा जनजाति मजदूर गंभीर रूप से घायल है।


छोटे डोंगर थाना क्षेत्र के अंतर्गत आमदेई खदान के पास नक्सलियों ने आइईडी प्लांट कर रखा था, इसी विस्फोटक के कारण आज जनजाति मजदूर की मौत हुई। मरने वाले मजदूर का नाम दिलीप कश्यप है, जो नारायणपुर में मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पाल रहा था।


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“नक्सलियों की ऐसी आतंकी घटनाओं पर कभी राष्ट्रीय विमर्श नहीं होता कि आखिर नक्सली इस तरह आम ग्रामीणों को, आम जनजाति नागरिकों को क्यों मारते हैं ?”

 


बस्तर से लेकर रायपुर और दिल्ली की मीडिया लिख रही है कि "नक्सलियों के बिछाए आईईडी विस्फोट की चपेट में आ गए मजदूर।" लेकिन क्या ये सच है ? क्या मजदूर जानते थे कि उस जगह पर नक्सलियों ने आईईडी प्लांट कर रखा है ? क्या मजदूर जानबूझकर आईईडी में अपना पैर रख आये ? ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं था।




जब मीडिया कहती है कि "ग्रामीण आईईडी की चपेट में आये", तब वह नक्सलियों के आतंक को दबा देती है। ग्रामीण किसी विस्फोटक की चपेट में नहीं आते हैं, बल्कि उन पर नक्सलियों ने हमला किया होता है, क्योंकि नक्सली जानते हैं कि इन मार्गों पर आम ग्रामीण भी आवागमन करते हैं।


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वहीं ऐसी खबरों के लिए कहा जाता है कि "नक्सलियों ने जवानों को नुकसान पहुंचाने के लिए आईईडी प्लांट किया था, लेकिन ग्रामीण चपेट में आ गए।" तो क्या नक्सलियों को यह नहीं पता कि अपने परिवार का पेट पालने के लिए आम जनजाति ग्रामीण आमदेई खदान में मजदूरी करने जाते हैं ? क्या नक्सलियों को यह नहीं पता कि आम ग्रामीण भी इस रास्ते का उपयोग करते हैं ?


यह बौद्धिक नक्सलियों-अर्बन नक्सलियों द्वारा गढ़ा गया ऐसा विमर्श है, जो दिखने और पढ़ने में सामान्य लगता है, लेकिन इसके पीछे की सोच केवल और केवल नक्सल आतंकवाद को बौद्धिक ढाल प्रदान करना है।


नक्सलियों ने इसी स्थान पर 2023 के नवंबर माह में भी हमला किया था, तब भी 2 मजदूर आईईडी विस्फोट हमले में मारे गए थे, वहीं एक घायल हुए था। इस हमले के बाद नक्सल आतंकियों ने एक प्रेस नोट जारी कर सरकार पर ही मजदूरों के मरने का आरोप मढ़ दिया था। लेकिन सच्चाई यही थी कि ये मजदूर नक्सल आतंकवाद का शिकार हुए थे।


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उस दौरान नक्सलियों ने कहा था कि आमदेई खदान के आसपास चारों ओर बारूद बिछा हुआ है। नक्सली जानते हैं कि खदान में आम ग्रामीण काम करने जाता है, आम जनजाति अपने परिवार को पालने के लिए मजदूरी करता है, लेकिन बावजूद इसके उन्हें मारने के लिए नक्सलियों ने बारूद बिछाया हुआ है।


“नक्सलियों ने जो बारूद बिछाया है, वो फोर्स के लिए नहीं है, वो आम बस्तरवासियों के लिए है, उनके जीवन में बारूद घोलने के लिए है, उन्हें अपाहिज बनाने के लिए है, आम बस्तरवासियों को गरीब रखने के लिए है। वह बारूद बस्तरवासियों को भय के वातावरण में रखने के लिए है।”

 


बस्तर के ऐसे सैकड़ों लोग हैं जो नक्सलियों की 'बारूदी हिंसा' की चपेट में आकर अपाहिज हो चुके हैं। किसी की आंखें नहीं है, तो किसी के पैर नहीं है, किसी का हाथ काम नहीं करता, तो कोई सुन नहीं सकता। क्या आपको अब भी लगता है कि नक्सलियों ने ये विस्फोटक फोर्स के लिए लगाए हैं और आम ग्रामीण इस 'चपेट' में आ रहे हैं ?




सैकड़ों ऐसे ग्रामीण हैं जिनकी इन विस्फोटकों की चपेट में आने से मौत हो गई। हजारों परिवार उजाड़ गए, बच्चे अनाथ हो गए, महिलाएं बेसहारा हो गईं, और इसकी वजह है नक्सलवाद और उसका बारूदी आतंक। यह केवल नारायणपुर की कहानी नहीं है, यह पूरे बस्तर की कहानी है।