झूठे इतिहासकारों को दंड

पर भारत में मध्यकालीन अत्याचारों को छुपाने वाले हमारे इतिहासविद हमारे मुकुटमणि बन बैठे। कोई अभिलेखीय अनुसंधान नहीं। कोई साक्ष्य-आधारित कार्यप्रणाली नहीं। पर इतिहास की जमींदारी पूरी और पक्की।

The Narrative World    09-Mar-2025   
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स्वघोषित 'सभ्य' पश्चिमी देशों में इतिहासकार होने के नाम पर कुछ भी बकवास करने की छूट नहीं है। वर्ष 2006 में ब्रिटिश इतिहासकार डेविड इर्विंग को आस्ट्रिया में तीन वर्ष जेल की सजा हो गई थी, क्योंकि उन्होंने कहा कि होलोकास्ट कभी हुआ ही नहीं।

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1989
में उन्होंने आश्वित्ज में गैस चेम्बरों के अस्तित्व पर सवाल उठाए थे। बाद में अदालत के सामने उन्होंने कहा कि उनके विचार अब बदल गए हैं। अदालत ने उनके हृदय-परिवर्तन से सहानुभूति नहीं की और उन्हें तीन वर्ष जेल में आराम करने को कह ही दिया।


जर्मनी में हार्स्ट माहलेर को तो होलोकॉस्ट के होने से मनाही करने पर बार बार सजायें हुईं। 2000 के दशक की शुरुआत से लेकर 2017 तक कई बार वो जेल की सजा काटे। ये पहले माओवादी हुआ करते थे। बारह वर्ष की सजा के बाद एक बार फिर साढ़े तीन साल की। ये Sozialistischer Deutscher Studentenbund नामक सोशलिस्ट विद्यार्थी संगठन के सदस्य भी रहे। इन्होंने एक सजा 9/11 को साज़िश कहने पर भी भुगत ली। एक बार हिटलर सैल्यूट करने पर भी। ये अक्टूबर 2020 में रिहा हुए हैं।


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Vincent Reynouard भी इतिहासकार होने का दावा करते हुए कहते रहे कि हिटलर ने कभी यहूदियों को नहीं मारा। Gayssot Act or Gayssot Law फ्रांस में प्रचलित है। उसके तहत इन्हें सजा हो गई। एक बार नहीं कई-कई बार हुईं। फिर इन्होंने निर्वासन पसंद किया।


अर्न्स्ट जुंडेल का मामला ले लीजिए। ये जर्मन-कैनेडियन थे। इन्होंने होलोकॉस्ट को मना किया तो इन्हें कनाडा से डिपोर्ट कर जर्मनी भेज दिया गया जहाँ इन पर मुक़दमा चला और 2007 में इन्हें पाँच वर्ष जेल की सजा हुई।


जर्मर रुडोल्फ, बिशप रिचर्ड विलियम्सन,जुर्जेन ग्राफ, उर्सुला हावरबेक, वोल्फगैंग फ्रोहलिच, पेड्रो वारेला, फ्रेडरिक टोबेन, सीगफ्रेड वर्बेके आदि आदि बहुत से लोगों को इस बात के लिये देश से निर्वासन और सजाएँ हुईं कि उन्होंने कहा कि हिटलर के गैस चेंबरों का अस्तित्व ही नहीं था, या जितने क्रूर दंड बताये जा रहे हैं वे अतिशयोक्तिपूर्ण हैं या वे तत्कालीन परिस्थितियों में किसी हद तक उचित थे।


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पर भारत में मध्यकालीन अत्याचारों को छुपाने वाले हमारे इतिहासविद हमारे मुकुटमणि बन बैठे। कोई अभिलेखीय अनुसंधान नहीं। कोई साक्ष्य-आधारित कार्यप्रणाली नहीं। पर इतिहास की जमींदारी पूरी और पक्की।


इन तथाकथित इतिहासकारों के बारे में पढ़ना है तो पढ़िए डॉ. के. के. मुहम्मद को जिन्होंने इनका पूरी तरह पर्दाफाश किया है। बाबरी ढाँचे विवाद के दौरान झूठे पाये गए इतिहासकारों की सूची तो और भी लंबी है।

सुशील श्रीवास्तव, सुप्रिया वर्मा, जया मेनन, सुविरा जायसवाल, शीरीन रत्नाकर, सूरजभान, शिरीन मौसवी इन सब को इलाहबाद हाइकोर्ट ने सबके सामने बेनकाब किया था। फिर भी ये लोग आज भी इतिहासकार बन कर घूमते हैं।


इन इतिहास 'गढ़ने' वाले इतिहासकारों को पढ़कर आज का युवा अकबर से आगे ही नहीं बढ़ पाया। नालंदा को जलाने वाला ख़िलजी भी इनकी नज़र में महान है। लाखों हिंदुओं को धर्म की बलि चढ़ाने वाला औरंगजेब 'धर्मनिरपेक्ष' है और हजारों की संख्या में आमजनों को धर्मान्तरण के लिए मारने वाला टीपू सुल्तान 'क्रांतिकारी' है।


लेख


मनोज श्रीवास्तव

सेवानिवृत्त आईएएस
लेखक