हरिद्वार - गंगा जी के तट पर देवभूमि

23 Apr 2023 10:58:34

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यूं तो भारत भूमि के प्रत्येक स्थल पर धर्म-आध्यात्म का प्रवाह देखा जा सकता है, पर प्रत्यक्ष अनुभूति उत्तराखंड के हरिद्वार में होती है।


हरिद्वार मेरे निवास से 6 घण्टे की दूरी पर है। ट्रैफिक के कारण एकाध घण्टे ज्यादा भी लगते थे। पर केंद्र सरकार, उसमें भी गडकरी जी के विजन के कारण अब यह दूरी मात्र 4 घण्टों की रह गई है। आप कार से चल रहे हों तो बिना किसी उलझन के, शहरों की भीड़ से साफ बचते हुए एकदम फ्रेश अपने गंतव्य पर पहुंच जाते हैं।


हरिद्वार में प्रवेश करते ही स्थान-स्थान पर विशाल देव प्रतिमाएं दिखती हैं। गंगा नदी या नहरों के जाल को देख आंखों को शीतलता का आभास होता है।


किसी भी दिशा में निकलिए, आपको कोई न कोई गंगा की नहर दिख जाएगी। सीढियां बनी हैं। थके हैं तो पैर डालकर बैठ जाइए। मन हो तो नहा लीजिए। बहुत तेज प्रवाह है पानी का, पर लोहे की जंजीरें लगी हैं, अतः घबराने का कोई कारण नहीं।


शाम को हर की पौड़ी जाइये। भीड़ है पर बनारस जैसा रश नहीं। हालांकि अब बनारस में भी काफी प्रगति है, पर हरिद्वार तो हरिद्वार है। मैं यहां पिछली बार 7 साल पहले आया था। तब इतनी भीड़ नहीं थी। लोग अचानक ही तो धार्मिक हुए नहीं होंगे। मेरे अनुमान से इसका कारण भी सरकार ही है। सरकार ने जनता में धर्म के प्रति प्रेम को पुनः जागृत किया है, या यह कहें कि उन्हें सगर्व स्वीकारने का हौसला दिया है।


भीड़ मनसा देवी और चंडी देवी के मंदिरों में भी देखी जा सकती है। पहले इतनी भीड़ नहीं हुआ करती थी। मैंने देखा कि मेरे साथी दर्शनार्थियों में राजस्थानी बंधुओं की संख्या बहुत थी। जय माता दी, बोल सियावर रामचन्द्र की जय, बजरंगबली की जय इत्यादि गर्वीले और भक्तिमय प्रबल उद्गारों से भीड़ के बीच माता के दर्शन तक की यात्रा अत्यंत सुखद रही।


पिछली बार जब आया था, तब शायद मनसा देवी तक जाने के लिए रोप-वे नहीं था। चंडी देवी के लिए था। अबकी बार दोनों जगह रोप-वे की सुविधा है। (मित्रों ने बताया कि तब भी दोनों स्थानों के लिए रोप वे थे। मुझे जानकारी नहीं थी।)


मनसा देवी दर्शन के समय देखा कि हम सामान्य लोग रेलिंग के इस तरफ से दर्शन कर रहे हैं, और दूसरी तरफ पुजारी लोग हम भक्तों से प्रसाद लेकर माता को अर्पित कर हमें वापस कर रहे हैं। पर साथ ही कुछ भक्त रेलिंग के उस तरफ, सामान्य भीड़ से अलग, पूरी निश्चिंतता से दर्शन लाभ ले रहे हैं। एक पुजारी से पूछने पर ज्ञात हुआ कि उन्होंने अतिरिक्त पैसे देकर इस सुविधा का लाभ उठाया है। राशि याद नहीं, कोई 250 थी शायद।


जब मैंने यह पूछा, तब मेरे साथ खड़े कुछ भक्तों ने भी सुना। हम आगे बढ़े तो उनमें से कुछ ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि यह तो कितनी गलत बात है कि पैसे वालों को यह सुविधा मिले, और हम भक्तों को जल्दी-जल्दी, बस दो सेकेंड माता को देखने का अवसर देकर आगे बढ़ा दिया जाए।


उनसे तो नहीं, पर आपसे कहने का मन है कि इसमें गलत क्या है? सामान्य दर्शन से, निःशुल्क दर्शन से तो नहीं रोका गया न। भीड़ इतनी ज्यादा है कि किसी को भी दो सेकेंड से ज्यादा अवसर देने पर पीछे खड़ी भीड़ का दबाव बढ़ता जाएगा। एक समय बाद इतना होगा कि संभाले नहीं संभलेगा।


दो सेकेंड दर्शन ही प्रैक्टिकल है। आप जैसे ही अन्य भक्त भी तो हैं। उन्हें भी तो दर्शन करना है। आप दो मिनट लेंगे, तो अगले को भी दो मिनट चाहिए। सबको ही चाहिए होगा, पर इतनी भीड़ देख यह सम्भव नहीं।


और अगर रुककर दर्शन करना है तो कुछ शुल्क दिया जा सकता है। जो देते हैं, वे भी आप जैसे ही भक्त हैं। हाँ, यह है कि या तो आपसे अधिक धनवान हैं, या अपनी अन्य आवश्यताओं में थोड़ी कटौती कर यह लाभ उठा रहे हैं। धनवान होना कोई गलत बात तो है नहीं। धन कमाना भी एक पुरुषार्थ है, धर्म का अंग है।


मनसा देवी और चंडी देवी ऊपर पर्वत पर हैं। वहां तक पैदल भी जा सकते हैं और पैसे खर्च कर रोप-वे से भी जा सकते हैं। यह तो भक्त की अपनी सुविधा कि वह पैदल जाए या पैसे खर्च करे। उसी प्रकार यह भक्त की सुविधा कि वह सामान्य निःशुल्क दर्शन करे या पैसे खर्च कर विशिष्ट दर्शन। और यह पैसे भी धर्मकार्य में ही खर्च होने हैं।

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