सनातन धर्म बनाम मजहब-रिलीजन: क्या, क्यों व कैसे ?

अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक दूसरे की सहयोगी बने प्रतीत होते हैं परंतु सब दोनों आपस में लड़ते हैं तो एक दूसरे की विरुद्ध लड़ते हैं। इन संघर्षों को इतिहास में सलीबी युद्ध, ईसाई धर्मयुद्ध, क्रूसेड (crusades) अथवा क्रूश युद्ध कहा जाता है। यह हिंसा भारतीय मत में अनावश्यक है।

The Narrative World    12-Aug-2023   
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जो शाश्वत मूल्य पर है और निरंतर सुधारात्मक पहल से आगे बढ़ता है, वह सनातन धर्म है। भारत पर्याय स्वामी विवेकानन्द महाराज के अनुसार: मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की ही शिक्षा दी है।


हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, वरन् समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं। मुझे एक ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़िंतों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है।


हम प्राणी मात्र में दिव्यता देखते हैं। कण-कण में ईश्वर को मानते हैं। पूजा पद्धतियों की विविधता होते हुए भी हम भारत माता के एकात्म भाव लिए हुए हैं।


परंतु मजहब और रिलिजन तो हमारे धर्म, संस्कृति और परम्पराओं से भिन्न है। वे तो केवल एक किताब, एक प्रवक्ता एवं एक ही स्थिर नियमों के समुच्चय को मानते हैं। वे अपने से भिन्न को काफिर और पापी कहते रहे हैं।


अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक दूसरे की सहयोगी बने प्रतीत होते हैं परंतु सब दोनों आपस में लड़ते हैं तो एक दूसरे की विरुद्ध लड़ते हैं। इन संघर्षों को इतिहास में सलीबी युद्ध, ईसाई धर्मयुद्ध, क्रूसेड (crusades) अथवा क्रूश युद्ध कहा जाता है। यह हिंसा भारतीय मत में अनावश्यक है।


भारत के इतिहास में भी मजहब/ रिलीजन से इसी प्रकार के संघर्ष रहे हैं। यह एक अलग विचारणीय बिंदु है। परंतु सामयिक प्रवाह में यहां एक अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम संगठन रिपोर्ट की चर्चा करते हैं।


'भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न' विषयक Quarterly Report by IAMC (Indian American Muslim council) जिसकी स्थापना सन 2002 में वाशिंगटन डीसी में हुई, की यह रपट है।


इस रिपोर्ट में क्या है एवं भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में क्या विचारणीय बिंदु हैं। वैसे तो यह रिपोर्ट एक तरफा है और अधिकांश विरोधाभास युक्त है। इसके कई तथ्य हमारी समायोजित संस्कृति के लिए भी विसंगति पूर्ण भी है। इसे समझने के लिए क्रमशः 9 बिंदुओं का उल्लेख किया जा सकता है :-


एक, यह रिपोर्ट एक अंतर्राष्ट्रीय मुस्लिम काउंसिल द्वारा जारी है, जो ईसाई देश-संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में स्थित है। अपने चिर परिचित एजेंडे के अनुसार आरंभ में मुस्लिम विषयों की बात करते हुए इसके अध्याय 3 में ईसाइयों का उल्लेख है जो पांच पृष्ठों में विस्तारित है। अंत में सिफारिश में भी इस रिलिजन का उल्लेख है।


रोचक यह है कि भारत में अल्पसंख्यक कौन है, इस हेतु एक स्पष्ट कानून है, जिसका विवरण यूं है: केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। छ: धार्मिक समुदाय, अर्थात- मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया।


हमें समझना यह है कि यदि यह धार्मिक अल्पसंख्यकों की रिपोर्ट है तो फिर यह केवल दो ही अर्थात् - एक मजहब और एक रिलिजन पर ही केंद्रित क्यों है? यह समझना भी आवश्यक है कि सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में शासन अधिसूचित करता रहा है परंतु इस विदेशी प्रतिवेदन में इनके लिए आग्रह क्यों नहीं है?


शायद कारण यही है कि यह भारतीय मूल वाले हिंदू विस्तारित पंथ-परिवार के सदस्य हैं, उनके लिये पराये है जबकि यह रपट केवल मजहब और रिलीजन को संबोधित है। ये दोनों मजहब एक हैं क्योंकि ये अब्राह्मिक हैं। वैसे भाषा के आधार पर भी अल्पसंख्यक भारतवर्ष में है परंतु उनका कहीं उल्लेख नहीं है।


दो, प्रतिवेदन के तीसरे अध्याय का शीर्षक एंटी क्रिश्चियन वायलेंस इन मणिपुर रखा गया है, परन्तु रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश, घर वापसी, दिल्ली, हरियाणा, झारखंड व मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों का भी उल्लेख किया है। इस अध्याय का पहला शब्द भाजपा शासित मणिपुर.. रखते हुए अंत में ...राज्य और केंद्रीय प्राधिकारियों द्वारा समर्थित... शब्द का प्रयोग करते हुए भारतीय लोकतंत्र की संवैधानिक संस्थाओं के विरोध में एक विमर्श खड़ा करने की निरंतर कोशिश का यह अंश लगता है।


तीन, ईसाइयों का अपने तरीके से उल्लेख करते हुए संसदीय पद्धति के अनुसार मध्य प्रदेश फ्रीडम आफ रिलिजन एक्ट एवं उत्तर प्रदेश के इसी कानून का भी उल्लेख किया है परंतु इसे भारतीय संविधान के अधीन विधायी शक्ति को नकारा है।


इन विधानों को ईसाई विरोधी बताने की कोशिश की गई है। जबकि स्वतंत्र भारत का संविधान की सातवीं अनुसूची और अनुच्छेद 25 के माध्यम से विस्तृत अधिकार हमें स्वत: ही प्राप्त है। परंतु विगत दशकों में अवैध धर्मांतरण की धारा पर रोक लगाते ये कानून इनको खटक रहे है। रपट हमारी संवैधानिक शक्ति की स्थिति को छुपा कर कुछ और ही संकेत करती दिखाई देती है।


चार, रपट का पेज नंबर 16- 17 पर घर वापसी को 'रिलिजियस कन्वर्जन' बताया गया है एवं इसे 'कन्वर्ट फ्रॉम क्रिश्चियनिटी टू हिंदुइज्म' के रूप में दर्शाया गया। परंतु शायद गलती से ही सही पेज 17 पर '... कन्वर्ट बैक टू हिंदुइज्म...' लिखकर मूल रूप से हिंदू धर्म को तोड़कर अपनी संख्या बढ़ाने वाली पुरानी बात को आत्मस्वीकृति देती दिखाई देती है।


पांच, अपनी बात को क्रमशः आगे बढ़ते हुए विगत दिनों मणिपुर में हुई हिंसा को राष्ट्रीय सुरक्षा, धर्मांतरण, अवैध रूप से म्यानमार से आने वाले प्रवासी एवं 35 हजार करोड़ के ड्रग्स के अवैध कारोबार का कहीं उल्लेख नहीं किया है। बस कूकी के लिए 'लार्जली क्रिश्चियन' शब्द का प्रयोग कर इसी पर स्वयं को केंद्रित किया है। पेज 19 के अंत में '...द स्टेट इस करेंटली रुल्ड बाय द भारतीय जनता पार्टी' लिखकर अपना चिरपरिचित राजनीतिक एजेंडा सेट करने की कोशिश को रपट नहीं भूलती है।


, भारत के राष्ट्रवाद एवं हिंदुत्व के विचार को यह संगठन एक डर के रूप में लेता दिखता है, ऐसा कई बार लगता है। पेज 19 पर इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है। रिपोर्ट के अनुसार भाजपा और संघ की धरातल की गतिविधियां एवं इसका हालिया प्रभाव बढ़ने को ही राज्य में विवाद बढ़ने का मूल कारण बता रहे हैं, जो पूर्णता अराष्ट्रीय डर ही है।


यहां राजनीतिक आयाम को यह अकारण सम्मिलित नहीं कर रहे हैं, यह विचारणीय है। साथ ही बजरंग दल एवं विश्व हिंदू परिषद को यह मिलिटेंट ग्रुप के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं एवं रपट की सिफारिश में हिंदू आतंकी और गौ रक्षक दल का भी उल्लेख करती हैं जिसमें केंद्र सरकार से नेशनल एंटी-लीचिंग बिल लाने का आग्रह भी हैं।


सात, अपने अंतरराष्ट्रीय एजेंडे के तहत इन रिपोर्ट की सिफारिश है कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए (अन्तर्राष्ट्रीय) राजनीतिक प्रयास होने चाहिए एवं अंतरराष्ट्रीय दबाव समूह भी काम करें। साथ ही दीर्घकालिक सकारात्मक बदलाव के लिए अंतरराष्ट्रीय समूहों से वित्तीय सहायता की बात भी यह रपट करती हैं, जो जार्ज सोरस की लाइन ही है।


आठ, सबसे कीमती बात संभवतया जो भारत की है, वह है कि इन समूह द्वारा विगत कालखंड में जो आतंक और सांप्रदायिक तनाव की स्थिति- पश्चिमी बंगाल, केरल, राजस्थान सहित विभिन्न राज्यों/क्षेत्रों में नियमित रूप से पैदा की हैं, जिसमें भारतीय विशेषतः हिंदू समाज के विरुद्ध बहुस्तरीय विषाक्त परिवेश बनाया हैं, उसका यह दस्तावेज कोई उल्लेख नहीं करता है, बल्कि उल्टा मौन सहमति देता दिखाई देता हैं।


नौ, एक विमर्श के रूप में यह रपट भारतीय राजनीति को उन लोगों को होमवर्क देते हुए प्रतीत होते हैं जो हिंदुत्व, भारत बोध, भारत के स्वत्व और संवैधानिक के लिए निरंतर बाधक रूप में कार्य कर रहे हैं। यह एक पारितंत्र का अंग है जो स्पष्ट रूप से अपनी अनुकूलता हेतु काम करता हुआ प्रतीत होता है और आग्रह करता है कि वर्तमान भारत में सब कुछ ठीक नहीं है, और इसमें बेहतर करने के लिए हिंदुओं के विरुद्ध कुछ हो जाए। परंतु एक यक्ष प्रश्न हर भारतीय से रहेगा-क्या भारत इस बात को भी समझने के लिए अभी तक अपरिपक्व तो नहीं बना हुआ है?

लेख

डॉ मन्नालाल रावत