हर साल 15 अप्रैल को दुनिया एक ऐसे तानाशाह की मौत को याद करती है जिसने इंसानियत की सारी हदें पार कर दी थीं।
हम बात कर रहे हैं पोल पॉट की, कंबोडिया का कम्युनिस्ट नेता, जिसने लाखों बेगुनाह लोगों की जान ले ली।
यह दिन केवल उसकी मौत का दिन नहीं है, बल्कि यह याद दिलाता है कि कम्युनिज़्म किस तरह मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकता है।
1975 से 1979 तक पोल पॉट ने कंबोडिया पर राज किया। वह खमेर रूज नाम की कम्युनिस्ट पार्टी का मुखिया था।
इसने देश को एक खेत में बदलने की कोशिश की, जहां हर कोई मजदूर बने, कोई पढ़ा-लिखा न रहे, कोई व्यापारी न हो और धर्म का नामोनिशान मिटा दिया जाए।
पोल पॉट का सपना था – एक ऐसा देश जहां कोई अमीर-गरीब न हो, सब बराबर हों।
लेकिन यह बराबरी की बात सिर्फ दिखावे की थी। असल में, उसने हर उस इंसान को मार डाला जो पढ़ा-लिखा था, जो चश्मा पहनता था, जो बुद्धिजीवी था या फिर जो कम्युनिज़्म के खिलाफ बोलता था।
यहां तक कि डॉक्टर, शिक्षक, इंजीनियर, और यहां तक कि साधारण छात्र भी मारे गए।
खमेर रूज शासन में मारे गए 20 लाख लोग
उसके चार साल के शासन में करीब 20 लाख लोग मारे गए।
सोचिए, उस समय कंबोडिया की कुल आबादी सिर्फ 80 लाख थी।
यानी हर चार में से एक इंसान को पोल पॉट ने मरवा दिया।
लोगों को ज़िंदा गाड़ दिया गया, बच्चों को उनके माता-पिता के सामने मारा गया, और महिलाएं बलात्कार का शिकार बनीं।
धर्म का संहार
कम्युनिज़्म की सबसे बड़ी खासियत यह रही है कि वह धर्म को अपना दुश्मन मानता है।
पोल पॉट ने बौद्ध धर्म पर हमला किया। हज़ारों मंदिर तोड़े गए, बौद्ध भिक्षुओं को मार दिया गया या खेती करने पर मजबूर किया गया।
जिसने भी पूजा-पाठ किया, उसे देशद्रोही करार देकर खत्म कर दिया गया।
'किलिंग फील्ड्स' – मौत के खेत
पोल पॉट के बनाए गए 'किलिंग फील्ड्स' आज भी कंबोडिया में एक भयानक स्मारक की तरह खड़े हैं।
ये ऐसे स्थान थे जहां लोगों को ज़िंदा ले जाकर या तो कुल्हाड़ी से मारा जाता था, या सिर पर वार करके मौत के घाट उतार दिया जाता था।
गोलियां बर्बाद न हों, इसलिए पोल पॉट के सैनिक हथियारों से कम और हाथों से ज्यादा मारते थे।
कम्युनिज़्म का असली चेहरा
पोल पॉट की कहानी कोई अकेली नहीं है। रूस, चीन, उत्तर कोरिया, क्यूबा, हर उस देश में जहां कम्युनिज़्म आया, वहां मौत और बर्बादी ही फैली।
यह विचारधारा समानता के नाम पर लोगों से उनकी आज़ादी छीन लेती है, उनके धर्म पर हमला करती है, और उन्हें सरकार का गुलाम बना देती है।
कम्युनिज़्म में इंसान की कोई अहमियत नहीं होती। सिर्फ सत्ता और विचारधारा ही सर्वोपरि होती है।
पोल पॉट इसका सबसे घिनौना उदाहरण था। उसने अपने ही लोगों को भूख से मरने पर मजबूर किया, उन्हें घरों से बेघर कर दिया और हर तरह की शिक्षा व संस्कृति को खत्म करने की कोशिश की।
हमें क्यों याद रखना चाहिए?
आज भी भारत और दुनिया के कई हिस्सों में कम्युनिज़्म के समर्थक मौजूद हैं, जो इस खूनी विचारधारा को युवाओं के बीच फैला रहे हैं।
हमें पोल पॉट की कहानी इसलिए याद रखनी चाहिए, ताकि हम यह समझ सकें कि विचारधारा के नाम पर जब इंसानियत मारी जाती है, तो वह किस हद तक गिर सकती है।
15 अप्रैल को पोल पॉट की मौत हुई थी, लेकिन उसका लगाया ज़हर आज भी कई जगह जिंदा है।
हमें इसे पहचानना होगा और इससे सावधान रहना होगा।
यही असली श्रद्धांजलि होगी उन लाखों बेगुनाह लोगों के लिए, जो सिर्फ इसलिए मारे गए क्योंकि वे कम्युनिज़्म की बंदूक के सामने खड़े थे।