भारत में बैंक ऋण का उपयोग उत्पादक कार्यों हेतु दक्षता के साथ हो रहा है

03 Nov 2023 10:31:08

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भारत में तेज गति से हो रही आर्थिक प्रगति के चलते व्यवसाईयों, कृषकों, उद्यमियों, उद्योगों, सेवाकर्मियों एवं नागरिकों की, उनकी आर्थिक एवं अन्य गतिविधियों के लिए, पूंजी की आवश्यकता लगातार बढ़ती जा रही है। वर्तमान केंद्र सरकार ने इस ओर ध्यान देते हुए विशेष रूप से सरकारी क्षेत्र की बैंकों को तैयार किया है कि वे देश के समस्त नागरिकों को ऋण के रूप में धन अथवा पूंजी आसान शर्तों पर उपलब्ध कराएं ताकि देश के आर्थिक विकास को बल मिल सके।


ऋण का उपयोग यदि उत्पादक कार्यों के लिए किया जाता है एवं इससे यदि धन अर्जित किया जाता है तो बैकों से ऋण लेना कोई बुरी बात नहीं है। बल्कि, इससे तो व्यापार को विस्तार देने में आसानी होती है और पूंजी की कमी महसूस नहीं होती है। भारतीय नागरिक तो वैसे भी सनातन संस्कृति के अनुपालन को सुनिश्चित करते हुए अपने ऋण की किश्तों का भुगतान समय पर करते नजर आते हैं इससे बैकों की अनुत्पादक आस्तियों में कमी दृष्टिगोचर हो रही है, जून 2023 को समाप्त तिमाही में भारतीय बैंकों में सकल अनुत्पादक आस्तियों का प्रतिशत केवल 3.7 प्रतिशत था। इससे अंततः बैकों की लाभप्रदता में वृद्धि होती है और इन बैकों के पूंजी पर्याप्तता अनुपात में सुधार होता है।


जून 2023 को समाप्त तिमाही में भारतीय बैंकों का पूंजी पर्याप्तता अनुपात 17.1 प्रतिशत था जो अमेरिकी बैंकों के पूंजी पर्याप्तता अनुपात से भी अधिक है। साथ ही, वर्तमान ऋण की, समय पर अदायगी से बैकों की ऋण प्रदान करने की क्षमता में भी वृद्धि होती है।


अभी हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग द्वारा जारी एक प्रतिवेदन में यह बताया गया है कि भारत में वित्तीय वर्ष 2014 से वित्तीय वर्ष 2023 के बीच बैंकों की कुल सम्पति/देयताओं में वृद्धि, वित्तीय वर्ष 1951 से वित्तीय वर्ष 2014 के बीच की तुलना में 1.3 गुणा अधिक रही है।


वित्तीय वर्ष 2051 से 2014 के बीच के 63 वर्षों के दौरान भारत की समस्त अनुसूचित व्यावसायिक बैंकों की सम्पति एवं देयताओं में 142 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि दर्ज की गई थी, जबकि वित्तीय वर्ष 2014 से 2023 के बीच के 9 वर्षों के खंडकाल में यह वृद्धि 187 लाख करोड़ रुपए की रही है।


बैकों द्वारा अधिक मात्रा में प्रदान की जा रही ऋणराशि के चलते ही बैकों की आस्तियों में अतुलनीय वृद्धि दर्ज की गई है। 22 सितम्बर 2023 को समाप्त पखवाड़े के दौरान बैकों द्वारा प्रदान की गई ऋण राशि में 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है, इससे बैकों का ऋण जमा अनुपात 78.58 हो गया है।


भारत के बैकों की ऋण राशि में हो रही अतुलनीय वृद्धि के बावजूद, भारत में ऋण:सकल घरेलू उत्पाद अनुपात अन्य देशों की तुलना में अभी भी बहुत कम है। हालांकि हाल ही के समय में विनिर्माण इकाईयों की उत्पादन क्षमता का उपयोग बहुत तेजी से बढ़ा है, वित्तीय वर्ष 2022-23 के चौथी तिमाही में विनिर्माण इकाईयों द्वारा अपनी उत्पादन क्षमता का 76.3 प्रतिशत उपयोग किया जा रहा था, जिसके कारण उद्योग जगत को ऋण की अधिक आवश्यकता महसूस हो रही है।


बढ़े हुए ऋण की आवश्यकता की पूर्ति भारतीय बैंकें आसानी से करने में सफल रही हैं। यह तथ्य इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि विकसित देशों में भी प्रायः यह देखा गया है कि बैंकों द्वारा प्रदत्त ऋण में वृद्धि के साथ उस देश के सकल घरेलू उत्पाद में भी तेज गति से वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। भारत में भी अब यह तथ्य परिलक्षित होता दिखाई दे रहा है। भारत में आर्थिक गतिविधियों में आ रही तेजी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में भी ऋण की मांग लगातार बढ़ रही है। फिर भी, भारत में कोरपोरेट को प्रदत ऋण का सकल घरेलू उत्पाद से प्रतिशत वर्ष 2015 के 65 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2023 में 50 प्रतिशत हो गया है।


इसका आशय यह है कि इस दौरान कोरपोरेट ने अपने ऋण का भुगतान किया है एवं उन्होंने सम्भवत: अपनी लाभप्रदता में वृद्धि दर्ज करते हुए अपने लाभ का पूंजी के रूप में पुनर्निवेश किया है। साथ ही, कुछ कोरपोरेट का आकार इतना अधिक बढ़ा हो गया है कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय वित्त बाजार से कम ब्याज की दर पर डॉलर में ऋण प्राप्त करने में सफलता पाई है। हालांकि इस बीच भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी बढ़ा है जो वर्ष 2013 में 2200 करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023 में 4600 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है।


विभिन्न बैंकों द्वारा प्रदत्त लम्बी अवधि के ऋण सामान्यतः आस्तियां उत्पन्न करने में सफल रहे हैं, जैसे गृह निर्माण हेतु ऋण अथवा वाहन हेतु ऋण, आदि। इस प्रकार के ऋणों के भविष्य में डूबने की सम्भावना बहुत कम रहती है। बैकों द्वारा खुदरा क्षेत्र में प्रदत्त ऋणों में से 10 प्रतिशत से भी कम ऋण ही प्रतिभूति रहित दिए गए हैं जैसे सरकारी कर्मचारियों को पर्सनल (व्यक्तिगत) ऋण, आदि। पर्सनल ऋण प्रतिभूति रहित जरूर दिए गए हैं परंतु चूंकि यह सरकारी कर्मचारियों सहित नौकरी पेशा नागरिकों को दिए गए हैं, जिनकी मासिक किश्तें समय पर अदा की जाती हैं, अतः इनके भी डूबने की सम्भावना बहुत ही कम रहती है।


इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि भारत में अब बैकों द्वारा ऋण सम्बंधी व्यवसाय बहुत सुरक्षित तरीके से किया जा रहा है। इसी कारण से हाल ही के समय में यह पाया गया है कि भारतीय बैंकों की अनुत्पादक आस्तियों की वृद्धि पर अंकुश लगा है। यह भी संतोष का विषय है कि हाल ही के समय में भारतीय बैकों से प्रथम बार ऋण लेने वाले नागरिकों की संख्या में भी वृद्धि दर्ज की गई है। इसका आशय यह है कि भारतीय नागरिक जो अक्सर बैकों से ऋण लेने से बचते रहे हैं वे अब बैकों से ऋण लेने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं क्योंकि इस बीच बैंकों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋण सम्बंधी शर्तों को आसान बनाया गया है।


सिबिल द्वारा जारी की गई जानकारी के अनुसार, भारत में वित्तीय वर्ष 2023 को समाप्त अवधि के दौरान प्रदान किए गए कुल पर्सनल ऋणों में 98 प्रतिशत ऋण 50,000 रुपए से अधिक की राशि के थे और केवल 2 प्रतिशत ऋण ही 50,000 रुपए की कम राशि के थे। यह भारत के नागरिकों की आय में लगातार हो रही वृद्धि को दर्शा रहा है। क्योंकि, पर्सनल ऋण सामान्यतः व्यक्ति की किश्त अदा करने की क्षमता के आधार पर प्रदान किया जाता है।


इसी प्रकार, भारत में नागरिकों द्वारा क्रेडिट कार्ड के उपयोग में भी वृद्धि दर्ज की गई है और कई नागरिकों द्वारा क्रेडिट कार्ड के विरुद्ध भी ऋण राशि का उपयोग किया जा रहा है। परंतु, इस दृष्टि से भी यह संतोष का विषय है कि भारत में प्रति क्रेडिट कार्ड औसत ऋण की राशि में लगातार कमी दर्ज हो रही है।


इसका आशय यह है कि क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने वाले नागरिकों द्वारा ऋण की राशि का भुगतान समय पर हो रहा है एवं इस क्षेत्र में चूक की दर अन्य देशों की तुलना में भारत में बहुत कम है। अमेरिका में तो क्रेडिट कार्ड के विरुद्ध लिए गए ऋणों में चूक की दर बहुत अधिक है एवं बैंकों की एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि इस मद पर बकाया है।


कुल मिलाकर भारत के संदर्भ में यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए कि भारतीय नागरिकों में सनातन संस्कृति के संस्कार होने के कारण बैकों से ऋण के रूप में उधार ली गई राशि का समय पर भुगतान किया जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया की तरह माना जाता है, जिसके कारण भारतीय बैंकों के अनुत्पादक आस्तियों की राशि अन्य देशों की बैंकों की तुलना में कम हो रही है।

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