सोनपुर मेला : उत्तर वैदिक काल से श्रद्धा एवं विश्वास का प्रतीक

04 Dec 2022 15:31:46
sonpur fair 
 
 
पुराणों में वर्णित इस स्थान के विषय में कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के पुरोहितों में यहां देवताओं ने एक यज्ञ का आयोजन किया था हालांकि अथक प्रयासों के उपरांत भी जब यह यज्ञ सफल ना हुआ तो फिर देवताओं ने यहां 'हर' (शिव) की स्थापना की और यज्ञ को सफल बनाया, तब से हरिहर क्षेत्र 'लोक' के रूप में चर्चित हुआ, पद्य पुराण में यह भी वर्णन है कि साल ग्रामीण उत्तर हिमालय के दक्षिण की पृथ्वी महाक्षेत्र है, यहां बाबा हरिहरनाथ का मंदिर है, उसी स्थान पर भगवती, शालिग्रामी पतीत पावनी गंगा में आकर नारायण नदी मिलती है, अतः संगम क्षेत्र होने के कारण इस महाक्षेत्र का माहात्मय बहुत बढ़ जाता है, यह भी कथा है कि नारायणी नदी तथा गंगा का संगम होने एवं महाक्षेत्र के अंतिम भाग होने के कारण ही यहां हरि और हर की स्थापना हुई।
 
 
वैष्णव- शैव मतों का समन्वय
 
 
प्राचीन भारत वैष्णवों और शैव भक्तों के बीच शताब्दियों से चलने वाले स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का साक्षी रहा है, ऐतिहासिक संदर्भो में इस प्रतिस्पर्धा की समाप्ति के लिए गुप्त वंश के शासन काल में कार्तिक पूर्णिमा को वैष्णव और शैव आचार्यों का एक विराट सम्मेलन सोनपुर में गंडक तट पर आयोजित हुआ, यह दोनों संप्रदायों के बीच समन्वय का विराट प्रयास था, जिसमें अंततः यह स्थापित हुआ कि भगवान विष्णु एवं शिव दोनों ही एक ही परब्रह्म के दो रूप हैं, उसी दिन की स्मृति में यहां विश्व में भगवान विष्णु एवं शिव की एकमात्र एकीकृत प्रतिमा के साथ हरिहर नाथ मंदिर की स्थापना हुई, मान्यता है कि तब से अब तक प्रति वर्ष सनातन धर्मावलंबियों (हिंदुओं) द्वारा प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को संगम में स्नान कर हरिहर नाथ मंदिर में श्रद्धा निवेदित करने की परंपरा चली आ रही है।
 
 
उत्तर वैदिक काल से शुरुआत
 
 
''हरिहर क्षेत्र मेला' और 'छत्तर मेला' के नाम से भी जाने जाने वाले सोनपुर मेले के प्रारंभ को उत्तर वैदिक काल से भी जोड़ कर देखा जाता है, हालांकि इसकी निश्चित तिथि को लेकर धर्माचार्यों के कई मत हैं, जैसे महापंडित राहुल सांकृत्यान ने इसे शुंगकाल का माना है, इसका यह भी एक कारण है कि शुंगकालीन कई पत्थर और अन्य अवशेष सोनपुर के कई मठ-मंदिरों में उपलब्ध रहे हैं, हालांकि इस विषय मे सबसे प्रमाणित तथ्य पौराणिक आख्यानों में प्राप्त होते हैं जिसमें इस स्थल को 'गजेंद्र मोक्ष स्थल' के रूप में उल्लेखित किया गया है।
 
 
गज-ग्राह की कथा
 
 
पुराणों में गजग्राह की विभिन्न कथाएं प्राप्त होती हैं, इनमें से एक कथा है कि स्वेत दीप के सरोवर में श्री देवमुनि एक बार स्नान कर रहे थे, तभी एक गंदर्भ ने कौतूहलवश उनका पैर पकड़ लिया, मुनी ने क्रुध होकर श्राप दिया तू ग्राह (घड़ियाल) हो जा जिसके प्रभाव से वह तत्क्षण ग्राह हो गया दूसरी ओर इंद्रधवण नामक एक राजा किसी गुफा में घोर तपस्या में लीन थे, संयोग से वहां ऋषिवर अगस्त जी पहुंच गये तपस्या में लीन स्वाभिमानी राजा ने ऋषि का उचित स्वागत-सत्कार नहीं किया।
 
 
क्रोधवश मुनि ने उन्हें श्राप दिया तू गज (हाथी) हो जा, एक समय वही गज गंडक के संगम पर पानी पीने गया तो उक्त श्रापित प्राह ने उनका पैर पकड़ लिया, फिर दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ अंततः भगवान विष्णु के अनन्य भक्त रहे गज ने हरि का मनन किया जिसकी करुणामय पुकार सुन कर अंत में हरि ने स्वयं आकर दोनों का उद्धार किया और उसी की परिणीति में हरिहर की स्थापना हुई, यह दिन कार्तिक पूर्णिमा का था।
 
 
सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य महाभारत में भी महर्षि वेदव्यास ने गज और ग्राह की कथा का वर्णन विस्तार से किया है, इसमें सुव्वाख्त गजग्राह युद्ध का स्थल हरिहर क्षेत्र ही चिन्हित किया गया है, महामुनी नारद ने राजा पृथु के पद्मपुराण में 145 श्लोकों में हरिहर क्षेत्र की महत्ता, उत्पति एवं इसे प्रयाग (प्रयागराज) के समतुल्य बताया है, हरिहर क्षेत्र शालिग्राम क्षेत्र के रूप में जाना जाता है पुराणों के अनुसार, शालिग्राम क्षेत्र के चारों दिशाओं में बार-बारह योजना है, पद्मपुराण के पाल खंड में भी शालिग्राम महास्थल तथा शालिग्राम उत्पत्ति का वर्णन देवी भागवत व ब्रह्मा प्राकृतिक खंड में संदर्भित है।
 
 
विश्व प्रसिद्ध है यहां का मेला
 
 
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गज-युद्ध के उपरांत भगवान विष्णु के द्वारा दोनों के उद्धार के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष यहां एक माह तक मेले का आयोजन किया जाता रहा है जहां देश के विभिन्न भागों के अतिरिक्त विदेशों से भी श्रद्धालु आते रहे हैं। इसकी ऐतिहासिकता एवं धार्मिक महत्व से इस मेले को भारत समेत विश्व में भी प्रसिद्धि प्राप्त है, जो वर्तमान में एशिया महाद्वीप के सबसे बड़ा पशु मेला है।
 
 
कार्तिक पूर्णिमा के दिन देश के विभिन्न भागों से हजारों-हजार की संख्या में साधु-संत एवं विभिन्न धर्मालंबी यहां स्नान को पहुंचते हैं, इस विशेष तिथि से अगले पांच दिनों तक प्रतिवर्ष यहां भजन कीर्तन का आयोजन होता रहा है जहां हिन्दू धर्मियों के साथ ही बौद्ध, सिख एवं कबीर पंथ के अनुयायी भी भक्तिभाव से झूमते दिखते हैं।
 
हरिहर क्षेत्र मेला में ही कई मठ मंदिरों की श्रृंखला है जहां श्रद्धालु कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान के उपरांत बाबा हरिहारनाथ के मंदिर में जलाभिषेक करते हैं, कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा एवं गंडक के इस पवित्र संगम स्थल पर विभिन्न सनातनी पंथों के प्रतिवर्ष श्रद्धा-भाव से जुटते श्रद्धालु हमारी एकिकृत धार्मिक संस्कृति की भी अनूठी छटां बिखेरते हैं। बाबा हरिहारनाथ की जय
 
(श्रोत - साभार, प्रभात खबर)
 
Powered By Sangraha 9.0