छत्तीसगढ़ के बिलासपुर स्थित गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय एक बार फिर विवादों में है। इस बार मामला धार्मिक असहिष्णुता और जबरन नमाज़ पढ़वाने को लेकर है।
विश्वविद्यालय के एनएसएस (राष्ट्रीय सेवा योजना) कैंप में हिस्सा लेने वाले 150 से ज्यादा हिंदू छात्रों ने आरोप लगाया है कि उन्हें इस्लामी रीति-रिवाज अपनाने के लिए मानसिक रूप से मजबूर किया गया।
यह घटना न केवल धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है, बल्कि भारत के शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ती इस्लामी कट्टरता का खतरनाक संकेत भी है।
ईद के दिन जबरन नमाज़ पढ़वाई गई
यह मामला मार्च 26 से अप्रैल 1 तक शिवतराई (कोटा ब्लॉक) के जंगलों में आयोजित एनएसएस कैंप का है। कुल 159 छात्रों ने इसमें भाग लिया, जिनमें केवल चार मुस्लिम छात्र शामिल थे।
31 मार्च, ईद के दिन, कैंप कोऑर्डिनेटर ने मुस्लिम छात्रों को मंच पर नमाज़ पढ़ने के लिए आमंत्रित किया और बाकी छात्रों से, जिनमें अधिकांश हिंदू थे, कहा गया कि वे नमाज़ की प्रक्रिया को सीखें और उसे दोहराएं।
छात्रों का आरोप है कि यह कोई सांस्कृतिक आदान-प्रदान नहीं बल्कि योजनाबद्ध तरीके से मानसिक दबाव डालकर कन्वर्जन की दिशा में पहला कदम था।
विरोध करने पर उन्हें धमकाया गया कि अगर उन्होंने ‘सहयोग’ नहीं किया तो उन्हें कैंप की प्रमाणपत्र नहीं दिए जाएंगे, जिससे उनकी एनएसएस और अकादमिक प्रगति पर असर पड़ेगा।
फोन ज़ब्त कर लिया ताकि वीडियो न बन सके
सबसे गंभीर आरोप यह है कि कैंप में सभी छात्रों के मोबाइल फोन पहले ही दिन जब्त कर लिए गए थे, ताकि कोई तस्वीर या वीडियो रिकॉर्ड न हो सके।
यह दर्शाता है कि आयोजकों को अपनी गतिविधियों के गैरकानूनी और आपत्तिजनक होने का पहले से अहसास था।
पुलिस में शिकायत, विश्वविद्यालय मौन
कैंप से लौटने के बाद दर्जनों छात्रों ने कोनी थाना में लिखित शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें प्रोग्राम अधिकारी डॉ. बसंत कुमार, कोऑर्डिनेटर दिलीप झा सहित अन्य स्टाफ के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है।
पुलिस ने कहा है कि मामले की प्राथमिक जांच चल रही है और प्रमाण मिलने पर एफआईआर दर्ज की जाएगी।
दूसरी ओर, विश्वविद्यालय प्रशासन अभी तक औपचारिक रूप से कोई शिकायत मिलने से इनकार कर रहा है।
हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स के बाद फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाई गई है।
पहले भी लग चुके हैं MSF के गंभीर आरोप
यह पहली बार नहीं है जब इस विश्वविद्यालय में धार्मिक कट्टरता को लेकर सवाल उठे हैं।
दो साल पहले, मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन (MSF) की गतिविधियों को लेकर छात्रों ने गंभीर आरोप लगाए थे।
दावा किया गया कि MSF छात्रों को गुप्त व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम ग्रुप्स के जरिए जोड़ता है और उन्हें धीरे-धीरे इस्लामी विचारधारा की ओर आकर्षित करता है। कई छात्रों का नंबर उनकी अनुमति के बिना ग्रुप्स में जोड़ा गया।
यह गतिविधियां खासतौर पर केरल से आए छात्रों, विशेषकर छात्राओं को निशाना बना रही थीं।
MSF का इंस्टाग्राम अकाउंट भी सामने आया था, जिसमें विश्वविद्यालय का आधिकारिक लोगो भी इस्तेमाल किया गया था, यह अपने आप में नीतियों का घोर उल्लंघन है।
क्या यह ‘केरल स्टोरी’ का दूसरा अध्याय है?
इस पूरे घटनाक्रम की तुलना कई छात्र विवादित फिल्म The Kerala Story से कर रहे हैं, जिसमें युवतियों को इस्लामी संगठनों द्वारा ब्रेनवॉश कर कन्वर्जन के लिए मजबूर करने की साजिश दिखाई गई थी।
जिस तरह से MSF और अब NSS के नाम पर इस्लामी एजेंडा थोपने की कोशिश हो रही है, वह विश्वविद्यालयों की आत्मा को कुचलने जैसा है।
अब जरूरी है सख्त कार्रवाई
देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों को धर्मनिरपेक्षता का गढ़ माना जाता है। लेकिन जब इन संस्थानों में ही सांप्रदायिकता और धार्मिक जबरदस्ती अपने पैर पसारने लगे, तो यह न केवल शिक्षा व्यवस्था के लिए खतरा है बल्कि देश की सामाजिक एकता पर भी सीधा हमला है।
अब सवाल यह है कि विश्वविद्यालय प्रशासन कब तक आंखें मूंदे रहेगा? क्या गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी प्रशासन और पुलिस इन आरोपों को गंभीरता से लेकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे? या फिर यह मामला भी फाइलों में दब जाएगा?
हिंदू छात्रों के अधिकारों की रक्षा और भारत के शैक्षणिक संस्थानों को कट्टरपंथी सोच से मुक्त रखने के लिए अब कड़े कदम उठाना समय की मांग है।