वामपंथी संगठनों की न्याय के नाम पर विरोध, आंदोलन, धरना और कैंडल मार्च का काला सच

वर्तमान में हिंदी विश्वविद्यालय और सभी उच्च स्तरीय शैक्षणिक संस्थान में वामपंथी संगठन मणिपुर में मातृशक्ति के साथ जो कुकृत्य हुआ उसके लिए कैंडल मार्च, मौन मार्च, मसाल जुलूस की आड़ में पढ़ने लिखने आये विद्यार्थियों के मन मस्तिक में जहर घोलते हैं। अपने माता-पिता, परिवार और दोस्तों से झूठ बोलने पर विवश कराने वाले काम कराते हैं।

The Narrative World    27-Jul-2023   
Total Views |

Representative Image

भारतवर्ष में हर विश्वविद्यालय में टुकड़े-टुकड़े कहें या वामपंथी संगठन के नेतागण समाज के ऐसे दीमक हैं कि आप इनकी सच्चाई जान जाएं तो आपके होश उड़ जाएंगे।


घर से दूर ये लोग अपने माता-पिता और परिवार को सिर्फ धोखा ही देते हैं और ऐसा ही ये भारत के हर राज्य के ग्रामीण क्षेत्र से आये विद्यार्थियों और शोधार्थियों को बनाना चाहते हैं।


सबसे पहले ये आपसे दुनिया भर की इधर-उधर की सतही बातें कर साबित करने की कोशिश करेंगे कि हम कितने बुद्धिजीवी हैं।


फिर वर्तमान सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन की नीतियों पर ऐसी कमियां निकालेंगे जैसे कि इनसे बड़ा ज्ञानी और दूरदर्शी कोई हो नहीं सकता। भले ही इनके जीवन में ये ढंग से अपने अकादमिक कार्य खुद से न किये हो और न ही अपनी मूल नैतिक जिम्मेदारी का निर्वहन किया हो।


संपर्क और संबंध को गहरा करने के लिए आपको नशे की ओर लाने के लिए इनके तर्क का कोई जवाब नहीं और न ही कोई तोड़ है। ये आपको दुनियाभर की तमाम बात और हर जगह गलत ही हो रहा है, ये दिमाग में भरने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।


वामपंथी संगठन के कार्यकर्ताओं का मूल लक्ष्य महिला, दिव्यांगजन, दलित, अल्पसंख्यक, विद्यार्थी और शोधार्थी होते हैं। इन सभी वर्ग के लोगों को आजादी, जीवन में खुलापन और कोई रोक-टोक के बिना की जिंदगी के सपने दिखाकर, अपने जैसा बनाने के लिए नशे-शराब की लत लगवाई जाती है। और इस तरह से ये अपने लक्ष्य को पूरा करते हैं।


वामपंथी संगठन के विचार में हिंसा है, लेकिन ये आपको कहेंगे कि इनसे बड़े अहिंसक कोई नहीं। सब समझना और जानना है तो इनके इतिहास और इनके पोस्टर, झंडे पर लाल रंग और हसिएं और अन्य हिंसक प्रतीक के चिन्ह आपको देखने को मिल जाएगा।


उदाहरण के रूप में वामपंथी संगठन के नेता और कार्यकर्ताओं की कुंठित और समाज को बांटने की नीति को करीब से समझाने के लिए महाराष्ट्र राज्य स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा का व्यष्टि अध्ययन के रूप में अनुभवजन्य विश्लेषण कर रहा हूँ।


हिंदी विश्वविद्यालय कहें या भारत के सभी वामपंथी संगठन के नेताओं की शर्मनाक राजनीति का स्तर आपको समझना होगा। ये लोग आपको पहले यह एहसास कराएंगे कि, आप मान लो कि आप विश्वविद्यालय में पढ़ रहे, जहां रह रहे और खाना खा रहे जिस समाज, परिवार, क्षेत्र, जिला और राज्य से आते हैं, वह तो बिल्कुल भी सही नहीं है। आपके साथ हर जगह अन्याय हो रहा है। मानवाधिकार का उल्लंघन हो रहा है। तमाम तर्क और उन बातों में आपको उलझाकर अपना शिकार बनाएंगे।


जब आप इनकी बात से सहमत हो जाएंगे, तो आपको विरोध करने के लिए कहेंगे, आंदोलन, धरना, शांति मार्च आदि का हिस्सा बनने के लिए करेंगे। अब यहाँ से इनकी चालाकी देखिए। यह कहेंगे कि हम सभी विद्यार्थी और शोधकर्ताओं का समूह है, किसी छात्र संगठन बैनर के नीचे हम कार्यक्रम नहीं कर रहे और न ही हमारा किसी छात्र संगठन में कोई जुड़ा है।


ये सब सुनकर साधारण विद्यार्थी तो चिंतन करने लगता है। ऐसा कहा जाता है कि 'अन्याय के विरुद्धहम नहीं बोलेंगे तो, कौन बोलेगा', यहाँ कोई राजनीति नहीं है। जब कोई पोस्टर और बैनर नहीं, तो हमें समस्या किसी बात की नहीं। यहीं भोले-भाले गाँव से आये विद्यार्थी और शोधार्थी इनके साजिश का पूरी तरह शिकार हो जाते हैं। इस उम्र में खून में उबाल और जोश-जुनून होना लाजिमी है।


अब आपको पता भी नहीं होता है, ये लोग बड़ी चतुराई से पूरे मामले का चाहे जिस प्रकार का धरना, आंदोलन या मार्च हो उसका वीडियो और फोटो निकालते हैं और उसे ये लोग जिन संगठन में लिए हुए हैं, अपने आकाओं को सोशल मीडिया हैंडल पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर साझा करते हैं। ये यही लोग हैं, जो हितैषी और जगरूक शोधार्थी और विद्यार्थी बनकर आपको न्याय की राह का रास्ता दिखाने आते हैं।


वर्तमान में हिंदी विश्वविद्यालय और सभी उच्च स्तरीय शैक्षणिक संस्थान में वामपंथी संगठन मणिपुर में मातृशक्ति के साथ जो कुकृत्य हुआ उसके लिए कैंडल मार्च, मौन मार्च, मसाल जुलूस की आड़ में पढ़ने लिखने आये विद्यार्थियों के मन मस्तिक में जहर घोलते हैं। अपने माता-पिता, परिवार और दोस्तों से झूठ बोलने पर विवश कराने वाले काम कराते हैं।


ऐसी घटनाओं को सुनना भी हम सबके लिए मानव होने के नाते शर्मनाक है, लेकिन इस तरह मार्च आदि करने से हम उनकी कोई आर्थिक, मानसिक सहायता नहीं कर सकते हैं। बल्कि देखा जाए तो उनके साथ अत्याचार का मजाक बना रहे हैं। हमारे घर में बहन, बेटी के साथ कोई छेड़खानी अत्याचार करेगा, तो हम क्या मोमबत्ती मार्च निकालेंगे ?


गरीब और ग्रामीण परिवेश से आये जो बच्चें अपने परिवार, समाज और ग्राम का विकास करने का सपना लेकर घर से संघर्ष के साथ निकलते हैं, उन्हें ये तथाकथित वामपंथी गठन शिक्षा से वंचित कर उनके खुद के समाज, परिवार और देश का दुश्मन बनाना चाहते हैं।


डॉ. भीमराव अंबेडकर कहते थे "समाज में अनपढ़ लोग हैं ये हमारे समाज की समस्या नहीं है, लेकिन जब समाज के पढ़े-लिखे लोग भी गलत बातों का समर्थन करने लगते हैं और गलत को सही दिखाने के लिए अपने बुद्धि का उपयोग करते हैं, यह हमारे समाज की समस्या है।" ये विचार पूरी तरीके से वामपंथी संगठन और उनके नीति और नियत पर लागू होता है।


अब सोचिये कि ऐसे आंदोलन और धरने और विरोध में सोची समझी साजिश के तहत ये लोग देश विरोधी, धर्म विरोधी जाति आधारित नारे आपसे लगवाते हैं। एक विश्वविद्यालय में सभी विद्यार्थियों के बीच धर्म, लिंग, जाति और ऊँच-नीच की दीवार डालते हैं।


आपके बिना संज्ञान के आपके फ़ोटो और वीडियो को वास्तविकता से परे अपने संगठन के स्वार्थ के लिए राजनीति की रोटी सेकने के लिए संख्याबल दिखाकर माहौल बनाने की कोशिश करते हैं। ऐसे में आपको यह समझना होगा कि जो भी व्यक्ति आपसे किसी लड़ाई या आंदोलन की बात कर रहा है, उसकी समाज, विश्वविद्यालय में क्या छवि है।


कोई कानूनी कार्यवाही तो उन लोगों पर नहीं चल रही और नशेड़ी, गंजेड़ी तो नहीं है। ऐसे लोग तो नहीं है, जो हाथी के दांत की तरह हो। खाते किसी और दांत से हैं, दिखाते कोई और दांत हैं। आज के दौर में वामपंथी संगठन से ज्यादा खतरनाक कोई भी विचार नहीं है।


ये लोग ऐसे दीमक हैं, जो समाज में फूट डालने, प्रेमी-प्रेमिका के बीच किसी भी किसी मुद्दे पर लड़ाकर जातिवादी राजनीति करने, दोस्त-दोस्त के बीच द्वेष और भेदभाव पैदा करना, विश्वविद्यालय प्रशासन और विद्यार्थियों के बीच संवाद बाधित करना, सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर आपके जहन में फर्जी आंकड़े के साथ प्रस्तुत करने का काम करते हैं।


ध्यान रहें, ये लोग अपने आप को बचाये रखने के लिए आपके कंधे पर बंदूक चलाते हैं, ताकि जिससे वो बचे रहें और आप निशाना बनें। जिससे समाज में भेद-भाव और विश्वविद्यालय में वैमनस्य और अकादमिक माहौल खराब कर शिक्षण व्यवस्था बाधित किया जा सके।


लेख


Representative Image

गौरव कुमार

यंगइंकर

आईसीएसएसआर डॉक्टरल फेलो - समाज कार्य
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)