मणिपुर में मैतेई व कुकी जातियों का संघर्ष लंबे समय से चल रहा है। इसकी पृष्ठ भूमि 1968 के वर्ष से मानी जाती है।
तब कांग्रेस सरकार ने कुकी जाति को आधिकारिक रूप से मणिपुर में बसाया जाने के लिए समर्थन व सुविधाएं उपलब्ध कराई थी।
इन दो जातियों के बीच का संघर्ष राज्य के लिए अशांति का बड़ा कारण है। लेकिन उसके पीछे विदेशी ताकतें काम कर रही है।
ऐसा मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भी कहा है और उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य में चल रही हिंसा में चीन की भूमिका हो सकती है, उन्होंने कहा कि "विदेशी हाथ से इंकार नहीं किया जा सकता।"
खुफिया एजेंसियों के सूत्रों से मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक, मणिपुर समेत नार्थ ईस्ट (पूर्वोत्तर भारत) में सक्रिय उग्रवादियों को बड़ी संख्या में चीनी हथियार पहुंचाए जा रहे हैं।
खुफिया एजेंसियों को शक है कि चीन के बने इन हथियारों का इस्तेमाल मणिपुर में आशांति फैलाने के लिए भी किया जा रहा है।
इन तीन माह के संघर्ष के पहले भी मणिपुर में कई उग्रवादी संगठनों के तार चीनी एजेंसियों से जुड़े पाए गए हैं। उनसे चीनी हथियार भी पाए गए हैं। इन उग्रवादियों से जुड़े लोग चीन में जाकर प्रशिक्षण तक लेकर आये हैं और भारत के इस सुंदर प्रदेश को बड़ी हानि पहुंचाते रहे हैं।
विश्व के अधिकांश देश जानते हैं कि चीन के अपने किसी भी पड़ोसी देश से अच्छे संबंध नहीं है। वह एक बिगड़ैल व विवादास्पद पड़ोसी देश है। ऐसे में मणिपुर संघर्ष व हिंसा में कम्युनिस्ट चीन का हाथ होना सामान्य सी बात है।
मीडिया खबरों की माने तो खुफिया एजेंसियों से ऐसे चीनी हथियारों की एक्सक्लूसिव तस्वीरें मिली हैं जिनका इस्तेमाल उग्रवादी गुट मणिपुर समेत पूर्वोत्तर भारत में हिंसा फैलाने के लिए कर रहे हैं।
जानकारों के मुताबिक, देश के पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय उग्रवादी गुटों के पास जिस तरह से चीनी हथियार पहुंच रहे हैं वो चिंता की बात है। और मणिपुर हिंसा व संघर्ष में कम्युनिस्ट चीन की सीधी सीधी भूमिका दिख रही है।
मणिपुर में उग्रवादी गुट इन्हीं हथियारों की मदद से हिंसा फैलाने की जानकारी मिल रही है। उग्रवादियों के कई कमांडरों के बारे में खुफिया जानकारी है कि वो चीन में छुपे हुए हैं। ऐसे में चीन की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
विगत दिनों जनरल (सेवानिवृत्त) नरवणे ने कहा, 'मुझे पूरा यकीन है कि जो लोग जिम्मेदार पदों पर आसीन हैं और आवश्यक कार्रवाई करने की जिनकी जवाबदेही है, वे बेहतर ढंग से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं।
मणिपुर हिंसा में विदेशी एजेंसियों का हाथ होने से इनकार नहीं किया जा सकता। एक और बात जो मैं खासतौर पर कहूंगा कि विभिन्न उग्रवादी संगठनों को चीन की ओर से सहायता मिलती है। उग्रवादी संगठनों को चीन की मदद कई वर्षों से मिल रही है और यह अब तक जारी है।'
साथ ही उन्होंने टिप्पणी की, मुझे यकीन है कि सरकार उत्तर-पूर्व क्षेत्र में अशांति पैदा करने में चीन की भूमिका से अवगत है। इस संबंध में संबंधित अधिकारियों द्वारा आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं।
उन्होंने कम्युनिस्ट चीन पर यह भी आरोप लगाया कि चीनी सेना पूर्वोत्तर के साथ-साथ पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को अस्थिर करने में सक्रिय है। संयोग से, कई दशकों से असम, नागालैंड, मणिपुर सहित उत्तर-पूर्व भारत के विभिन्न राज्यों में सक्रिय उग्रवादी म्यांमार में स्थित हैं।
आरोप है कि चीनी जासूसी एजेंसी उत्तर-पूर्व क्षेत्र में आतंकवादियों को लगातार हथियार और बुनियादी ढांचा सहायता प्रदान कर रही है।
खुफिया सूत्रों के मुताबिक, चीन समर्थित उग्रवादी समूहों की सूची में कुकी नेशनल आर्मी, कुकी नेशनल फ्रंट, यूनाइटेड कुकी लिबरेशन फ्रंट शामिल हैं। इन सभी उग्रवादी संगठनों की हाल ही में मणिपुर में हुई सांप्रदायिक हिंसा में कथित तौर पर भूमिका थी।
भारत की सेना के प्रमुख रहे जनरल नरवणे के इस बयान के गहरे अर्थ है। चीन विगत छः दशकों से भारतीय सीमा में घुसपैठ करने में लगा रहता है।
भारत का बड़ा भूभाग अवैध रूप से व अंतरराष्ट्रीय निमयों का उल्लंघन करते हुए चीन के कब्जे में है। आये दिन चीन के सैनिकों की भारतीय सैनिकों से मुठभेड़ होती रहती है।
कम्युनिस्ट चीन की इन्हीं हरकतों व चालों से सीधे कहा जा सकता है कि मणिपुर हिंसा व संघर्ष में भी चीन की बड़ी भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है।
कई मीडिया रिपोर्ट्स व खुफिया एजेंसियों की खबरों की माने तो मणिपुर में पिछले कई दिनों से जारी हिंसा में भी जिन हथियारों का इस्तेमाल किया गया है, उनमें से कई चीन के यहां बने हथियार हैं।
खुफिया एजेंसियों को शक है कि म्यांमार चीन बॉर्डर पर स्थित ब्लैक मार्केट से हथियारों को म्यांमार सीमा पर लाया जा रहा है जहां से उन्हें मणिपुर में भी सप्लाई करने की साजिश होती रही है।
यह तथ्य भी सभी जानते हैं कि इन दिनों म्यांमार पर लगभग कम्युनिस्ट चीन सरकार का गैर आधिकारिक नियंत्रण है और म्यांमार के कई क्षेत्रों पर चीन का कब्जा है जो कि भारत की सीमाओं से सीधे लगे हुए हैं।
इन्हीं क्षेत्रों का गलत उपयोग कर चीन लंबे समय से इन क्षेत्रों में फैले उग्रवादियों को हथियार पहुंचाता रहा है और भारत की आंतरिक सुरक्षा व शांति को कमजोर करने का प्रयास करता रहा है। मणिपुर हिंसा व संघर्ष में भी यह सब साफ व सीधे सीधे दिख रहा है।
अंतरराष्ट्रीय मामलों व सामरिक महत्व के विषयों की जानकारी रखने वालों में अधिकांश विशेषज्ञों को यह अच्छे से पता है कि उत्तर-पूर्व के कई संगठनों का चीन के साथ आंतरिक संबंध है।
केवल एक मूर्ख ही इस बात पर विश्वास करेगा कि चीन उत्तर-पूर्व में इन सुरक्षा कमजोरियों का फायदा नहीं उठाएगा।
मणिपुर की दो जातीयों के संघर्ष का लाभ लेकर यहां कम्युनिस्ट चीन अपना उल्लू सीधा करने में लगा है और अपनी विस्तारवादी कूटनीति के माध्यम से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों(भारत के पूर्वी द्वार) में अशांति फैला रहा है।
ऐसे में हमारी सेना व खुफिया एजेंसियों को इसका मुँह तोड़ जवाब देना चाहिए और कम्युनिस्ट चीन के षड्यंत्र वाली भूमिका का अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुलासा करने के साथ पुरजोर विरोध करना चाहिए।
लेख
भूपेन्द्र भारतीय